By: Krishi Jagran, 31 August 2017
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, राधा मोहन सिंह ने कहा है कि अपने संपूर्ण जनादेश, लक्ष्यों और उद्देश्यों के अंतर्गत, कृषि मंत्रालय, यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है कि महिलायें कृषि की मुख्यधारा का हिस्सा बन कर और कृषि पर खर्च होने वाले हर रूपए का फायदा पाकर कृषि उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ाने तथा अपने परिवार की आमदनी को दोगुना करने के लिए प्रभावी ढंग से योगदान दे सकें। राधा मोहन सिंह यह बात आज कांस्टीट्यूशन क्लब में राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा आयोजित “महिला किसानों के अधिकारों की सुरक्षा- कार्रवाई के लिए एक रोडमैप की तैयारी” विषय पर आयोजित कार्यक्रम में कही। राष्ट्रीय महिला आयोग ने यह कार्यक्रम यूएन महिला और महिला अधिकार किसान मंच के साथ मिलकर आयोजित किया था।
राधा मोहन सिंह ने कहा कि कृषि में महिलाओं की भागीदारी चिर-परिचित है। एनएसएसओ (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय) के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले तीन दशकों में कृषि क्षेत्र में महिलाओं एवं पुरूषों दोनों की संख्या में गिरावट आई है। जहाँ पुरुषों में संख्या 81 प्रतिशत से घटकर 63 प्रतिशत हो गई है, वहीं महिलाओं की संख्या 88 प्रतिशत से घटकर 79 प्रतिशत ही हुई है, क्योंकि महिलाओं की जानसंख्या में गिरावट पुरूषों की जनसंख्या में गिरावट से काफी कम है, इसलिए इस प्रवृति को आसानी से “भारतीय कृषि का महिलाकरण” कहा जा सकता है। केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि भारत सहित अधिकतर विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था में ग्रामीण महिलाओं का सबसे अधिक योगदान है। आर्थिक रुप से सक्रिय 80 प्रतिशत महिलाएं कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं। इनमें से 33 प्रतिशत मजदूरों के रुप में और 48 प्रतिशत स्व-नियोजित किसानों के रुप में कार्य कर रही हैं। एनएसएसओ (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय) रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 18 प्रतिशत खेतिहर परिवारों का नेतृत्व महिलाएं ही करती हैं। कृषि का कोई कार्य ऐसा नहीं है जिसमें महिलाओं की भागीदारी न हो।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि बतौर श्रमिक उन्हें पुरूषों की अपेक्षा मिलने वाली कम दरों तथा पुरूषों की अपेक्षा अधिक समय तक काम करने जैसी कई असमानताओं का सामना करना पड़ता है। साथ ही अपने अधिकारों, अवसरों और सुविधाओं की अनभिज्ञता उनकी कृषि में भागीदारी को और जटिल कर देती है। महिलाएं कृषि में बहुआयामी भूमिकाएं निभाती हैं जहाँ बुवाई से लेकर रोपण, निकाई, सिंचाई, उर्वरक डालना, पौध संरक्षण, कटाई, निराई, भंडारण आदि सभी प्रक्रियाओं से वो जुडी हुई हैं, वहीँ घर गृहस्थी के काम जैसे कि खाना पकाना, जल संग्रहण, ईंधन लकड़ी का संग्रहण, घरेलू रख-रखाव आदि के कार्य भी उन्ही के क्षेत्र में आते हैं।
राधा मोहन सिंह ने कहा कि इसके अलावा महिलाएं कृषि से सम्बंधित अन्य धंधो जैसे, मवेशी प्रबंधन, चारे का संग्रह, दुग्ध और कृषि से जुडी सहायक गतिविधियों जैसे मधुमक्खी पालन, मशरुम उत्पादन, सूकर पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन इत्यादि में भी पूरी तरह सक्रिय रहती हैं।
महिलाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए मंत्रालय की वर्तमान गतिविधियां।
महिलाओं को कृषि की मुख्यधारा में लाने के लिए मंत्रालय द्वारा निम्नवत कार्य किए गए हैं-
(i) विभिन्न प्रमुख योजनाओं/कार्यक्रमों और विकास संबंधी गतिविधियों के अंतर्गत महिलाओं के लिए कम से कम 30% धनराशि का आबंटन
(ii) विभिन्न लाभार्थी-उन्मुखी कार्यक्रमों/योजनाओं और मिशनों के घटकों का लाभ महिलाओं तक पहुचाने के लिए महिला समर्थित गतिविधियां शुरु करना; तथा
(iii) महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के गठन पर ध्यान केंद्रित करना ताकि क्षमता निर्माण जैसी गतिविधियों के माध्यम से उन्हें माइक्रो क्रेडिट से जोडा जा सके और सूचनाओं तक उनकी पहुंच बढ़ सके एवं साथ ही विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने निकायों में उनका प्रतिनिधित्व हो।
(iv) केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने पिछले वर्ष से प्रतिवर्ष 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस मनाने का फैसला किया है। यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में बढ़ते कदम का प्रतीक है।
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