बरसात में मधुमक्खीपालन में विशेष सावधानी बरतने के लिए पढ़ें पूरी खबर

June 22 2018

कम समय और कम लागत में मधुमक्खी पालन से अधिक आमदनी लेने वाले मधुमक्खी पालकों को वर्षा ऋतु में विशेष सावधानी बरते जाने की सलाह दी है कीट वैज्ञानिकों ने। बरसात में मौन पालन की व्यवस्था एवं प्रबंधन के बारे में बताते हुए पंतनगर विष्वविद्यालय के आदर्श मौन पालन केन्द्र की संयुक्त निदेशक, डा. पूनम श्रीवास्तव ने कहा कि वर्षा ऋतु में गर्मी व नमी बढ़ने और वर्षा होने के कारण मधुमक्खियों में आहार की कमी होने लगती है, वहीं शत्रु कीटों और बीमारियों की भी अधिकता हो जाती है। इसलिए बरसात के मौसम की शुरूआत होने से पूर्व मौनगृहों को ऊँचे स्थान पर रख देना चाहिए। जहां तक संभव हो मौनगृहों को खुले स्थान पर नहीं रखना चाहिए। अगर मौन गृहों को पेड़ों के नीचे रखते हैं तो पहले पेड़ों की उन शाखाओं की छंटाई कर देनी चाहिए, जो जमीन के निकट हों ताकि, हवा का आवागमन होता रहे। यदि मौनगृहों को खुले स्थान पर रखना पड़े तो उन्हें घास-फूस की टाटियों से ढक दें और वंशों को अधिक समय तक खुला न रखें। बरसात के मौसम में आहार की कमी की समस्या से निपटने के लिए कृत्रिम आहार के रूप में आधा पानी और आधा चीनी का मिश्रण उबालकर और ठण्डा करके देना चाहिए। कृत्रिम भोजन सदैव सांयकाल एवं सभी गृहों में एक साथ देना चाहिए। डा. श्रीवास्तव ने बताया कि बरसात में मौन वंशों में रोगों और कीटों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। इन शत्रुओं से बचाव के लिए मौन गृहों के अतिरिक्त छिद्र को बन्द कर देना चाहिए और प्रवेश द्वार को छोटा कर देना चाहिए और खाली छत्तों को पालीथिन में पैक कर वायुरोधी स्थान पर रखना चाहिए। काफी पुराने कटे-फटे और टूटे छत्तों को मौनगृह से हटा देना चाहिए।

मधुमक्खी के रोगों के बारे में बताते हुए डा. श्रीवास्तव ने कहा कि मधुमक्खियों के शिशु तथा प्रौढ़ दोनों ही रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं, जिनमें लगने वाला प्रमुख रोग अमेरिकन फाउल ब्रूड है। इस रोग में ग्रस्त शिशुओं (ब्रूड) से दुर्गन्ध आती है। यह रोग जीवाणु (बैक्टीरिया) द्वारा होता है तथा केवल श्रमिक मक्खियों के शिशुओं को लगता है। दूसरा प्रमुख रोग यूरोपियन फाउल ब्रूड है। इस रोग से ग्रसित शिशुओं से सड़ी मछली के समान गन्ध आती है। रोग के लक्षण लगभग अमेरिकन फाउल ब्रूड के समान होते हैं। इन दोनों रोगों के बचाव के लिए प्रभावित वंशों को मधुवाटिका से अलग कर देना चाहिए तथा फॉर्मेलिन दवा को 6 मिली. प्रति ली. की दर से प्रयोग करना चाहिए। टेरामाइसीन नामक औषधि 250-400 मिग्रा प्रति 5 लीटर चीनी शरबत (कृत्रिम भोजन) के साथ देना चाहिए तथा इसे एक सप्ताह बाद दोहराना चाहिए। परन्तु इस औषधि का प्रयोग मधुस्राव के समय नहीं करना चाहिए। अन्य रोग, सैक ब्रूड रोग, वायरस (विषाणु) जनित रोग है। यह भारतीय मक्खी में अधिक पाया जाता है। इस रोग के नियंत्रण हेतु सभी उपकरणों को फॉर्मेलिन या डिटॉल से विषाणु विहीन कर लेना चाहिए। एक और रोग नोजीमा (नेसिमा), प्रोटोजोआ के कारण होता है। इसकी रोकथाम के लिए एसीटिक एसिड नामक रसायन से खाली मौनगृह व उपकरणों को जीवाणुरहित करना चाहिए। धूप निकलने पर मैनगृहों की सफाई करनी चाहिए तथा छत्तों को धूप दिखाना चाहिए।

डा. श्रीवास्तव ने बताया कि बरसात के मौसम में माइट कीट का प्रकोप भी अधिक दिखायी देता है। माइट मधुमक्खियों की 5-6 दिन आयु की अवस्था में कोष्ठक बंद होने से पहले प्रवेश कर जाता है। कोष्ठकों को खोलने पर माइट आसानी से षिषु से चिपका हुआ दिख जाता है, जिससे वयस्क मधुमक्खी की अवस्था में पंख ठीक से विकसित नहीं हो पाते हैं। माइट की रोकथाम के लिए सायनेकार नामक औषधि के पाउडर को शर्करा के साथ मिलाकर 50-100 मि.ग्रा. प्रति मधुमक्खी वंश की दर से फ्रेमों के बीच बुरकाव करना चाहिए। थॉयमाल के 8-25 ग्राम पाउडर का बुरकाव भी इसके नियंत्रण में प्रभावी है। इसके अतिरिक्त मधुमक्खी गृह के आधार पटल पर सफेद कागज बिछा कर एक छोटी शीशी में 5 मि.ली. फॉर्मिक एसिड रखने पर दूसरे दिन कागज पर माइट मरी हुई अथवा बेहोश अवस्था में गिरा मिलेगा। इस कागज को माइट समेत जला देना चाहिए। यह प्रक्रिया एक हफ्ते तक करने से माइट के प्रकोप को रोका जा सकता है। दूसरा महत्वपूर्ण कीट मोमी पतंगा है, जिसका प्रकोप नमी वाले स्थानों पर होता है। पुराने छत्तों में मोमी पतंगे की सूड़ियाँ सुरंग बनाकर उनको खाने लगती है। ये सूड़ियाँ पूरे छत्तां व उनमें पल रहे अंडा तथा शिशुओं को नष्ट कर देती हैं। इसकी रोकथाम हेतु मौनगृह की दरारों को बंद कर देना चाहिए एवं पुराने छत्तों को नये छत्तों से बदलते रहना चाहिए। एसीटिक, एसिड, इथाइलीन ब्रोमाइड से खाली बक्सों को धूमन करने व बक्सों को आधा घंटा घूप में रखने से भी मोमी पतंगो का नियंत्रण हो जाता है। बरसारत में बर्र मौनगृहों से अन्दर बाहर जाती मधुक्खियों को पकड़ कर अपना शिकार बनाती है। इनकी रोकथाम के लिए बर्र के छत्तों का पता लगा कर नष्ट कर देना चाहिए। बर्र प्रपंच (जाल) द्वारा किसी सीमा तक इनके नियंत्रित किया जा सकता है। बरसात में चीटियाँ मौनगृहों में घुसकर उनके अण्डे, शिशु मधु तथा पराग ले जाती हैं। इनकी रोकथाम के लिए मौनगृह के स्टैन्ड को पानी से भरी प्यालियों पर रखना चाहिए।

डा. श्रीवास्तव ने कहा कि बरसात में इन बातों का ध्यान रखने पर मौनपालक इस मौसम में भी अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं।

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Source: Jagran