नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटेशियम आधारित उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग पर्यावरण प्रदूषण का कारण बन रहा है. साथ ही उर्वरकों पर सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी के दुरपयोग के मामले भी देखने को मिलते हैं. अब भारतीय वैज्ञानिकों ने चावल की नई किस्मों की पहचान की है जो नाइट्रोज़न के अनुकूल है. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् ने इस संबंध में एक शोध प्रकाशित किया है.
अध्ययन से यह भी पता चलता है कि मिट्टी में यूरिया और नाइट्रेट जैसे नाइट्रोजन यौगिक चावल के बीज के अंकुरण के लिए आवश्यक समय बढ़ा सकते हैं. साथ ही उनकी जड़ की लंबाई को भी सीमित कर सकते हैं. यह रिपोर्ट फ्रंटियर इन प्लांट साइंस जर्नल में प्रकाशित की गई है. इस शोध को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने मिलकर किया है.
शोधकर्ताओं ने 21 चावल की किस्मों का सर्वेक्षण किया और अंकुरित होने के समय उन्हें धीमा (पनवेल 1, त्रिगुना और विक्रमार्य) और तेज़ (आदित्य, निधि और स्वर्णधन) के रूप में वर्गीकृत किया. इसमें यह पाया गया कि सभी किस्मों को अतिरिक्त नाइट्रोजन यौगिकों के साथ पूरक मिट्टी में अंकुरित होने में अधिक समय लगता है. हालांकि, देरी की अवधि धीमी अंकुरित किस्मों के लिए अधिक है क्योंकि वे अधिक नाइट्रोजन उत्तरदायी हैं और नाइट्रोजन यौगिकों का प्रभावी ढंग से उपयोग करते हैं.
इसके अलावा, धीमी अंकुरित किस्मों (लंबी अवधि की किस्मों) ने तेजी से अंकुरित किस्मों (लघु अवधि किस्मों) की तुलना में अतिरिक्त यूरिया के साथ आपूर्ति नहीं किये जाने पर बेहतर उपज दी.
यह शोध इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सुझाव देता है कि नाइट्रोजन-उपयोग दक्षता का प्रदर्शन करने वाली फसल, विभिन्न किस्मों का एकीकरण और पर्यावरण में उर्वरक भार को कम करेगा. साथ ही इन किस्मों को गरीब मुल्कों में भी कुशलता से उगाया जा सकता है जिससे उन्हें उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी.
Source: Krishi Jagran

 
                                
 
                                         
                                         
                                         
                                         
 
                            
 
                                            