इंग्लैंड में मोटी तनख्वाह की नौकरी छोड़ लौटे स्वदेश, अपनी मुहिम से बना रहे गाँवों को सशक्त

March 03 2018

कहते हैं सेवा ही जीवन है, सेवा ही समर्पण है एवं दूसरों के लिए जीना ही व्यक्ति का जीवन–दर्शन होता है। यह विचार कहीं न कहीं मानवता का सार बयां करता है। वास्तव में मानवता का सही अर्थ यही होता है कि व्यक्ति खुद के अलावा दूसरों के लिए भी सोचे एवं औरों के काम आये। यह सच है कि दूसरों की नि:स्वार्थ भाव से सेवा करना न केवल एक विशिष्ट संतुष्टि के भाव से व्यक्ति के मन को भरता है, बल्कि समाज में व्यक्ति को एक अलग पहचान भी दिलाता है। अगर कोई मनुष्य किसी भी रूप में समाज के उद्धार में अपना योगदान दे पाये तो यह एक उत्कृष्ट कार्य कहलाता है। आज-कल की भाग दौड़ भरी दुनिया में जहाँ अक्सर लोगों के पास खुद के लिए समय नहीं होता आज भी समाज में कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं, जो अपने अलावा देश के उस वर्ग के बारे में भी सोचते हैं जो कहीं न कहीं समाज के मुख्य धारा से अलग हैं।

आज हम एक ऐसे ही शख्स की बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिनका नाम अमिताभ सोनी है। इन्होंने विदेश में मिली नौकरी को छोड़कर अपने देश के आदिवासी युवाओं के उत्थान के लिए काम करना उचित समझा।

इंग्लैंड में मिली नौकरी को छोड़कर, आज आदिवासी युवाओं की भलाई में दे रहे हैं अपना अहम् योगदान

अमिताभ का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में हुआ था। वे इंदौर और भोपाल में ही पले बढ़े हैं। उनके पिता ब्रिगेडियर स्व. चंद्रप्रकाश सोनी, सेना में थे तो अमिताभ के अंदर शुरुआत से ही देश के प्रति समर्पण की भावना थी। इंटरनेशनल बिज़नेस में मास्टर डिग्री हासिल करने वाले अमिताभ को सामाजिक क्षेत्र में शुरू से ही काफी रूचि रही। पर 2003 में वे इंग्लैंड चले गए, वहां उन्होंने दस वर्षों तक सरकारी नौकरी की। अमिताभ ब्रिटिश सरकार के सोशल वेलफेयर बोर्ड लंदन यानी कि वहां के समाज कल्याण मंत्रालय में काम करते थे। काफी वर्षों का अनुभव बटोरने के बाद उनका मन अपने देश लौटने का हुआ। वे भारत लौटकर यहाँ के लोगों के लिए कुछ करना चाहते थे।

करीब साढ़े तीन वर्ष पहले जुलाई 2014 में वे सब कुछ छोड़कर इंग्लैंड से वापस भोपाल आ गए। आजकल अमिताभ निरंतर रूप से आदिवासी लोगों के शैक्षणिक और सामाजिक विकास के कार्यों में लगे हैं। वो यह मानते हैं कि कहीं न कहीं आदिवासी जन मुख्यधारा समाज से अलग–थलग पड़ गए और उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि आदिवासी प्रजाति को कैसे भी मुख्यधारा में लाया जाए और उनके जीवन स्तर में सुधर लाया जाए। अमिताभ इन्हीं मुद्दों पर हर संभव कदम उठा रहे हैं। युवा आदिवासियों को शिक्षा के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं और जो शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ हैं उन्हें अपनी तरफ से हरसंभव सहयोग दे रहे हैं। यहाँ तक की शिक्षित युवाओं को रोजगार मुहैया करवाने में भी वे अपनी तरफ से सहयोग दे रहे हैं।

