बकरियों के लिए अच्छे चारा की समस्या आज भी आम बात है। इस संगर्भ में केंद्रीय बकरी अनुसंधान केंद्र, मथुरा के वैज्ञानिक डोरी लाल गुप्ता एवं राजकुमार सिंह का मानना है कि बकरियों को चराने का कार्य प्रमुख रूप से बेकार पड़ी जमीन पर किया जाता है।
उनके अनुसार बकरियों के चरने वाली जमीन वर्षा पर आधारित होती है। हरे चारे की उपलब्धता सिर्फ बरसात के ही महीने में होती है। इसके अतिरिक्त भूमिहीन एवं सीमान्त किसान चारे की खेती नहीं कर पाते। तो वहीं बकरियों के चारा हेतु अच्छी किस्मों का अभाव है। वास्तव में किसानों को गैर परंपरागत चारा स्रोतों के बारे में ज्ञान भी नहीं है। जो भी चारा फसल उपलब्ध है उनमें सिंचाई के संसाधनों का अभाव भी एक प्रमुख कारण है।
किसानों द्वारा चारा की फसल में कम रुचि ली जा रही है। चारा के अंतर्गत बकरियों को इससे मिलने वाले पौष्टिक तत्वों की जानकारी भी किसानों को नहीं है।
चारा उत्पादन के साथ-साथ उचित मात्रा में भंडारण की समस्या है। चारा फसलों के लिए प्रमाणीकृत बीजों की उपलब्धता न होने के कारण किसानों को समस्या उठानी पड़ती है। इन कारणों की वजह से बकरीपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। यदि अच्छे चारा बकरियों को मिले तो आज के समय में बकरीपालन से निश्चित ही किसान दोगुना से चारगुना लाभ उठा सकता है। व्यावसायिक दौर में बकरीपालन के जरिए किसानों को अच्छा लाभ मिलना स्वाभाविक है।
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Source: Krishi Jagran