किसान स्टेकिंग विधि से सब्जियों की खेती करने पर कमा रहे हैं भरपूर मुनाफा

January 09 2019

सब्जियों की खेती के लिए मशहूर महोली ब्लॉक के सैकड़ो किसान परम्परागत तरीके से खेती करने के बजाय खेती की नई तकनीक अपनाकर मुनाफा कमा रहे हैं। सीतापुर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर महोली ब्लॉक के दर्जनों गांवों में इस समय रस्सी के सहारे बंधे टमाटर के पौधे दिखाई देते हैं। यहां के कई गांव के किसानों के लिए स्टेकिंग विधि फायदेमंद साबित हो रही है।

महोली ब्लॉक के अल्लीपुर गांव में टमाटर की खेती करने वाले किसान विनोद मौर्या (23 बर्ष) बताते हैं, कि हमारी तरफ बड़ी मात्रा में किसान सब्जियों की खेती करते हैं। शुरुआत में किसान पुराने तरीके से ही टमाटर, बैगन और दूसरी सब्जियों की खेती करते थे। लेकिन अब किसान स्टेकिंग तरीके से ही खेती करते हैं।

स्टेकिंग विधि से टमाटर की खेती करने के लिए बांस के डंडे, लोहे के पतले तार और सुतली की आवश्यकता होती है। पहले टमाटर के पौधों की नर्सरी तैयार की जाती है। इसमें तीन सप्ताह का समय दिया जाता है। इस दौरान खेत में चार से छह फीट की दुरी पर मेड़ तैयार की जाती है। स्टेकिंग में बांस के सहारे तार और रस्सी का जाल बनाया जाता है, जिस पर लताएं फैलतीं हैं।

महोली ब्लॉक के अल्लीपुर चौबे गांव के किसान इंद्रजीत मौर्या ने इस बार आठ बीघा में टमाटर लगाया है। इंद्रजीत बताते हैं, कि टमाटर की खेती बाजार पर निर्भर करती है, जिस हिसाब से मार्केट में दाम मिलता है, उसी हिसाब से फायदा होता है, लेकिन स्टेकिंग विधि से फसलों की सुरक्षा हो जाती है।

महोली ब्लॉक के लगभग 700 एकड़ क्षेत्रफल में बैगन, टमाटर, मिर्च, करेला, और लौकी जैसी सब्जियों की खेती होती है। यहां के किसानों के आय का मुख्य व्यवसाय सब्जियों की खेती ही है। इंद्रजीत आगे बताते हैं,’ परम्परागत तरीके से एक बीघा में टमाटर की खेती करने पर पांच हजार रूपये की लागत आती है, बहीं स्टेकिंग विधि से टमाटर की खेती करने पर बांस तार मजदूरी आदि को मिलाकर कुल लागत 20 हजार रूपये की आती है।

स्टेकिंग विधि से होता है फायदा

टमाटर, बैगन, मिर्च, करेला जैसी फसलों को सड़ने से बचाने के लिए उनको सहारा देना जरुरी होता है। टमाटर का पौधा एक तरह का लता होती है, और लदे हुए फलों का भार सहन नहीं कर पाते हैं, और नमी की अवस्था में मिटटी के पास रहने से सड़ जाते हैं।

सहारा देने की विधि 

मेड़ के किनारे-किनारे लगभग दस फीट की दूरी पर दस फीट ऊँचे बांस के डंडे खड़े कर दिए जाते हैं। इन डंडों पर दो-दो फीट की ऊंचाई पर लोहे का तार बांधा जाता है। उसके बाद पौधों के सुतली की सहयता से उन्हें तार से बांध दिया जाता है जिससे ये पौधे ऊपर की ओर बढ़ते हैं। इन पौधों की ऊंचाई लगभग आठ फीट हो जाती है, इससे न सिर्फ पौधा मजबूत होता हैं, फल भी बेहतर होता है। और साथ ही फल सड़ने से बच भी जाता है

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स्रोत - Kishan Khabar