हरियाणा का एक ऐसा गांव जहां कोई नहीं बेचता है दूध,जानिए क्यों?

January 02 2018

ये कहावत तो आपने भी सुनी होगी कि “ये म्हारा हरियाणा, जित् दूध दही का खाणा”। ये कहावत प्रदेश में भले ही कमजोर पड़ गई हो लेकिन मेवात के नूंह जिले का छपेड़ा गांव आज भी इसका मिसाल बना हुआ है। ये कहना गलत नहीं होगा कि आज भी इस गांव में दूध-घी की नदियां बहती हैं।

गांव में पानी की तरह मिलता है दूध

हरियाणा के छपेड़ा गांव के बारे में ये बात मशहूर है कि यहां ‘दूध’ पानी की तरह मिलता है। क्योंकि इस गांव के हर आंगन में गाय-भैंस मिल जाएंगी। और ऐसा इसलिए है कि यहां दूध बेचना अपशकुन माना जाता है। यानि इस गांव में आपको कोई भी व्यक्ति दूधिए का बिज़नेस करता नजर नहीं आएगा।

सेना में जाकर बढ़ा रहे हैं गांव का मान

परिवार के तमाम सदस्य, बेटा-बेटी या फिर बहू सब एक समान दूध-घी का सेवन करते हैं। बड़ी बात ये है कि हरियाणा के छपेड़ा गांव में गरीबों और जरुरत मंदों को भी ज़रुरत के हिसाब से फ्री में घी-दूध मिल जाता है। इस गांव के लम्बे-चौड़े कद-काठी के नौजवान हर भर्ती में अपनी ताकत का लोहा मनवाकर भर्ती हो जाते हैं और सेना व फोर्सेज में जाकर गांव का नाम रोशन करते हैं।

गांव की आर्थिक स्थिति भी है मजबूत

मिली जानकारी के मुताबिक लोगों पर नंद बाबा की ऐसी कृपा है कि हर घर में खुशहाली है। ट्रैक्टर, दूध, घी, दुधारू पशु से लेकर गांव की आर्थिक स्थिति ही मज़बूत नहीं है बल्कि गांव में विकास की भी बयार बहती है। एक अनुमान के अनुसार छपेड़ा गांव की आबादी करीब 5000 है। गांव के सभी लोग पशुओं को औलाद की तरह प्यार करते हैं। इस गांव में हाल-फिलहाल ही नहीं बल्कि सैकड़ों सालों से दूध की एक बूंद नहीं बिकी। छपेड़ा गांव के निवासी एक बुजूर्ग बताते हैं कि गांव के इतिहास में अगर किसी ने महंगाई और गरीबी से तंग आकर दूध बेचने की हिमाकत की, तो या तो पशु या फिर मालिक पर मानो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है।

खुले में शराब पीने पर भी है पांबदी

मज़ेदार बात ये भी है कि छपेड़ा गांव के लोगों ने आज तक दूधिया से या फिर किसी भी दूध बेचने वाली कंपनी का दूध उत्पाद कभी नहीं खरीदा है। छपेड़ा गांव के समीप चल रहे ईंट-भट्टों पर दूसरे राज्यों से आकर मजदूरी करने वाले गरीब परिवारों को छाछ के साथ-साथ, दूसरी जरुरत पर दूध भी मुफ्त और भरपूर मात्रा में मिल जाता है। यही नहीं गांव का कोई भी शख्स खुलेआम शराब का भी सेवन नहीं कर सकता है, अगर ऐसा कोई करता है तो उसके खिलाफ गांव की बिरादरी में उचित कार्यवाही की जाती है।

हिन्दू-मुस्लिम एकता का भी मिसाल है छपेड़ा

खास बात ये भी है कि आसपास के अधिकतर गांव मुस्लिम बाहुल्य हैं और छपेड़ा गांव जाट बाहुल्य हैं। ईद के मौके पर जब मुस्लिम आबादी के गांव में खीर बनाने के लिए दूध की किल्लत होती है तो सैकड़ों लोग छपेड़ा गांव से मुफ्त में दूध लाकर खीर बनाते हैं। जिसके कारण हिन्दू-मुस्लिम एकता की भी यह गांव मिसाल पेश कर रहा है। छपेड़ा गांव के करीब 200 युवा फौज-पुलिस की नौकरी कर रहे हैं। युवाओं में कसरत करने, दौड़ लगाने, कुश्ती करने का शौक है।

इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह कहानी अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है|

Source: Dairy Today