वैज्ञानिकों ने ईजाद की भरपूर प्रोटीन और ग्लूकोज देने वाले गेहूं की किस्में

July 21 2017

By: Naiduniya, July 21, 2017

कृषि कॉलेज के दो वैज्ञानिकों डॉ. साईं प्रसाद व रिटायर्ड डॉ. एएन मिश्रा ने 1997 से 2008 तक रिसर्च करने के बाद गेहूं की दो ऐसी किस्में ईजाद की हैं, जिनमें प्रोटीन और ग्लूकोज भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। ये जल्दी पचने वाली हैं। इन दोनों को निजी कंपनियां भी बेच रही हैं, लेकिन इसका संरक्षण कॉलेज के हाथ में है। प्रदेश के साथ-साथ पूर्वी देशों और दुबई में इनकी खूब मांग है। पूर्णा और पोषण नाम की दोनों किस्में वर्तमान में प्रदेश की 25 फीसदी भूमि पर बोई जा रही हैं। इनकी बड़ी खूबी यह है कि ये कम पानी में भी अधिक उत्पादन देती हैं।

दलिया, बाटी, बाफला, सूजी, पास्ता में ज्यादा उपयोग

एचआई- 8663 पोषण किस्म को मालवीय वीट, डुर्रम वीट व टटिया वीट के नाम से भी जानते हैं। इसकी खासियत यह है कि इसका दलिया, बाटी, बाफला, सूजी और पास्ता प्रोडक्ट में ज्यादा उपयोग हो रहा है। यह प्रति हेक्टेयर पर 65 क्विंटल उत्पादन देती है। मालवा के इंदौर, धार, देवास और उज्जैन सहित मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों को मिलाकर 15 फीसदी में इसकी बोवनी की जा रही है। इसे दुबई व ईस्टर्न देशों में एक्सपोर्ट किया जा रहा है।

सबसे अच्छी बनती है पूर्णा की रोटी

एचआई-1544 पूर्णा किस्म की खासियत यह है कि इसकी रोटी जितनी अच्छी गुणवत्ता की बनती है, उतनी अन्य किस्मों की नहीं है। जल्दी पचने वाला, प्रोटीन व ग्लूकोज युक्त यह गेहूं शरीर के लिए भी कई गुना लाभदायक है। मालवा व निमाड़ में इसकी बोवनी 12 से 15 फीसदी हिस्से में इसकी खेती की जा रही है। यदि बोवनी के दौरान ज्यादा गर्मी भी पड़ जाए, तब भी इसकी फसल खराब नहीं होती है।

ैदावार में भी अच्छी हैं ये किस्में

दोनों किस्मों की खूबी यह है कि 3 से 4 पानी मिलने के बाद इनकी पैदावार अच्छी होती है। एक हेक्टेयर में 65 क्विंटल तक का उत्पादन हो रहा है। बोवनी होने के बाद जब पौधे थोड़े बड़े हो जाते हैं और ऐसे में तेज गर्मी पड़ जाए तो कई किस्में खराब हो जाती हैं, लेकिन ईजाद की गई ये दोनों किस्में प्रतिकूल मौसम में भी खराब नहीं होती।

निजी कंपनी भी करती है उत्पादन

एचआई 8663 व एचआई 1544 सबसे ज्यादा उपयोगी होने के कारण इसका उपयोग निजी कंपनियां रोटी व पास्ता बनाने में कर रही हैं। इससे बनने वाले प्रोडक्ट विदेश में भी बेचे जाते हैं। इसका कंपनी को अंश के रूप में भुगतान भी करना पड़ता है। इसकी खरीदी व बिक्री पर अनुबंध के अनुरूप नियंत्रण भी रहता है। कृषि कॉलेज के अधिष्ठाता डॉ. अशोक कृष्णा ने बताया कि दोनों किस्मों का उपयोग एमपी में किया जा रहा है। इनमें प्रोटीन व न्यूट्रिशन सहित अन्य कई ऐसे तत्व हैं जो मानव शरीर के लिए बहुत लाभदायक हैं।

इस (स्टोरी) कहानी को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह कहानी अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है|