कोई आया शिकागो से तो किसी ने छोड़ी नेवी की नौकरी, अब सीख रहे ज़ीरो बजट खेती

December 27 2017

लखनऊ। आठ साल शिकागों में रहने के बाद वैश्वी सिन्हा भारत वापस आकर जीरो बजट खेती के गुर सीखकर खेती कर रही हैं। वैश्वी की तरह बिहार के धर्मेन्द्र सिंह ने नेवी की नौकरी छोड़कर जहरमुक्त खेती करने की ठानी है तो वहीं नेपाल के यशवंत पौडेल जापान की नौकरी छोड़कर पिछले दो वर्षों से विषाक्त मुक्त खेती कर रहे हैं। ये बदलते भारत के वो युवा हैं जिन्होंने मल्टीनेशनल कम्पनियों में नौकरी छोड़ जहर मुक्त खेती करने की ठान ली है।

"गोल्फ खिलाड़ी 18 साल से हूँ, इसलिए भोजन की पौष्टिकता पर हमेशा से ध्यान रहा। आठ साल शिकागो में रही, जब अपने देश वापस आयी तो लगा कि भोजन की गुणवत्ता बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।” ये कहना है वैश्वी सिन्हा (27 वर्ष) का।

वो आगे बताती हैं, "ऑफिस में बैठकर नौकरी करना पसंद नहीं आया। पापा के एक मित्र ने 40 एकड़ जमीन हमें करने को दी है। पिछले साल से जीरो बजट खेती पर कई प्रशिक्षण लिए। तीन महीने से खेती करना जीरो बजट से शुरू कर दी है।” वैश्वी एक आईएएस ऑफीसर की बेटी हैं। इनका खेती से कोई जुड़ाव नहीं था पर अभी ये नोयडा में रहकर खेती कर रही हैं।

वैश्वी की तरह कई लोग प्राकृतिक खेती अलग-अलग प्रोफेशन छोड़कर कर रहे हैं। बिहार से आये धर्मेन्द्र सिंह (30 वर्ष) का कहना है, “मेरी माँ को थायराइड और पापा को ब्लडप्रेशर की शिकायत है। मैंने ऐसे कई लोगों को कई बीमारियों से ग्रसित देखा है जब वजह जानने चाही तो पता चला कि हम अपने खाने में हर दिन जहर खा रहे हैं। खेतों में अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग से प्रतिदिन लगभग 10 ग्राम जहर हमारे अन्दर जाता है।”

धर्मेन्द्र को यही बात परेशान करने लगी कि अगर हम बहुत पैसा कमा रहे हैं पर हमे शुद्ध भोजन नहीं मिल रहा है तो हमारा कमाना बेकार है। जिसकी वजह से इन्होंने नेवी की नौकरी छोड़ दी। वो बताते हैं, “अगर मैंने शुद्ध भोजन करना शुरू कर दिया और लोगों को जहरमुक्त देना शुरू कर दिया तो ये मेरी जिन्दगी की सबसे बड़ी कमाई होगी, ये बदलाव अगर हम लोग नहीं करेंगे तो कौन करेगा।”

लखनऊ के भीमराव विश्वविद्यालय के आडोटोरियम में खेती के गुर सीखने आये किसान 

लखनऊ के भीमराव विश्वविद्यालय के आडोटोरियम में 20 से 25 दिसम्बर तक चलने वाले छह सुभाष पालेकर के के जीरो बजट की खेती के तौर-तरीके सीखने देश के कई हिस्सों से युवाओं ने भाग लिया था। ये वो युवां है जो मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने के बाद अब देशी खेती की तरफ रुझान बढ़ा रहे हैं।

शून्य लागत पर देशभर में प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दे रहे सुभाष पालेकर युवाओं का रुझान खेती की तरफ क्यों बढ़ा इस बारे में उनका कहना है, “पहले उद्योगों से रोजगार मिलता था जबसे ये मशीनें बन गयी हैं तबसे युवाओं को रोजगार नहीं मिलता है। खेती करने से न सिर्फ इन्हें शुद्ध भोजन मिलेगा बल्कि युवा इससे उद्योग भी खड़ा करेंगे, जिससे तमाम नये लोगों को रोजगार मिलेगा।”

