इन 5 वजहों ने भी बढ़ाया भारत में पानी का संकट

March 20 2018

 हम बचपन से पढ़ते आए हैं कि भारत नदियों का देश है। हमारे पूर्वज पानी की अहमियत जानते थे इसीलिए हर शहर, गांव या कस्बा नदी के किनारे बसता था। जहां नदी नहीं वहां तालाब, पोखरे और बावड़ियां होती थीं। जनसंख्या के दबाव और विकास की दौड़ में समय के साथ तालाब भरते गए, बावड़ियां सूखती गईं और नदियां मैली होती गईं। पर हमारी यह सोच नहीं बदली कि भारत नदियों और तालाबों का देश है। लिहाजा, पानी का उपयोग और दुरुपयोग दोनों बढ़ते गए और अंतत: पानी का भयानक संकट हमारे सामने खड़ा हो गया।

पानी को लेकर हमारी लापरवाह सोच

आज भी अगर किसी को पानी की बर्बादी करने से रोकें तो उसे यह बात बड़ी मुश्किल से समझ में आती है कि जो पानी नाली में जा रहा है वह तुरंत वापस जमीन में नहीं पहुंचने वाला। ऐसा इसलिए कि पहले की तरह कच्ची जमीन बची नहीं हर तरफ कंक्रीट और डामर (पक्की सड़कें, गलियां) है। अगर किसी तरह पानी रिस कर जमीन के नीचे पहुंचा भी तो भी पानी खर्च करने की हमारी रफ्तार इतनी ज्यादा है कि आशंका है कि पानी के भंडार कुछ ही बरसों में खत्म हो जाएंगे।

इसलिए हमें समझना होगा कि पानी एक खत्म होने वाला, सीमित और साझा संसाधन है। हमारे बाथरूम के नल से टपकने वाला पानी सिर्फ हमारा नहीं है, इस पर आने वाली पीढ़ियों का भी हक है। पानी के प्रति जागरूकता बढ़ेगी तभी हम बेहतर जल प्रबंधन करने की ईमानदार कोशिश कर पाएंगे।

बढ़ती जनसंख्या, घटता पानी

सीधा सा गणित है, जैसे-जैसे इंसानों की तादाद बढ़ेगी पानी की मांग बढ़ेगी। इस समय दुनिया में इंसानों की आबादी 7.6 अरब है। अनुमान है कि 2050 में यह बढ़कर 10 अरब के आसपास हो जाएगी। इतने लोगों की जरूरतों के लिए धरती के पास पर्याप्त पानी नहीं है।

जल प्रबंधन की गैरमौजूदगी

पानी की कमी पर बहस से पहले बड़ा सवाल है कि जितना पानी हमारे पास है क्या हम उसका सही प्रबंधन कर पा रहे हैं। दुनिया भर में टूटी टोंटियों, पाइपों से लगभग 40 फीसदी ताजा पानी बर्बाद होता है। इसके अलावा, क्या हम पानी को ठीक से रिसाइकल कर रहे हैं? और क्या जल स्रोत में छोड़ने से पहले कचरे का ट्रीटमेंट हो रहा है? ये ऐसे सवाल हैं जिन्हें अब और नहीं टाला जा सकता क्योंकि यह गंदगी हमारे पास शेष बचे पानी को प्रदूषित कर रही है। सतह पर मिलने वाले पानी को तो साफ किया जा सकता है लेकिन अगर जमीन के नीचे पानी के भंडार प्रदूषित हो गए तो उन्हें साफ करना नामुमकिन है। वॉटर हारवेस्टिंग, वॉटर रीचार्जिंग जैसे मुद्दों पर सख्त कानून बनने चाहिए, इनके बारे में जनता को जागरूक किया जाना चाहिए।

खाली होता भूगर्भ जल

धरती पर मिलने वाले ताजे पानी का 30 फीसदी सतह के बहुत नीचे भूगर्भ जल के रूप में संग्रहित है। हर रोज पूरी दुनिया में सिंचाई के लिए, पीने और उद्योगों के इस्तेमाल के लिए इसी भंडार से पानी निकाला जाता है। धरती के सीने से पानी निकालने की दर इतनी तेज है कि बहुत जल्द इसके पूरी तरह से खत्म होने का खतरा मंडराने लगा है। समस्या यह है कि भूगर्भ जल में होने वाली यह कमी हमें बाढ़, आंधी, तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की तरह नंगी आंखों से नहीं दिखाई देती।

हालांकि India Water Tool Version 2 (IWT 2.0) नामका एक ऑनलाइन टूल इसमें हमारी मदद कर सकता है। यह हमें भूगर्भ जल समेत पानी के दूसरे स्रोतों की संभावित स्थिति बताता है और उसके जोखिमों से आगाह करता है। इसे www.indiawatertool.in पर जाकर देखा जा सकता है।

अनमोल पानी का कोई मोल नहीं

कहते हैं कि पानी का मोल प्यासा ही जानता है पर अफसोस यह है कि इसकी कीमत प्यास खत्म होने पर भुला दी जाती है। रोज ताजे पानी की बर्बादी होती है पर हमें तकलीफ तक नहीं होती। जरूरत है कि पानी की बर्बादी रोकी जाए, उसे इस्तेमाल करने के किफायती तरीकों का प्रचलन बढ़े। जैसे पारंपरिक सिंचाई या फ्लड इरीगेशन की जगह ड्रिप या स्प्रिंकलर से सिंचाई बढ़े, घरेलू काम-काज में पानी का अपव्यय रोकना सरकार की नहीं हमारी आपकी जिम्मेदारी है। ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि जो पानी हमें सरकारी पाइपलाइनों से सप्लाई होता है उसका नाममात्र का बिल आता है इसे सुसंगत बनाने की जरूरत है तभी इसकी बर्बादी की तरफ ध्यान जाएगा। खेतों की सिंचाई के लिए मुफ्त पानी की मांग करने की जगह हमें नहरों से सिंचाई पर ध्यान देना होगा।

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Source: Gaonconnection