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बीबीसी ने अंग्रेज़ दीदी के नाम से मशहूर फ्रेडरिक ब्रुइनिंग की कहानी एक साल पहले प्रकाशित की थी. पद्म पुरस्कार पाने के बाद फ्रेडरिक ब्रुइनिंग ने गायों की सेवा के लिए मिले इस सम्मान पर भारत सरकार और बीबीसी दोनों को धन्यवाद दिया है.
61 साल की ब्रुइनिंग ने बीबीसी से बातचीत में कहा, मेरे पास गृह मंत्रालय से एक फ़ोन आया था कि आपको ये पुरस्कार दिया जा रहा है. इसके अलावा अभी तक मेरे पास कोई जानकारी नहीं आई है. अख़बारों में जो लिस्ट छपी थी उसमें मेरा नाम लिखा था. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि सरकार ने गायों की सेवा करने के हमारे काम को पहचाना और उसे सम्मान दिया."
फ्रेडरिक ब्रुइनिंग जर्मनी में अपना घर परिवार सब कुछ छोड़कर मथुरा में पिछले चालीस साल से बीमार गायों की सेवा कर रही हैं.
उनकी गौशाला में सैकड़ों गाय और बैल हैं. इनमें से ज़्यादातर वो गाय हैं जिन्हें उनके मालिकों ने छोड़ दिया है. मथुरा में लोग उन्हें सुदेवी माता के नाम से जानते हैं.
जर्मनी के बर्लिन शहर से भारत में पर्यटक के तौर पर घूमने के मक़सद से आईं फ्रेडरिक ब्रुइनिंग को मथुरा शहर इतना भाया कि पहले तो उन्होंने यहीं दीक्षा लेकर गुरु के आश्रम में रहने का फ़ैसला किया और फ़िर बाद में एक घायल बछड़े की वेदना ने उन्हें इतना पीड़ित किया कि वो यहीं रहकर गायों की सेवा में लीन हो गईं.
फ्रेडरिक ब्रुइनिंग बताती हैं कि वो चालीस साल पहले यहां आईं थीं और भारत के अलावा श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया और कई अन्य जगहों पर भी गईं लेकिन मथुरा और वृंदावन से वो इतनी प्रभावित हुईं कि फिर यहां से जाने का मन नहीं किया. हालांकि साल में कम से कम एक बार वो अभी भी अपने शहर ज़रूर जाती हैं.
1200 गायों की गोशाला
मथुरा में गोवर्धन पर्वत के परिक्रमा मार्ग के बाहरी ग्रामीण इलाक़े में क़रीब 1200 गायों की एक गौशाला है. वैसे तो व्रज के इस इलाक़े में कई बड़ी गौशालाएं हैं, लेकिन सुरभि गौसेवा निकेतन नाम की इस गौशाला की ख़ास बात ये है कि यहां वही गायें रहती हैं जो या तो विकलांग हैं या बीमार हैं या फिर किन्हीं कारणों से उनका कोई सहारा नहीं है.
अपने कर्मचारियों के बीच अंग्रेज़ दीदी नाम से बुलाई जाने वाली साठ वर्षीया फ्रेडरिक ब्रुइनिंग इस गौशाला का संचालन करती हैं. ब्रुइनिंग पिछले चालीस साल से यहां रह रही हैं और गायों की सेवा कर रही हैं.
धारा प्रवाह हिन्दी में ब्रुइनिंग बताती हैं, "तब मैं बीस-इक्कीस साल की थी और एक पर्यटक के तौर पर दक्षिण एशियाई देशों की यात्रा पर निकली थी. जब भारत आई तो भगवद्गीता पढ़ने के बाद अध्यात्म की ओर मेरा रुझान हुआ और उसके लिए एक गुरु की आवश्यकता थी. गुरु की तलाश में मैं ब्रज क्षेत्र में आई. यहीं मुझे गुरु मिले और फिर उनसे मैंने दीक्षा ली."
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स्रोत: BBC News