कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर बढ़ने से चावल और गेहूं जैसी मुख्य फसलों की पौष्टिकता में कमी

August 31 2018

कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर में वृद्धि के कारण चावल और गेहूं जैसी मुख्य फसलों की पौष्टिकता कम हो रही है। परिणामस्वरूप वर्ष 2050 तक करोड़ों भारतीयों में पोषक तत्वों की कमी का संकट हो सकता है। यह बात एक अध्ययन में सामने आई है। अमेरिका के हार्वर्ड टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने पाया है कि मानव गतिविधियों से कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर में हो रही वृद्धि से दुनिया भर में 17.5 करोड़ लोगों में जिंक और 12.2 करोड़ लोगों में प्रोटीन की कमी हो सकती है।

‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि एक अरब से अधिक महिलाओं और बच्चों के आहार में लौह तत्व की उपलब्धता में भारी कमी हो सकती है। इससे एनीमिया और अन्य बीमारियों की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है।

अध्ययन में पाया गया है कि भारत को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है और करीब पांच करोड़ लोगों में जिंक की कमी होने का अनुमान है। शोधकर्ताओं के मुताबिक भारत में 3.8 करोड़ लोगों में प्रोटीन की कमी हो सकती है और लौह तत्वों में कमी के कारण 50.2 करोड़ महिलाओं और बच्चों को खतरा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि दक्षिण एशिया, दक्षिणपूर्व एशिया, अफ्रीका व पश्चिम एशिया के अन्य देशों पर भी इसका विशेष प्रभाव देखने को मिल सकता है।

हार्वर्ड टीएच चान स्कूल में मुख्य शोध वैज्ञानिक सैम मायर्स कहते हैं कि हमारी रोजमर्रा की गतिविधियां जैसे हम घरों को कैसे गर्म रखते हैं, खाने में क्या लेते हैं, आवागमन के लिए कैसे वाहनों का प्रयोग करते हैं और यहां तक कि हम क्या खरीदते हैं, इन सबका असर हमारे आहार पर पड़ रहा है। इससे उनकी पौष्टिकता कम हो रही है। इसकी सबसे ज्यादा कीमत भावी पीढ़ी को चुकानी पड़ेगी।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, आमतौर पर इंसानों में पोषक तत्वों का मुख्य स्रोत फसलें हैं। सब्जियों से हमें 63 फीसद प्रोटीन, 81 फीसद आयरन और 68 फीसद जिंक प्राप्त होता है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि जब फसलें कार्बन डाईऑक्साइड 550 पीपीएम के स्तर में पैदा होती हैं तो इस गैस के 400 पीपीएम के स्तर की तुलना में उनमें प्रोटीन, आयरन और जिंक की मात्रा तीन से 17 फीसद तक कम होती है। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस सदी के मध्य में यानी 2050 के करीब कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर 550 पीपीएम तक पहुंच जाएगा। इससे दुनिया की 1.9 फीसद आबादी को जिंक और 1.3 फीसद आबादी को प्रोटीन की कमी से जूझना पड़ेगा।

Source: Krishi Jagran