Lok Sabha elections - Kisan issue will remain dominated

February 27 2019

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इन दिनों देश में हर राजनीतिक दल किसान हित की बात कर रहा है। एक ओर केंद्र की मोदी सरकार कृषि क्षेत्र के कायाकल्प में जुटी हुई है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष भी किसानों की समस्या को उठाकर चुनाव जीतना चाहता है। हालात यह हो गए हैं कि कोई भी राजनीतिक दल किसानों की अनदेखी नहीं कर सकते.कांग्रेस ने ऋण माफ़ी के मुद्दे पर तीन राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता हासिल कर ली। इसे देखकर कहा जा सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भी किसानों का मुद्दा प्रमुख रहेगा।

(विशेष प्रतिनिधि)

कृषि का वर्तमान संकट दशकों पुरानी खराब नीतियों का प्रतिफल है। यह खेद का विषय है कि राष्ट्रीय जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी जो 50  के दशक में 50 प्रतिशत थी, वह अब 14 प्रतिशत है। बाजारवाद के कारण देश में लोगों के बीच एक आर्थिक विभाजन रेखा खिंच गई है। जबकि अभी भी देश की 60  प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि कई फसलों के सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक हमारे देश के अन्नदाता को जीवनयापन के लिए आंदोलन से लेकर आत्महत्या तक करनी पड़ रही है। प्राकृतिक आपदाओं की आफत से किसानों को उचित लागत मूल्य नहीं मिल पा रहा है। सिंचाई की असुविधा, मिलावटी बीज और अन्य समस्याओं के कारण  किसानों को भुखमरी, कुपोषण, पलायन, बेरोजगारी, अशिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के दंश  झेलना पड़ रहे है। इनसे निपटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

उपर्युक्त समस्याओं के समाधान के लिए  किसान आयोग का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें किसान पृष्ठभूमि के विशेषज्ञ शामिल हों। ये सदस्य कृषि संबंधी समग्र नीतियों पर विचार करे। खेती के लिए अलग से बजटीय प्रावधान हो , जिनका इस्तेमाल किसानों की सिंचाई,उर्वरक, दामों की क्षतिपूर्ति और प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान में हो। स्मरण रहे कि फिलहाल देश की कुल कृषि योग्य भूमि का मात्र 35 प्रतिशत भू भाग ही सिंचित है। इसीलिए किसान मौसम की मेहरबानी पर निर्भर रहते हैं।  सिंचाई के अभाव में भूमि के बड़े हिस्से के खाली रहने को देखते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग  की तर्ज पर राष्ट्रीय सिंचाई मार्ग की कल्पना को भी साकार किया जा सकता है। यह प्रयास देश के करोड़ों किसानों के लिए जीवन रक्षक साबित होगा। इसके अलावा जल्द खऱाब होने वाली फसलों के समुचित भण्डारण के लिए बड़ी संख्या में कोल्ड स्टोरेज बनाए जाने चाहिए। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के तहत फसल के लागत मूल्य पर पचास फीसदी का लाभकारी मूल्य दिया जाना किसानों को संजीवनी प्रदान करेगा। फसल बीमा योजना की विसंगतियों को देखते हुए इसके नियमों में सुधार की जरूरत है।

अब इसे सियासी फैसला कहें या किसानों की चिंता कि तेलंगाना की रैयत बंधु योजना जिसमें  प्रत्येक फसल मौसम में किसानों को प्रति एकड़ 4 हजार रुपए लागत सहायता दी जाती है, से प्रेरित होकर केंद्र सरकार ने भी किसानों के खाते में सालाना 6  हजार रुपए जमा करने का फैसला लिया है। इससे सरकार को सन् 2020  तक किसानों की आय दुगुनी करने में मदद मिलेगी और निकट भविष्य में ग्रामीण भारत के स्वस्थ और समृद्ध होने का सपना साकार होगा।

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स्रोत: Krishak Jagat