यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री ने केंद्रीय योजनाओं के लाभार्थी किसानों से बातचीत करते हुए एक बार फिर यह रेखांकित किया कि उनकी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन उन्हें यह आभास होना चाहिए कि यह एक कठिन लक्ष्य है और किसान अच्छे दिन के लिए वर्ष 2022 तक इंतजार करते नहीं रह सकते। इसमें दोराय नहीं कि बीते चार सालों में खेती और किसानों की हालत सुधारने के लिए कई कदम उठाए गए हैं और उनके कुछ अनुकूल नतीजे भी सामने आए हैं, लेकिन कृषि को मुनाफे का सौदा बनाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
नि:संदेह खाद्यान्न् की पैदावार बढ़ना उल्लेखनीय है, लेकिन किसानों की समस्या यह है कि उन्हें कई बार अपनी अच्छी उपज के बेहतर दाम नहीं मिल पाते। यह ठीक नहीं कि कमरतोड़ मेहनत के बाद किसान अपनी उपज का उचित मूल्य हासिल न कर सकें। खेती कहीं अधिक श्रम की मांग करती है, लेकिन उसके एवज में किसान को उतनी आय नहीं हो पाती कि वह अपना जीवन-यापन सही तरह कर सके। खेती का घाटे का सौदा बनना और फिर भी एक बड़ी आबादी का उस पर निर्भर होना ठीक नहीं। खेती को लाभकारी पेशा बनाने के उपायों के साथ ही सरकार को यह भी देखना होगा कि कृषि पर विशालकाय ग्रामीण आबादी की निर्भरता कैसे घटे। इसी तरह उसे इसकी भी चिंता करनी होगी कि तमाम प्रयासों के बाद भी खेती मुख्यत: मानसून पर ही निर्भर क्यों है?
एक विडंबना यह भी है कि जहां सिंचाई परियोजनाएं अपेक्षित गति से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं, वहीं कृषि कार्यों में पानी का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। पर्याप्त सिंचाई परियोजनाओं के अभाव के साथ ही भू-जल का घटता स्तर कोई शुभ संकेत नहीं। हर खेत में पानी पहुंचाने के लिए सिंचाई परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के साथ ही सरकार को यह भी देखना होगा कि पानी का उचित इस्तेमाल कैसे हो?
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Source: Nai Dunia