भारत का विश्व में सोयाबीन उत्पादन में पांचवां स्थान है। भारत के कुछ राज्यों की यह प्रमुख फसल है। भले ही हमारा सोयाबीन उत्पादन में पांचवा स्थान है लेकिन प्रति हेक्टेयर उत्पादन में हम अभी विश्व में बहुत पीछे हैं। प्रति हेक्टेयर कम उत्पान के कारण बहुत से हैं। इनमें से कुछ प्राकृतिक कारण है लेकिन कम उत्पादन के लिए हमारी गलत कृषि क्रियाएं ज्यादा जिम्मेदार हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं सोयाबीन का बम्पर उत्पादन लेने के लिए की जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण काम।
सही भूमि का चयन
किसी भी फसल का सही उत्पादन तभी होगा जब यह उपयुक्त भूमि में बोयी जाएगी। सोयाबीन न हल्की भूमि में अच्छी पैदावार देती है और न अत्यंत चिकनी मिट्टी (क्ले सोइल) में। अति अम्लीय, क्षारीय व रेतीली भूमि में सोयाबीन को कभी न लगाएं। सोयाबीन की फसल का बम्पर उत्पादन उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी में होता है। इसलिए ध्यान रखें की सोयाबीन को ऐसे खेत में लगाएं जहां पानी का ठहराव न होता हो और भूमि की उर्वरा क्षमता अच्छी हो।
बीज का उपचार आवश्यक
अगर आपको सोयाबीन उत्पादन भरपूर मात्रा में लेना है तो सोयाबीन के बीज का बोने से पूर्व उपचार जरूर करें। बिना उपचारित बीज फसल उत्पादन को 50 फीसदी तक गिरा सकता है। बीज उपचार न केवल कई रोगों को आने से रोकता है बल्कि यह बेहतर अंकुरण और बीज जमाव में भी सहायक है।
जड़ और तना गलन रोग तथा पीले मोज़ेक विषाणु रोग से बचाने के लिए सोयाबीन के बीज को बुवाई के तुरंत पहले एक किलोग्राम बीज को दो ग्राम थीरम और एक ग्रामकार्बेडिज्म से उपचारित करें। आप रासायनिक दवाइयों के स्थान पर बायो-फंगिसाइड ट्रायकोडर्मा विरीड से भी बीज उपचार कर सकते हैं। इसके लिए प्रति किलोग्राम बीज में 8-10 ट्राइकोडर्मा मिलाएं। इसके बाद 5 ग्राम राइजोबीम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। उपचारित बीजों को छायादार जगह में सुखाएं और तुरंत बो दें।
हर किस्म आपके खेत के लिए नहीं बनी
सोयाबीन का कम उत्पादन होने का एक कारण है गलत किस्मों का चुनाव। इस बात को आप अच्छी तरह से जान लें कि सोयाबीन की प्रत्येक किस्म हर जगह नहीं लगाया जा सकता। हो सकता है कि जिस किस्म ने यूपी में भरपूर उत्पादन दिया हो वो मध्यप्रदेश में ऐसा न कर पाए। या फिर मध्यप्रदेश के एक संभाग में जो किस्म भरपूर पैदावार देती हो वो दूसरे संभाग में फेल हो जाए। इसलिए जरूरी है कि आप ऐसी किस्म का चुनाव ही करें जो आपके खेत और आपके इलाके के लिए किसी कृषि कॉलेज, यूनिवर्सिटी या राज्य कृषि विभाग द्वारा संस्तुतित की गई है।
पौधे होने चाहिए पूरे
किसी भी फसल की कुल उपज में प्रत्येक पौधे का योगदान होता है। इसलिए खेत में पौधे पूरे करने का प्रयास करना चाहिए। खेत में न तो ज्यादा पौधे होने चाहिए और न ही कम। खेत में पूरे पौधे हों, इसके लिए जरूरी है कि आप ऐसे बीज का प्रयोग करें जिसका अंकुरण 80 फीसदी हो। बीज बोने से पूर्व अंकुरण करके देख लें। गिनकर कुछ बीज गीले बोरे पर डालें और उसे ढक दें। कई दिनों तक उसको गीला रखें। फिर यह देखें कि कितने बीज अंकुरित हुए हैं। अगर अंकुरण 80 फीसदी है तो बीज की बुआई करें। अगर अंकुरण 50 फीसदी है तो बीज को न बोएं और नया बीज लें। दूसरा, अगर कम नमी या किसी अन्य कारण से पौधे कम रह जाए तो बीज की रोपाई कर पौधों की संख्या को पूरा कर दें।
पौध संख्या का निर्धारण फसल या उसकी किस्म के पौधे के फैलाव के आधार पर किया जाता है। सोयाबीन की कम फैलने वाली किस्मों की कतारों में 30 से 35 व अधिक फैलने व लंबी अवधि वाली किस्मों की कतारों के बीच 40 से 45 सेमी का अंतर रखा जाता है। एक ही कतार में पौधे से पौधे के बीच 10 से 12 सेमी की दूरी रखी जानी चाहिए।
सोयाबीन बीज और डी.ए.पी खाद को मिलाकर न बोएं
सोयाबीन के बीज का छिलका पतला और नाजुक होता है। बहुत से किसान सोयाबीन व डीएपी एक साथ मिलाकर बुवाई करते हैं। डीएपी और बीज साथ बोने पर जब भी जमीन में नमी की कमी होती है और तापमान बढता है तो बीज खाद के रसायन के संपर्क में आकर खराब हो जाता है और उगता नहीं है। इससे खेत में पौधे कम रह जाते हैं। इससे बचने के लिए ऐसी मशीन का प्रयोग करें जिसमें खाद और बीज अलग-अलग डालकर बुआई की जाती हो।
बार-बार बुआई से बचें
एक खेत में लगातार सोयाबीन की बुआई नहीं करनी चाहिए। लगातार सोयाबीन उगाए जाने के कारण मिट्टी में रोगाणुओं का स्थायी घर बन जाता है। इससे रोग ज्यादा आते हैं। इसलिए जहां तक हो सके तो बदलकर सोयाबीन की बुआई की जानी चाहिए। एक साल सोयाबीन बोने के बाद अगले साल उसमें कोई अन्य फसल लगाएं। इससे पैदावार अच्छी होगी।
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Source: Infopatrika