औषधीय पौधों का बढ़ा रकबा, कृषि विश्वविद्यालय में 130 पौध की पैदावार

January 25 2019

प्रदेश में हर्बल खेती को बढ़ावा देने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में हर्बल मेडिशनल प्लांट की खेती का रकबा बढ़ा दिया गया है। पिछले वर्ष की मुताबिक विश्वविद्यालय में लगभग दो एकड़ में खेती शुरू की गई है, जिसमें औषधी के सभी पौधों को शामिल कर पैदावार की जा रही है। औषधीय पौधों से किसानों की आय में बढ़ोतरी करने के लिए विवि समेत जिले के कृषि विज्ञान केंद्रों में पौधे लगाए जा रहे हैं। ज्ञात हो कि औषधीय गार्डन इन दिनों किसानों के बीच काफी मशहूर हो रहा है। किसानों के बीच की बढ़ती लोकप्रियता का कारण है किसानों को मेडिशनल प्लांट गार्डन से हर्बल खेती के बारे में जानकारी दी जा रही है। वहीं कृषि वैज्ञानिक किसान से नई तकनीक सीखकर खेतों में भी मेडिशनल गार्डन तैयार कर रहे हैं।

घर पर मेडिशनल गार्डन बना रहे हैं

कई तरह के मेडिशनल प्लांट से निकलने वाले तेल के बारे में किसान अब जागरूक हो रहे हैं । इसकी खेती करना पसंद कर रहे हैं। तकनीक के माध्यम से खेती करने से किसानों कि आय में भी बढ़ोतरी हो रही है। अकास्टीय लघु वनोपज केंद्र, कृषि वैज्ञानिकों की माने तो इस गार्डन से कई किसान लाभान्वित हो रहे हैं । ज्यादा फायदा पहुंचाने वाली प्रजातियों की खेती से भी जुड़ रहे हैं। इसके साथ ही आम लोग भी यहां से औषधीय पौधों को खरीदकर अपने घर पर मेडिशनल गार्डन बना रहे हैं।

130 औषधीय पौधों का संरक्षण

विश्वविद्यालय जनसंपर्क अधिकारी संजय नैयर ने बताया कि विभाग में प्रदेश ही नहीं, बल्कि जापानी प्रजातियों का भी संरक्षण जोरों से किया जा रहा है। इन औषधीय पौंधो का प्रयोग कई तरह की दवा बनाने के लिए किया जाता है। वहीं राज्य के आंचलिक क्षेत्रों में किसान कई पौधों कि खेती कर रहे हैं। औषधीय उद्यान वाटिका में 130 से ज्यादा सुगंध वाले और औषधीय पौधों का संरक्षण किया जा रहा है। इसके साथ ही कृषि विज्ञान केंद्र किसानों को इन पौधों की प्रशिक्षण और पौधों से कैसे तेल निकाला जाए इसमें अग्रसर भूमिका निभा रहा है। वहीं इन प्रजातियों में कुछ लुप्त होती प्रजातियां भी हैं।

हर्बल गार्डन में लगीं प्रमुख औषधियां

औषधि वाटिका की स्थापना का मुख्य उद्देश्य प्रदेश के विभिन्ना क्षेत्रों में पाई जाने वाली वनस्पतियों को सुरक्षित रखना है। इसलिए अश्वगंधा, चित्रक, अकरकरा, चिरचिरा, बायडिंग, ब्राम्ही, पाषाणभेदी, गिलोय, गुडमार, घृतकुमारी, मुसली, एलोवीरा, हरी चाय पत्ती आदि की उत्पादन पर विशेष ध्यान रखा गया है।

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स्रोत: Nai Dunia