बिहार के किसान फेरोमोन ट्रैप के इस्तेमाल पर दे ध्यान…

January 23 2018

बिहार सरकार किसानों के लिए लगातार कुछ न कुछ घोषणा करती चली आ रही है. किसानों के लिए दलहनी फसल खासकर चना एवं मसूर के फसलों में फूल एवं फल लगना शुरू हो गया है. सर्वेक्षण के दौरान कहीं-कहीं पर फली छेदक कीट का आक्रमण भी देखा जा रहा है. फली छेदक कीट का प्रबंधन यदि समय से नहीं किया गया तो इससे फसल को काफी हानि हो सकता है. आज फली छेदक कीट के प्रबंधन के लिए सबसे सस्ता एवं सुलभ उपाय फेरोमोन ट्रैप है जो बिना रसायन का इस्तेमाल किये ही इन कीटों के नियंत्रण के लिए काफी है. फेरोमोन ट्रैप में एक ल्योर का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें संबंधित कीट के मादा का जननांग की खुशबूवाला गंध प्रयोगशाला के स्तर पर डालकर बनाया जाता है, जिसे गंधपाश भी कहते हैं.

इस पर बिहार के कृषि मंत्री ने कहा कि प्रत्येक कीट के लिए अलग-अलग ल्योर होता है.  इसलिए अलग-अलग कीट के नियंत्रण के लिए अलग-अलग ल्योर का इस्तेमाल किया जाता है, यानी फलीछेदक कीट के नियंत्रण के लिए फलीछेदक का ही ल्योर कारगर होगा.  फेरोमोन ट्रैप लगाने पर खेत में फैले इस कीट का नर कीट आकर्षित होकर इस फंदे में आकर फँसने लगते हैं. क्योंकि उन्हें अपने मादा कीट की होने का एहसास होता हैं. इस प्रकार नर एवं मादा कीट का मिलन नहीं हो पाता है जिससे इनके संख्या पर काफी नियंत्रण हो जाता है एवं इससे फसल का उत्पाद बिना रसायन के शुद्ध रूप में प्राप्त हो जाता है.

डॉ. कुमार ने कहा कि फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर 10 की संख्या में लगाया जाना चाहिए एवं प्रत्येक 21 दिन के बाद ल्योर को बदल देना चाहिए, ताकि यह सही काम करना रहे। फेरोमोन ट्रैप को फसल के लगभग 2 फीट ऊपर लगाना चाहिए. कृषि विभाग द्वारा फेरोमोन ट्रैप 90 प्रतिशत अनुदान पर दिये जा रहे हैं। विशेष जानकारी के लिए किसान भाई-बहन अपने नजदीक के पौधा संरक्षण केन्द्र, कृषि विज्ञान केन्द्र, सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण अथवा जिला कृषि कार्यालय से सम्पर्क कर सकते हैं.

इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह कहानी अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है|

Source: Krishi Jagran