भारत लौटने में लगा थोड़ा वक़्त, लेकिन देर आये दुरुस्त आये

केनफ़ोलिओज़ के साथ ख़ास बातचीत में अमिताभ ने बताया कि “मैं लंदन में सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट में काम करता था, जहाँ मैंने समाज से जुड़े तमाम पहलुओं के बारे में जाना, वहां के क्रिया-कलापों को समझा, सामाजिक विकास के लिए जरूरी बिंदुओं का ज्ञान प्राप्त किया। मैंने वहां की कार्य–प्रणाली को भी समझा, लोगों की समस्या को सरकार तक कैसे पहुँचाया जाए इस बारे में भी जाना“। वो आगे कहते हैं कि उन्हें शुरू से ही भारत आकर यहां के लोगों के लिए कुछ करना था, पर उन्हें वहां बहुत कुछ ऐसा सिखना था जिसका उपयोग वो यहाँ आकर कर सकें। आर्थिक रूप से भी उन्हें सुदृढ़ बनना था ताकि वो लोगों की मदद कर सकें। तो इन सब कारणों से उन्हें लौटने में थोड़ा ज्यादा वक़्त लग गया। लेकिन भारत आने के बाद से ही वो पूरी तरह कमजोर वर्ग के लोगों, खासकर आदिवासियों की भलाई के लिए कार्य करने लगे।

भोपाल से करीब 25 किलोमीटर दूर शुरू की अपनी मुहिम

मध्यप्रदेश के आदिवासी गांव भानपुर केकड़िया को उन्होंने अपना ठिकाना बनाया। अमिताभ ने यहां के आदिवासियों को स्वावलम्बी बनाने की पहल शुरू की। उन्होंने सबसे पहले लोगों को शिक्षा से जोड़ने का प्रयास शुरू किया और इसके लिए जागरुकता की शुरूआत सरकारी स्कूलों से की। उन्होंने गांव में ही आदिवासियों के लिए स्कूल भी खुलवाया है। गांव के युवाओं के पास रोज़गार नहीं था जिस वजह से वे रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन कर जाते थे। इसे रोकने व रोजगार मुहैया करवाने के लिए अमिताभ ने हर सम्भव प्रयास करने शुरू किये। उसके बाद उन्होंने भारत की पहली ऐसी आईटी कम्पनी खोली जिसे आदिवासी युवा स्वयं ही संचालित करते हैं। जनसहयोग से बनीं इस कंपनी का नाम ‘विलेज क्वेस्ट‘ रखा गया। इस कंपनी के माध्यम से उन्होंने बेसिक कम्प्यूटर प्रशिक्षण केन्द्र खोला जहां पर बच्चों को न केवल प्रशिक्षण दिया जाता है बल्कि डेटा एंट्री का काम दिलाकर रोजगार भी मुहैया कराया जा रहा है।

उनकी अभेद्य संस्था आदिवासियों का जीवन स्तर सुधारने में करती है मदद

अमिताभ ने दो साल पहले ‘अभेद्य‘ नाम की एक गैर सरकारी संस्था भी खोली है। जिसका मुख्य उद्देश्य है आदिवासियों का जीवन स्तर सुधारना, इसके जरिये वो उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ रहे हैं और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा भी उपलब्ध करवा रहे हैं। इसके माध्यम से स्कूल भी संचालित किये जा रहे हैं। हाल ही में यहाँ के बच्चों को बाहर के शिक्षकों की मदद से भी पढ़ाना शुरू किया गया है। कुछ सहयोगियों की मदद से अमिताभ ने इस स्कूल में बच्चों के लिए फर्नीचर, बैग, जूते, स्वेटर, कॉपी– किताबें जैसी सुविधाएं मुहैया करवाई है। यहां तक की स्कूलों में बच्चों को बेसिक तकनीकी ज्ञान के लिए कम्प्यूटर लैब की भी व्यवस्था करवाई।

अमिताभ अब आदिवासी गाँव के जल प्रबंधन के कार्यों में भी लगे हुए हैं। वे गर्मी के दिनों में सिंचाई के लिए पानी की होने वाली कमी की समस्या को कम करने की पहल कर रहे हैं। इसके लिए वे विभिन्न जगहों पर छोटे डैम, तालाब और झील बनाने की योजना भी बना रहे हैं, जहाँ बारिश का पानी संग्रहित हो सके। उसके अलावा वे आदिवासियों में आर्गेनिक फार्मिंग के प्रति भी जागरूकता बढ़ा रहे हैं ताकि गाँव में ही उन्नत खेती के प्रयास किये जा सकें।

आदिवासी लोगों के विकास व उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए अमिताभ जिस प्रकार का काम कर रहे हैं वह सचमुच क़ाबिले तारीफ़ है। वास्तव में उनके जैसे तमाम लोग हमारे आस-पास के समाज में बदलाव की एक अनोखी मुहिम को अंजाम दे रहे हैं।

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Source: केनफ़ोलिओज़