अब आप भी कर सकते है डंक रहित मधुमक्खी पालन..

October 14 2017

Date: 14 October 2017

पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने डंकरहित मधुमक्खी जिसे डामर मधुमक्खी भी कहते हैं, को पालने की तकनीक विकसित कर ली है।

विभाग की वैज्ञानिक एवं मधुमक्खी पालन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र पर सहायक निदेशक, डॉ. पूनम श्रीवास्तव ने बताया कि डंकरहित मधुमक्खी (टेटरागोनुला इरीडीपेनिस) भी भारतीय मौन एवं इटालियन मौन की भांति एक सामाजिक कीट है। उत्तर भारत में यह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, उत्तराखण्ड व उत्तर पूर्वी एवं दक्षिण भारत के सभी राज्यों में पुराने पेड़ों की खोखल एवं मकान की दीवारों की खोल में पाई जाती हैं।

दक्षिण भारतीय राज्यों में इसके लिए जलवायु अनुकूल होने के कारण विगत कई वर्षों से इसका पालन पेटिकाओं में किया जा रहा है। डामर मधुमक्खी की शहद उत्पादन क्षमता यद्यपि इटालियन एवं भारतीय मौन की अपेक्षा कम है लेकिन इससे प्राप्त शहद की औषधीय गुणवत्ता काफी अधिक सिद्ध हुई है जिसके कारण इसका मूल्य भी सामान्य शहद की अपेक्षा 8 से 10 गुना अधिक है।

उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में विगत कई वर्षों से डामर मधुमक्खी पालन पर किए जा रहे अनुसंधान के फलस्वरूप उत्तर भारत में इस प्रजाति को पेटिकाओं में पालन किए जाने की तकनीक विकसित कर ली गई है। उनके द्वारा यह भी आशा व्यक्त की गई कि डामर मधुमक्खी पालन को किसानों द्वारा व्यावसायिक रूप से अपनाने हेतु अगले वर्ष तक संपूर्ण तकनीक उपलब्ध करा दी जाएगी। डंकरहित होने के कारण इस प्रजाति का पालन महिलाओं द्वारा भी आसानी से किया जा सकता है।

शहद के अतिरिक्त डामर मधुमक्खी से पराग एवं प्रोपोलिस भी प्राप्त किया जा सकता है। विभिन्न फसलों जैसे सूरजमुखी, सरसों, अरहर, लीची, आम, अमरूद, नारियल, कोफ़ी, कद्दूवर्गीय सब्जियां आदि में परागण क्रिया कर उत्पादन वृद्धि में भी इस मधुमक्खी का महत्वपूर्ण योगदान है। निदेशक अनुसंधान केंद्र, डॉ. एस. एन. तिवारी ने बताया कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित तकनीक से डामर मधुमक्खी पालन से बहुउपयोगी शहद का उत्पादन कर किसानों द्वारा अपनी आय में वृद्धि की जा सकती है।

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Source: Krishi Jagran