किसानों की आमदनी दोगुनी कर सकती है ‘जीरो बजट फार्मिंग’

December 19 2017

इसके साथ ही एक बाजार की श्रृंखला शुरू हो जाती है। खेतों में केमिकल के इस्तेमाल से पानी की अधिक आवश्यकता होती है, लगातार रासायनिक खाद के उपयोग से जमीन खराब हो जाती है। सबसे भयावह परिणाम यह है कि जो अधिक मात्रा में रसायन खेतों में डाले जा रहे हैं उस जहरीली खेती से पैदा होकर जो अन्न हमारी थाली में आ रहा है और शरीर के अंदर जा रहा है उससे लोग तरह-तरह की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।

इस कुचक्र में फंस के किसान की खेती की लागत इतनी बढ़ गई है कि जब वह फसल बेच कर लागत निकालता है तो आमदनी अठन्नी व खर्चा रुपैया जैसी हालत हो जाती है, इसीलिए किसान खेती छोड़ने का प्रयास करता है, और बच्चों को भी दूर रखना चाहता है। इस सब के बीच सुभाष पालेकर की जीरो बजट प्राकृतिक खेती एक उत्तम विकल्प है, किसान को बाजार से कुछ भी नहीं खरीदना पड़ता। किसान देशी गाय पालेगा, गोबर और गौमूत्र को इकट्ठा करेगा, उससे ही खेती के संपूर्ण संसाधन जुटाएगा।

इसमें किसान खेती की शुरुआत बीजामृत से करता है, इसके लिए गाय के गोबर और गौमूत्र से करता है, जीवामृत और घनजीवामृत आदि से जो फसल तैयार होगी उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी ज्यादा होती है कि बीमारी या कीटों का प्रकोप नहीं होता। इस पद्धति से खेती करने से शून्य लागत प्राकृति खेती (जीरो बजट फार्मिंग) कहते हैं। इसमें खेती में बाजार की लागत को शून्य करना है। दूसरा एक खेत में कई फसलों की खेती भी है। मतलब मुख्य फसल को शून्य पर लेना और सह-फसलों से लागत को निकालना होता है।

उत्तर प्रदेश में किसानों को शून्य लागत प्राकृतिक खेती के बारे में प्रशिक्षित करने के लिए 20 से 25 दिसंबर तक लखनऊ के भीमराव अंबेडकर विवि के सभागार में शिविर शुरू होगा। सुभाष पालेकर खुद छह दिन किसानों को प्रशिक्षित करेंगे। इसमें भारत के कोने-कोने से किसानों के अलावा मारीशस, बांग्लादेश, इजरायल और युगांडा जैसे देशों के किसान भी भाग ले रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के 841 ब्लॉकों से किसान आ रहे हैं, हर ब्लॉक से कम से कम एक किसान का चयन जरूर किया गया है। चयन के तीन मानक तय किए गए हैं- 1. किसान के पास देशी गाय होना, 2. किसान किसी न किसी सामाजिक गतिविध से जुड़ा हो 3. प्रयोगधर्मी हो।

हमारी कोशिश है कि आगे हर ब्लॉक में एक मॉडल किसान ऐसा बने कि जिसकी प्राकृतिक खेती के मॉडल को देखकर किसान समझ सकें। सरकारी तंत्र में बैठे लोग भी जुड़ें इसलिए संबंधित सभी विभागों को जोड़ने की कोशिश की गई है।

छह दिन चलने वाले इस प्रशिक्षण शिविर के दौरान प्राकृतिक खेती के अलग-अलग चरणों में अलग-अलग सेशन चलेंगे। सहफसली खेती के अलग-अलग मॉडल का सेशन होगा, सबसे लोकप्रिय मॉडल पंच स्तरीय बागवानी का सेशन होगा, सुभाष पालेकर जी का विशेष जल प्रबंधन मॉडल का सेशन होगा, इसमें पूरे खेत में पानी न देकर नालियों में पानी दिया जाता है। इसके बाद अंत में किसान कर्ज मुक्त कैसे हो इस पर चर्चा के साथ ही इस शिविर का समापन होगा। हमारी कोशिश है कि यह एक समाजिक आंदोलन बने और अधिक से अधिक किसान लाभान्वित हों।

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Source: Gaonconnection