बदलाव : राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का दायरा बढ़ाया गया..

November 02 2017

नई दिल्ली: खेती की दशा सुधारने और उसे लाभ का कारोबार बनाने के लिए सरकार ने एक और ठोस कदम उठाने का फैसला किया है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में बदलाव करते हुए उसके दायरे को बढ़ा दिया गया है। कृषि मंत्रालय के इस प्रस्ताव को बुधवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी दे दी गई। इस फैसले से कृषि के ढांचागत विकास और मंडियों के सुधार को बल मिलेगा वहीं कोल्ड स्टोरेज श्रंखला बनाने में सहूलियत होगी। खेती से जुड़े अन्य उद्यम में भी इसके मद से धनराशि आवंटित की जा सकेगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में इस मसौदे पर बुधवार को मुहर लगा दी गई। अब राष्ट्रीय कृषि विकास योजना को आरकेवीवाई-रफ्तार के नाम से जाना जाएगा। योजना का दायरा और नियमों में ढील दिये जाने से उपज की आपूर्ति, बाजारों की सुविधा और कृषि ढांचे के निर्माण के साथ कृषि क्षेत्र में उद्यमिता को रफ्तार मिलेगी। वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने की दिशा में सरकार का यह फैसला मुफीद साबित होगा।

यह फैसला अगले तीन सालों तक लागू रहेगा। आरकेवीवाई-रफ्तार में 15,722 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा। इसका उद्देश्य किसानों को मदद पहुंचाना, उन्हें प्राकृतिक जोखिम से बचाना और कृषि कार्यो को आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद बनाने के साथ कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देना शामिल है। इस मद से राज्यों को दी जाने वाली वित्तीय मदद में 60 फीसद हिस्सेदारी केंद्र और 40 फीसद राज्यों की होगी। जबकि पूर्वोत्तर के आठ राज्यों और तीन हिमालयी राज्यों में केंद्र की मदद 90 फीसद तक रहेगी और राज्यों को मात्र 10 फीसद तक मैचिंग ग्रांट के रूप में लगाना होगा। योजना में धन को खर्च करने के फॉमरूले को भी मंजूरी दी गई है। इसके मुताबिक सालाना वित्तीय आवंटन का 50 फीसद धन खेती के बुनियादी ढांचे पर खर्च किया जाएगा जबकि 30 फीसद मूल्यवर्धन और 20 फीसद हिस्से का राज्य अपनी जरूरतों के हिसाब से खर्च कर सकेंगे। कृषि उद्यमिता को प्रोत्साहित करने और नए तौर तरीके ईजाद करने को विशेष रियायत दी जाएगी।

तथ्य यह है कि आरकेवीवाई की शुरुआत 11वीं पंचवर्षीय योजना से जारी है। इसके तहत राज्यों को कृषि क्षेत्र में व्यय को प्रोत्साहित करने के लिए योजना निर्माण और अमल में राज्यों को पूरी स्वायत्तता दी गई है। राज्य अपने क्लाइमेटिक जोन के हिसाब से प्राकृतिक संसाधनों, फसलों के पैटर्न और प्राथमिकताओं का निर्धारण करते हैं। जिला कृषि योजना तैयार करते समय इसका पूरा ध्यान रखते हैं। राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के तौर पर पूर्वी राज्यों में दूसरी हरित क्रांति, फसल विविधीकरण, मिट्टी सुधार योजना, खुरपका-मुंहपका रोग नियंत्रण कार्यक्रम, केसर मिशन व त्वरित चारा विकास जैसे कार्यक्रम चलाये जाते हैं।

आरकेवीवाई की मूल्यांकन की अंतरिम रिपोर्ट बताती है कि इसकी वजह से लगभग सभी राज्यों में कृषि की उत्पादकता और कृषि से जुड़े उद्यम को प्रोत्साहित करने में मदद मिली है। इसकी सफलता को देखते हुए सरकार ने इसमें बदलाव करते हुए इसे और प्रभावी बनाने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है।

मंत्रिमंडल के एक अन्य फैसले में सरकार ने गन्ने से तैयार एथनॉल के मूल्य में दो रुपये प्रति लीटर की वृद्धि करने का फैसला किया है। एथनॉल को पेट्रोल में मिलाकर तेल कंपनियां बेचती हैं। एथनॉल का मूल्य बढ़कर 40 रुपये प्रति लीटर हो जायेगा। चीनी मिलों को उनके एथनॉल का बढ़ा हुआ यह मूल्य एक दिसंबर से मिलना शुरू होगा। संशोधित मूल्य एक दिसंबर 2017 से 30 नवंबर 2018 तक मान्य होगा। सरकार ने पिछले साल ही पेट्रोल में मिलाने वाले एथनॉल के मूल्य में संशोधन करने का फॉर्मूला तय किया था। इसके तहत एथनॉल का मूल्य खुले बाजार में चीनी के मूल्य और बाजार में मांग व आपूर्ति के हालात को देखते हुए किया जाता है। हालांकि एथनॉल के मूल्य में साल दर साल कई तरह के उतार-चढ़ाव हुए हैं।

इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह कहानी अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है|

Source: Dairy Today