उल्लेखनीय है कि केंद्र की मोदी सरकार ने मई 2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आरम्भ की थी जिसे देश के 27 राज्यों में लागू किया गया था। किसानों के हित में केंद्र सरकार का यह अच्छा प्रयास था, लेकिन दो साल में ही व्यवस्थागत कमियों के चलते किसानों ने इससे किनारा करना शुरू कर दिया है। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि फसल बीमा की गिरावट वाले दस राज्यों में से आठ राज्य भाजपा शासित थे। इनमें मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश,राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्य भी शामिल हैं। देश भर में कुल 17 प्रतिशत की गिरावट आई है।
फसल बीमा के प्रति किसानों की अरुचि होने के कारणों में पहला कारण किसानों को इसकी पूरी जानकारी नहीं होना है। ऋणप्रदाता सहकारी समिति अथवा बैंक द्वारा नियुक्त बीमा कंपनियों के प्रतिनिधियों द्वारा पेश किए दस्तावेजों पर दस्तखत करवाने के अलावा और कोई विस्तृत जानकारी बीमा प्रतिनिधियों द्वारा प्राय: नहीं दी जाती है। ऋण लेने की जल्दबाजी और अज्ञानता के कारण भी किसान बीमे को लेकर कोई सवाल नहीं कर पाते हैं।
किसानों की प्रीमियम का भुगतान उनके बैंक खातों से होने से बीमा कंपनियां भी निश्चिंत हो जाती हैं और अपनी ओर से पूरी जानकारी नहीं देती हैं। दूसरा प्रमुख कारण किसानों के बीमा स्वत्वों का विलम्ब से भुगतान होना भी है। कोई प्राकृतिक आपदा होने के बाद संबंधित सरकारी विभागों और बीमा कम्पनी के जटिल मापदंडों से आसानी से बीमित फसल की राशि नहीं मिलती है। यदि मिलती भी हैं तो वह नुकसान की तुलना में ऊंट के मुंह में जीरा साबित होती है। इसीलिए किसानों की फसल बीमा करवाने के प्रति रूचि घटती जा रही है। यदि ऋणी किसानों के लिए फसल बीमे की अनिवार्यता नहीं होती तो यह आंकड़े और नीचे गिर जाते। इसलिए इस बीमा व्यवस्था की समीक्षा कर नियमों में ऐसे परिवर्तन करने चाहिए, ताकि किसानों को आसानी से बीमा स्वत्वों का भुगतान हो सके और किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान से बचने के लिए आर्थिक कवच मिल सके।
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स्रोत - Krishak Jagat