देश के युवा अलग-अलग प्रोफेशन छोड़कर अब जीरो बजट प्राकृतिक खेती सीखकर जहरमुक्त खेती कर रहे हैं। इनका कहना है कि हमें जहरमुक्त भोजन करना है और लोगों में जागरूकता फैलानी है कि वो भी जहर मुक्त भोजन करें और प्राकृतिक खेती करें।

नेपाल का एक युवा यशवंत पौडेल (38 वर्ष) ने जापान में कुछ साल नौकरी की इसके बाद नेपाल वापस आ गये। जब ये नेपाल वापस आये तो इनका ये देखकर मन बेचैन हुआ कि यहां का युवा बहुत ज्यादा पलायन कर रहा है। यशवंत पौडेल का कहना है, “मेरे देखते हुए हमारे देश का खाद्यान दूसरे देशो में निर्यात होता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्थिति ठीक विपरीत हो गयी है। आज हमारे देश में दूसरे देशों से खाद्यान सामग्री आने लगी है, पहले हम डेयरी का दूध खाते थे अब हम पैकेट बंद दूध पर पूरी तरह से निर्भर हो गये हैं।”

वो आगे बताते हैं, “पिछले दो साल से 16 हेक्टेयर जमीन में रसायनमुक्त खेती कर रहे हैं। हमारी कोशिश है हम नेपाल में जहरमुक्त बाजार बनाए देश के साथ-साथ दूसरों देशों को विषाक्त मुक्त भोजन उपलभ्ध कराएं।”

जीरो बजट खेती के प्रशिक्षक सुभाष पालेकर 

लोकभारती के सहयोग से भीमराव विश्वविद्यालय के आडोटोरियम में छह दिवसीय जीरो बजट खेती के प्रशिक्षण में देश के अलग-अलग हिस्सों से 1500 से ज्यादा किसान आये जिसमे सैकड़ों की संख्या में युवा शामिल हुए थे। नैनीताल से आयीं शगुन सिंह (35 वर्ष) ने दिल्ली से एमबीए करने के बाद 10 साल कार्पोरेट सेक्टर में काम किया। एक कम्पनी की मैनेजिंग डायरेक्टर भी बनी। तीन साल पहले नौकरी छोड़कर इनका रुझान गांव की तरफ बढ़ा।

ये अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “बंद कमरे में पैसा कमाना रास नहीं आ रहा था, नेचर से बहुत लगाव था। इसलिए खेती सीखने और सिखाने की ठान ली है। हम कई जगह से जीरो बजट खेती का प्रशिक्षण लेने जाते हैं इसके बाद ग्रामीणों से उनके अनुभव सीखते हैं और उन्हें नये अनुभव बताते भी हैं।”

नेपाल के पदम् दाहाल (29 वर्ष) इनकम टैक्स ऑफिस में काम करते हैं। ये नेपाल के पलायन को रोकने के लिए दो वर्षों से जीरो बजट खेती कर रहे हैं। ये खेती से ही युवाओं को रोजगार से जोड़ना चाहते हैं। ये बताते हैं, "अगर हम युवा ही जहर मुक्त उत्पादन नहीं करेंगे तो फिर सुधार कैसे होगा। अगर बदलाव लाना है तो हम सबको आगे आना होगा। अगर खेती को सही से किया जाए तो इसमें रोजगार की तमाम सम्भावनाएं हैं।”

नेपाल से आये युवाओं ने सीखे प्राकृतिक खेती के तरीके 

वहीं मेरठ से आयीं रागिनी निरंजन छह साल से बिजनेस कर रही हैं इनकी हैंडलूम कम्पनी सलाना दो करोड़ का टर्नओवर दे रही है। इनका कहना है, “किसान की बेटी हूँ, किसानी को बहुत करीब से देखा है, खेतों में पड़ रहा जहर अब बर्दास्त नहीं हो रहा है इसलिए कम्पनी के काम के साथ-साथ एक साल पहले वर्मी कम्पोस्ट बनाना शुरू किया था। अपने गांव के 10 किसानों को खेती की ट्रेनिंग दिलाने के लिए लेकर आये हैं जिससे ये लोग सीखकर करना शुरू करें।”

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Source: Gaonconnection