अब बांझ पशुओं की कोख में तैयार होंगी अधिक दूध उत्पादन वाली गाय-भैंस

January 18 2019

सरोगेसी मदर के कॉन्सेप्ट पर अब बांझ गाय और भैंस भी मां बन सकेंगी। बांझ पशुओं की कोख का इस्तेमाल अब अधिक दूध उत्पादन वाले पशुओं को पैदा करने के लिए होगा। ऐसे सांड/झोटे जिनकी बेटियों का दूध उत्पादन सबसे अधिक है। उनका सीमेन और अधिक दूध देने वाले चयनित पशु (गाय-भैंस) के अंडे को लैबोरेट्री में फर्टिलाइज करवाया जाएगा। भ्रूण तैयार होने के बाद उसे बांझ पशु की कोख में प्रत्यारोपित किया जाएगा, ताकि प्राकृतिक तरीके से बच्चा विकसित हो सके। इससे जो बछड़ी पैदा होगी, उसका दूध उत्पादन (माता-पिता के गुणों के अनुरूप) अधिक होगा।

इससे यह फायदा होगा कि एक अच्छी गाय या भैंस के अंडों से एक ही साल में 8 से 10 बेहतर बच्चे पैदा किए जा सकेंगे। इस काम के लिए लाला लालपत राय पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) को हरियाणा सरकार की ओर से इन वाइट्रो फर्टिलाइजशन एंड एम्ब्रीओ ट्रांसफर टेक्नोलॉजी (आइवीएफ एंड एटी तकनीक) नामक प्रोजेक्ट मिला है। आरकेवीवाई और हरियाणा सरकार इस प्रोजेक्ट को फंड करेंगे। बता दें कि इससे पहले आमतौर पर इंसानों में ही महिलाओं में आइवीएफ तकनीक का प्रयोग होता रहा है। पहली बार हरियाणा में पशुओं में भी इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है।

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पायलट प्रोजेक्ट में 1500 भ्रूण होंगे तैयार 

लुवास के अनुसंधान निदेशक डा. प्रवीन गोयल ने बताया कि लैबोरेट्री में भ्रूण तैयार कर बांझ पशुओं के गर्भ में प्रत्यारोपित किए जाएंगे। इस पायलट प्रोजेक्ट के पहले चरण में 1500 भ्रूण तैयार होंगे और उन्हें इतने ही गाय/भैंस के गर्भाश्य में प्रत्यारोपित किया जाएगा। ये पशु लुवास, गवर्नमेंट लाइव स्टॉक फार्म, गौशालाएं और कुछ किसानों के होंगे। इससे बड़ा फायदा यह होगा कि एक साथ बड़ी संख्या में बहुत अधिक उत्पादन देने वाले पशु तैयार किए जा सकेंगे। लुवास देश का सार्वजनिक क्षेत्र का पहला ऐसा संस्थान होगा, जो इतनी बड़ी संख्या में भ्रूण प्रत्यारोपण के पायलट प्रोजेक्ट पर काम करेगा। इसके लिए लैब की स्थापना एक कंपनी द्वारा विश्वविद्यालय में की जाएगी।

85 फीसद फीमेल होंगी पैदा

डा. गोयल के अनुसार गाय या भैंस के गर्भ में जो भ्रूण रखा जाएगा, उससे 85 फीसद से भी अधिक बच्चे फीमेल ही पैदा होंगे ताकि बछड़ियों या कटड़ियों की संख्या को बढ़ाया जा सके। बांझ के अलावा कम दूध देने वाले पशुओं में भी ये भ्रूण प्रत्योरोपित किए जा सकेंगे। आइवीएफ का पूरा काम विश्वविद्यालय के 10 वैज्ञानिकों की टीम देखेगी, जिनमें अलग-अलग विभागों के 7 वैज्ञानिक और 3 फील्ड वेटरनेरियन शामिल होंगे।

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ये होंगे फायदे 

  • बांझ पशु भी बच्चे को प्राकृतिक तरीके से बच्चे को जन्म दे सकेंगे। 
  • ये बच्चे पूरी तरह से ऐसे पशुओं के होंगे, जिनका दूध उत्पादन बाद में अधिक होगा। 
  • इससे फीमेल पशुओं की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी। 
  • जो बच्चे पैदा होंगे, उनके पिता, माता, वेट, उम्र आदि का पूरा डाटा रखा जाएगा।

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स्रोत - Jagran