मुंबई में एक्टिंग छोड़ खेती करने लगा यह मशहूर एक्टर, गांव वालों को भी हो रहा है फायदा

June 18 2018

कहते हैं इंसान की किस्मत में जहां का दाना-पानी लिखा होता है वो किसी भी रूप में वहां पहुंच ही जाता है... काम तो हर कोई करता है, पैसे तो हर कोई कमाता है लेकिन शायद कुछ लोग ही हैं जो दिल की आवाज़ सुनकर काम करते हैं... वैसे यह दिल की आवाज सुनाई कैसे देती है, क्या यह गाने की तरह हमारे साथ कोई और भी सुन सकता है? क्या यह सुरीली होती है?  नहीं! दिल की आवाज़ सुनने के लिए अपको कृषि यंत्र के जैसा कोई यंत्र खरीदने की जरुरत नहीं और न ही आपको कोई इयरफोन खरीदना है... शुक्र है इसके लिए पैसे खर्च नहीं करने पड़ेंगे... दिल की आवाज सुनने के लिए बस आपको एक जगह बैठ कर थोड़ी देर अपने आप से बात करनी होगी की आप करना क्या चाहते हैं... 

आपको भी बिल्कुल उसी तरह सोचना होगा जैसे हमारे बॉलीवुड के इस मशहूर एक्टर ने सोचा है... वैसे तो खेती और बॉलीवुड दोनो अलग चीज़ हैं- एक ग्लैमर, एक्टिंग, डांस, सॉन्ग, से भरी हुई है तो दूसरी खरपतवार, कीटनाशक, बीज, इन सब से जुड़ी है... लेकिन इस ऐक्टर की तारीफ करनी होगी की इसने ग्लैमर की दुनिया छोड़ अपने जीवन को ज़ीरो बजट खेती से ओढ़ लिया। चलिए आपको बताते हैं उस शख़्स के बारे में... क्या आपको साराभाई vs साराभाई सीरीयल याद है? हां हां आप बिल्कुल सही जा रहे हैं! यहां भी बात उसके हास्य कलाकार राजेश कुमार की हो रही है... बता दें की वो इन दिनों सपनों की नगरिया मुंबई से दूर अपने राज्य बिहार में जीवन के सुख ले रहे हैं। बता दें कि वो इस वक्त मुंबई से लगभग 1795 किमी दूर पटना और पटना से भी 125 किमी दूर बर्मा गांव में हैं.

देखिये आगे जो हम आपको बताने जा रहे हैं थोड़ा सुनने और पढ़ने में अजीब है लेकिन, बात दिल की आवाज से जुड़ी है तो आपको बताना जरुरी है... उनके मुताबिक वो एक बार पेड़ के नीचे बैठे थे तभी उनके मन में एक आइडिया आया कि बर्मा गांव की हालत सुधारने में उन्हें कुछ मदद करनी चाहिए... तो देखा आपने उनको अपने दिल की आवाज़ एक पेड़ के निचे सुनाई दी... चलिए आगे बताते हैं! उसके बाद उन्होंने अपने गांव पहुंच कर देखा की वहां बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं...उसके बाद वो वहां के अधिकारीयों से मिलकर गांव को स्मार्ट बनाने के लिए वहां के अधिकारियों से मिले...इसके साथ ही उन्होंने घर में जानवरों का दूध निकाला, घास काटा, खेती की और वो सभी काम किए जो ग्रामिण जीवन का हिस्सा है...और उन्होंने यहां पर ज़ीरो बजट खेती की भी शूरूआत की जो गांव में खेती कर रहे किसानों के लिए भी फायदेमंद साबित हुआ।

घबराइये नहीं बता रहे हैं ज़ीरो बजट की खेती के बारे में भी बता रहे है....वो क्या है की अच्छी बातें हमेशा आखिरी में ही बताते हैं...ज़ीरो बजट आध्यात्मिक खेती प्रकृति, विज्ञान, आध्यात्म एवं अहिंसा पर आधारित खेती की तकनीक है... इस तकनीक में रासायनिक खाद, केंचुआ खाद एवं जहरीले रासायनिक-जैविक केमिकल नहीं खरीदने होते बल्कि केवल एक देसी गाय से 30 एकड़ तक की खेती की जा सकती है...इस तकनीक में केवल 10% पानी एवं 10% बिजली की जरूरत होती है, मतलब 90% पानी एवं बिजली की बचत हो जाती है.

चलिए अब हम तो अपने लिए एक पेड़ की खोज के लिए चलते हैं... वहीं जहां दिल की आवाज सुनाई दे और आप खबरों को पढ़कर कृषि जागरण के साथ जुड़े रहें...

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Source: Krishi Jagran