एक किलो चावल से शुरू हुई जिंदगी ने ऐसे पाया संपन्नता का मुकाम

April 03 2018

बालाघाट - कहते हैं की बूंद-बूंद से घड़ा भरता है और इसी कहावत को सच कर दिखाया है बालाघाट में बेनेगांव के छह भाइयों ने, जिन्होने एक किलो चावल से अपनी जिंदगी की शुरुआत की थी और सब्जी के कारोबार में महारत हासिल करते हुए मेहनत की मिसाल कायम करते हुए संपन्नता हासिल की।

एक-एक किलो चावल देकर पिता ने किया अलग-

जिले के लांजी विकासखंड के ग्राम बेनेगांव में मुख्य सड़क के किनारे ही पिताम्बर महेश्वरे का मकान है। पिताम्बर के 6 बेटे दिनेश, नरेन्द्र, करूणाकरण, जयनारायण, विनोद और सुरेन्द्र हैं, जो अब अपने स्वयं के खेतों में सब्जियों की खेती करते है।

पिताम्बर ने अपने बेटों के बड़े होने पर शादी करने के बाद उन्हें अपनी मेहनत से कमाने के लिए एक-एक किलो चावल देकर अलग कर दिया था, लेकिन अपनी स्वयं की खेती अपने बेटों को नहीं दी थी। पिता से अलग होने के बाद सभी 6 भाइयों का अलग-अलग परिवार हो गया।

सभी भाइयों को अपना परिवार पालने के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ा। वे लोग गांव के ही अन्य किसानों के खेतों पर काम करके अपना परिवार पालते रहे। कुछ सालों के बाद जब पिता पिताम्बर को लगा कि उसके बेटे अपनी मेहनत से कमाने-खाने में सक्षम हो गए है तो उन्होंने अपनी स्वयं की खेती की जमीन सभी 6 बेटों में बराबर बांट दी।

शुरु की सब्जी की खेती-

पिताम्बर के बड़े बेटों दिनेश और नरेन्द्र ने बताया कि उनके पिता ने जब उन्हें अपनी जमीन खेती करने के लिए दी तो सभी भाइयों ने अपने-अपने हिस्से के खेतों में सब्जियों की खेती करना प्रारंभ किया। सब्जियों की खेती के लिए उद्यान विभाग के अधिकारियों का उन्हें हर समय मार्गदर्शन मिला है।

सभी भाई अपने खेतों में धान की खेती नहीं करते हैं, बल्कि वे बैगन, टमाटर, मिर्ची, भिंडी, पोपट, पालक, चौलई, उड़द की खेती करते हैं और अपने खेतों में नए-नए प्रयोग करते रहते है। दिनेश व नरेन्द्र ने बताया कि उन्होंने नया प्रयोग करते हुए बैगन के पौधों के बीच में उड़द की फसल लगाई है। सभी भाई सब्जियों की खेती में इतने पारंगत हो गए है कि बैगन, टमाटर, मिर्ची, भिंडी व अन्य सब्जियों की विभिन्न प्रजातियों के नाम मुंह-जबानी याद है।

बाजारों में स्वयं जाते हैं बेचने--

सभी भाई अपने खेतों में निकलने वाली सब्जियां दलालों के माध्यम से नहीं बेचते है, बल्कि स्वयं लांजी व आसपास के साप्ताहिक हाट-बाजारों में सब्जियां बेचने जाते है। दिनेश व नरेन्द्र ने बताया कि जब पिता ने उन्हें अलग कर दिया था तो वे लोग गांव में ही दूसरों के खेतों में काम करते रहे, लेकिन अपना गावं छोड़कर कमाने के लिए बाहर नहीं गए।

आज सभी भाई सब्जियों की खेती से अच्छी कमाई कर रहे है। सभी भाईयों के सीमेंट-कांक्रीट के पक्के मकान बन गए है। सबसे बड़े भाई का मकान देखकर तो लगता है कि वह किसी बड़े आसामी का मकान होगा। सभी भाई अपने बधाों से खेती के काम में मदद लेते है और उनको पढ़ा भी रहे है।

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Source: Nai Dunia