थ्री इडियट्स का 'रैंचो' है ये शख्‍स, इसके अजूबे एक्‍सपेरिमेंट की हो रही हर ओर चर्चा!

May 21 2018

 थ्री इडियट फिल्‍म का रणछोड़ दास चांचण उर्फ रैंचो तो आप सबको याद होगा ही जो कामयाबी के लिए नहीं काबिल बनने के लिए पढ़ता था और कामयाबी को उसके पीछे-पीछे आना पड़ा. रैंचों से भी दो कदम ऊपर एक शख्‍स हैं जिनका नाम है मेवालाल.

उत्‍तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में जन्‍मे मेवालाल अपने अनपढ़ माता-पिता की संतान थे. पांच किलोमीटर पैदल चलकर पढ़ने जाते थे और चलती कक्षाएं छोड़कर सेमिनार अटेंड करने पहुंच जाते थे. ऐसा करने पर जब उनसे पूछा जाता कि ऐसे पढ़कर क्‍या बन सकोगे? तो उनका जवाब होता था क‍ि पढ़ाई पीसीएस बनने के लिए नहीं कर रहे, दुनिया को जानने के लिए कर रहे हैं.

अक्‍सर वे अपनी दोनों बेटियों को कहते हैं कि फिजिक्‍स, कैमिस्‍ट्री, मैथ्‍स नहीं, दुनिया को पढ़ो और यही वजह है कि आज वो पूर्वांचल ही नहीं देशभर के किसानों के लिए उम्‍मीद की किरण बन गए हैं. मेवालाल बताते हैं कि उन्‍हें कुछ अलग काम करने की प्रेरणा लखनऊ में एक सड़क के दोनों ओर लगे कूड़े के ढेरों से मिली और 2 अक्‍तूबर 1994 को उन्‍होंने कचरा प्रबंधन करने का फैसला कर लिया.

मेवालाल कूड़ा उठवाकर उसका खाद बनाने लगे लेकिन किसानों की समस्‍याएं तो बढ़ती ही जा रही थीं. खेतों की जमीन बंजर होती जा रही थी. उर्वरा शक्ति खत्‍म हो रही थी. ये देखकर मेवालाल ने खेती की पुरानी परिपाटी, पैदा हुई समस्‍याओं और समाधानों पर जानकारी जुटाना और पढ़ना शुरू किया. तब उन्‍हें खेतों में केंचुए खत्‍म होने की बात का पता लगा. बस इसके बाद से मेवालाल जुट गए कि खेतों में केंचुए कैसे वापस आएं.

केंचुए वापस लाने की तरकीब ढूंढते-ढूंढते और कचरा व दूसरी खेतों में उगती खर पतवार को हटाने के लिए उन्‍होंने एक प्रयोग किया. खेतों से घास-फूस और खर पतवार को उखाड़कर घर लाए फिर घर के बायो कचरे को इकठ्ठा कर टैंक में भर दिया और उसमें पानी डाल दिया. करीब 15 दिन बाद वह गलकर पानी बन गया. इस पानी को नाम दिया गया जैविक लिक्‍वड फर्टिलाइजर (तरल खाद). इसको तरल खाद को मेवालाल ने अपने खेतों में छिड़कना शुरू कर दिया.

थोड़े ही दिनों में प्रयोग सफल होने लगा. पैदावार बढ़ने के साथ ही कीड़े-मकोड़ों ने फसल को कम नुकसान पहुंचाया. मेवालाल ने ये खुशी और किसानों के साथ बांटना शुरू कर दिया अौर किसानों से ऐसा करने के लिए कहा, लेकिन किसानों ने कोई रुचि नहीं दिखाई. इसके बाद मेवालाल ने किसानों के खेतों में उग रही घास और खर-पतवार को अपने घर के टैंकों में डालकर लिक्विड फर्टिलाइजर यानी तरल खाद बनाना शुरू कर दिया और किसानों को मुफ्त में बांटने लगे.

कई सालों की मेहनत के बाद आखिकार किसानों को इसका महत्‍व समझ आने लगा अौर वे भी अपने घरों में बेहद सरल तकनीक से बनने वाला जैविक लिक्विड फर्टिलाइजर बनाने लगे.

