'जितने किसानों ने भारत में आत्महत्या की है, अगर दूसरा देश होता तो हिल जाता': नज़रिया

December 01 2018

 पहला बिल कहता है कि किसान को अपनी फसल की न्यूनतम क़ीमत क़ानूनी गारंटी के रूप में मिले. आज की व्यवस्था में यह सरकार की दया पर निर्भर करता है कि उन्हें क्या मिले.

चुनावों से पहले घोषणा कर दी जाती है, उन्हें मिले न मिले, यह सुनिश्चित नहीं हो पाता है.

दूसरा बिल कहता है कि किसान जिस कर्ज में डूबा हुआ है, उस कर्ज से एक बार किसान को मुक्त कर दिया जाए, ताकि वो एक नई शुरुआत कर सके.

हम चाहते हैं कि सरकार ये दोनों क़ानून संसद में पास करवाए.

इस देश में सभी तरह की सरकारें आई हैं. अच्छी, बुरी. लेकिन वर्तमान सरकार जैसी झूठी सरकार नहीं आई.

नरेंद्र मोदी सरकार साफ़ झूठ बोलती है. ये जुमला चलाते हैं कि किसानों की आय दोगुनी कर देंगे. सरकार का कार्यकाल ख़त्म होने को आया है और अब तक इनको यह पता तक नहीं है कि किसानों की आय बढ़ी या नहीं बढ़ी.

सरकार की एक उपलब्धि है कि फसल बीमा योजना में सरकार का ख़र्चा साढे चार गुणा बढ़ गया लेकिन उसके दायरे में आने वाले किसानों की संख्या नहीं बढ़ी.

फसल बीमा योजना के तहत किए गए किसानों के दावों की संख्या इस सरकार में घट गई है. सरकार कहती है कि एमएसपी उसने डेढ़ गुणा कर दिया है, ये पूरी तरह झूठ है.

बुरे हालात के लिए कौन ज़िम्मेदार?

किसानों के आज जो हालात हैं उसके लिए किसी एक सरकार को ज़िम्मेदार ठहराना सही नहीं होगा. पिछले 70 सालों में कांग्रेस ने सबसे ज़्यादा सत्ता का सुख भोगा है, लेकिन देश के भले-चंगे किसान को बीमार बना के अस्पताल में भर्ती करवा दिया.

और मोदी सरकार ने उन बीमार किसानों को अस्पताल के वार्ड से आईसीयू तक पहुंचा दिया है. किसानों को उस आईसीयू से कैसे निकाला जाए, यह बड़ी चुनौती है.

किसानों की बदहाली का स्थायी इलाज सिर्फ़ ऊपर में चर्चा किए गए दो कानून नहीं हैं, पर ये उन्हें राहत ज़रूर दे सकते हैं.

अगर ये दो बिल पास हो जाते हैं तो किसानों की नाक, जो पानी में डूबी है वो पानी से ऊपर आ जाएगी. ये भी सच है कि ये दोनों क़ानून बनते हैं तो भी वो पूरी तरह पानी से नहीं निकल पाएंगे.

स्थायी इलाज अर्थव्यवस्था को बदलने से होगा. देश में जो सिंचाई की व्यवस्था है, उसे बदलने की ज़रूरत है. खेती के तरीकों के बदलने की ज़रूरत है.

 

Source: BBC