कृषि उत्पाद का 14 फीसदी हिस्सा नुकसान कर देते हैं नाशी जीव

November 20 2018

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में चल रहे तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी के दूसरे दिन मेरठ विवि के प्रो. एके चौबे ने कहा कि सकल कृषि उत्पाद का 35-40 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न नाशी जीवों एवं रखरखाव में कमी के चलते नष्ट हो जाता है। जिसका 14 प्रतिशत हिस्सा कीटों द्वारा नुकसान होता है। कीट परजीवी गोल कृमियों की अनगिनत प्रजातियां हैं जिनके प्रयोग द्वारा इनका नियमन किया जा सकता है।

बहरामपुर के प्रो. एके पाणिग्रही ने बताया कि भारत वर्ष में क्लोरोएल्कली उद्योग में पारे का प्रयोग कैथोड के रूप में होता है। पारा घातक मीनीमाटा रोग का कारण है। कुछ ऐसे एक कोशिकीय एवं बहुकोशिकीय पौधे होते हैं जिनके द्वारा जलीय पारे का निकाल कर पीने योग्य बनाया जा सकता है। देहरादून के डॉ. एम मुर्गानन्दम ने मत्स्य उत्पादन एवं प्रबन्धन की नई तकनीकों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मछलियों में कई रोग होते हैं। ठण्डे जल में पाये जाने वाली ट्राउट मछली के कई रोगों का निदान नैनो पार्टिकल ड्रग के डिलीवरी सिस्टम से किया जा सकता है।

भागलपुर बिहार के प्रो. एसपी राय ने बिहार के नम भूमि में एक्वाकल्चर, एक्वाफार्मिंग तथा कम्पोजिट फिस फार्मिंग द्वारा किसान अपनी आय बढ़ाया सकता है। उत्तरी बिहार में एयर ब्रीदिंग मछलियों की 15 देशज प्रजातियां, मखाने एवं सिंघाड़े के साथ संयुक्त फार्मिंग में पाली जा रही हैं। इन्हीं मछलियों के साथ केकड़े, घोंघे एवं झींगा मछली का भी पालन सफलता पूर्वक किया जा रहा है। लविवि के प्रो. राना प्रताप सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण पारिस्थितिकी तन्त्र में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं। जिससे मानव जाति को जहां स्वच्छ जल स्रोतों एवं भोजन की कमी होगी तथा एनर्जी की असुरक्षा भी सम्भव है। ऐसे में मानव निर्मित पारिस्थितिकी तन्त्र द्वारा पर्यावरण में संतुलन स्थापित किया जा सकता है।

इस अवसर पर मुंबई की हर्षिता, नेपाल की इशाराना, एटा के अब्दुल वारिक खां, जबलपुर के अरूण पाण्डेय, सूर्या मिश्र, दिलीप कौर सहित अन्य शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। पूनम खन्ना, संगीता, रेनू मौर्या, दिल्ली, कृष्ण कुमार प्रजापति, वर्षा सिंह, प्रियंका सिंह, कपिल डांगी ने पोस्टर प्रस्तुत किया।

पर्यावरणीय संतुलन रखने में विश्वविद्यालय दे सकते हैं महत्वपूर्ण योगदान

काठमांडू नेपाल के डॉ. दिलीप कुमार ने नेपाल में निर्मित इकोजोन्स की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय पर्यावरणीय संतुलन कायम करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। रोहतक की डॉ. विनीता शुक्ला ने केचुओं पर विषैले प्रदूषकों के प्रभाव पर विस्तार पूर्वक चर्चा करते हुए कहा कि इसके कारण केचुओं की जीवन प्रक्रिया दुष्प्रभावित होती है और जमीन की उर्वरा शक्ति भी कम होती है। बैरकपुर के डॉ. मनिरंजन सिन्हा ने कहा कि देश में लगभग 80 प्रतिशत मत्स्य उत्पादन कृषकों के व्यक्तिगत प्रयासों द्वारा सम्पन्न हो रहा है। मत्स्य पालन भारत वर्ष में आन्ध्र प्रदेश में सर्वाधिक होता है। पश्चिमी बंगाल एवं उत्तर प्रदेश में जलीय सम्पदा अधिक होने के कारण मत्स्य पालन की असीम सम्भावनाएं हैं। आवश्यकता है उचित योजना, तकनीकी सहयोग एवं सरकार के संरक्षण की।

Source: Live Hindustan