मेवालाल बताते हैं कि पूर्वांचल सहित उत्‍तर प्रदेश के कई जिलों के किसान आज लिक्विड फर्टिलाइजर का इस्‍तेमाल कर रहे हैं. यहां तक कि अंबेडकर नगर के अलावा निन्‍दूरा गांव, लखनऊ आसपास, सहारनपुर, गोरखपुर, रिहन्‍द, बाराबंकी, पलामू, बल्‍लारपुर आदि के किसान, नगर निगम और कई कंपनियां आज तरल खाद बनाने को लेकर उनसे सहयोग मांगती हैं. गीले खाद का छिड़काव करने से सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि खेतों में फिर से केंचुआ पैदा हो गया है.

लंबे समय से यूरिया, रासायनिक खाद आदि के इस्‍तेमाल से भूमि में केंचुआ पैदा होना बंद हो जाता है. जिसके चलते खेतों की मिट्टी ठोस हो जाती है और बारिश का पानी मिट्टी में नहीं पहुंच पाता. इससे मिट्टी की उर्वर क्षमता धीरे-धीरे समाप्‍त होने लगती है. ऐसे में केंचुए मिट्टी की नमी बरकरार रखने में मदद करते हैं.

मेवालाल कहते हैं कि यूरिया अौर रासायनिक खादों के चलते खाने में 93 फीसदी नाइट्रेट और 42 फीसदी आर्सेनिक एसिड बढ़ गया है जो स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक है. ऐसे में जैविक खेती से शुद्ध अनाज और फल-सब्जियां मिल रहे हैं.

ऐसे बनाते हैं खाद फिर करते हैं फसल पर छिड़काव 

एक प्‍लास्टिक अथवा लोहे की टंकी या टैंक में (जिसमें टोंटी लगी हो) नीम, पीपल, बबूल, बेर, कोई भी पेड़, बेल, बायो वेस्‍ट (बायो कचरा), सब्जियों के पत्‍ते, घास-फूस, हरी पत्तियां, हरी घास, गांजा, खर-पतवार को डाल देते हैं. इसी टैंक में थोड़ा सा पानी भी डालते हैं ताकि इस हरे कचरे को सड़ने और पानी बनने में सहायता मिले.

इस टैंक को 15 दिन तक बंद कर देते हैं. साथ ही टोंटी में कोई बोतल या कनस्‍तर लगा देते हैं ताकि टैंक में से पानी रिसकर इसमें भरता रहे. कुछ दिन में ही देखेंगे कि बोतल में पानी भर जाएगा. इसमें से 1 लीटर तरल खाद को 30 लीटर पानी में मिलाकर खड़ी फसल अथवा मिट्टी पर छिड़काव करते हैं.

किसानों का कहना है...

मेवालाल ही नहीं पूर्वांचल के किसानों का कहना है कि इस गीले खाद के छिड़काव से फसल पर कीड़े भी नहीं लगते. पिछले कुछ सालों में 25-30 फीसदी उत्‍पादनबढ़ गया है. वहीं 50-60 फीसदी यूरिया आदि कैमिकल फर्टिलाइजर या रासायनिक खाद की खपत कम हो गई है. एक तरह से जैविक खेती हो रही है.

आईआईएम लखनऊ और आईआईटी कानपुर आए आगे

मेवालाल के साथ आईटीसी लिमिटेड, सहरनपुर उत्‍तर प्रदेश, नगर निगम गोरखपुर, सहारनपुर और झांसी के अलावा कृषि जैव अपशिष्‍ट प्रबंधन, बाराबंकी, एनटीपीसी रिहंद, आईआईएम लखनऊ, कृषि जैव अपशिष्‍ट प्रबंधन, पलामू, झारखंड पिछले कई सालों से सहयोग कर रहे हैं.

मेवालाल बताते हैं कि पिछले साल ही आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक भी मेवालाल की संस्‍था मुस्‍कान ज्‍योति से जुड़े हैं. आईआईटी कानुपर के वैज्ञानिक खासतौर पर तरल खाद पर काम कर रहे हैं और इसके अन्‍य विकल्‍पों को खोज रहे हैं.

 

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Source: News 18