ठेके पर खेती के लिए राज्य भी राजी, क्या है कांट्रैक्ट खेती जानें जरूरी बातें

May 23 2018

 कसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए सरकार ने एक और कानूनी सुधार की ओर कदम बढ़ाया है। कांट्रैक्ट खेती (ठेके पर खेती कानून) के मॉडल कानून को सरकार ने मंगलवार को हरी झंडी दे दी। राज्यों के कृषि मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में कांट्रैक्ट खेती के प्रावधानों पर राज्यों ने भी मोटे तौर पर अपनी सहमति दी है।

मॉडल कांट्रैक्ट कृषि कानून में कई अहम प्रावधान हुए हैं, जिसमें किसानों अथवा भूस्वामियों के हितों को सर्वोपरि रखा गया है। सम्मेलन में हुई चर्चा के दौरान कांट्रैक्ट कृषि उपज को कृषि उत्पाद विपणन कानून (मंडी कानून) के दायरे से अलग रखने पर आम राय बनी है। कोई भी थोक खरीद करने वाला उपभोक्ता सीधे खेत पर खरीद कर सकता है।सम्मेलन में सभी राज्यों को मॉडल कानून सौंप दिया गया है। चर्चा के दौरान राज्यों को अपनी सुविधा के अनुसार प्रावधानों में संशोधन करने की छूट दी गई है, लेकिन कानून में किसानों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। कांट्रैक्ट खेती के उत्पादों के मूल्य निर्धारण में पूर्व, वर्तमान और आगामी पैदावार को करार में शामिल किया जाएगा। किसान और संबंधित कंपनी के बीच होने वाले करार के बीच प्रशासन तीसरा पक्ष होगा। ठेका खेती में भूमि पर कोई स्थायी निर्माण करना संभव नहीं होगा। छोटे व सीमांत किसानों को एकजुट करने को किसान उत्पादक संगठनों, कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाएगा।

ठेका खेती से संबंधित विवादों के त्वरित निपटान के लिए सुगम और सामान्य विवाद निपटान तंत्र का गठन किया जाएगा। ठेका खेती के उत्पादों पर फसल बीमा के प्रावधान लागू किए जाएंगे। सम्मेलन में केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह के साथ कृषि राज्यमंत्री कृष्णाराज, गजेंद्र सिंह शेखावत, पुरुषोत्तम रुपाला और नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद्र ने हिस्सा लिया। आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत कई राज्यों के कृषि मंत्रियों ने इसमें हिस्सा लिया। ठेका खेती में मॉडल कानून के लिए पिछले डेढ़ सालों से कवायद चल रही थी। रेनफेड प्राधिकरण के सीईओ डॉ. अशोक दलवई ने कानून का ब्योरा तैयार किया है। लोगों की राय लेने के बाद इसे संशोधित कर राज्यों के समक्ष पेश किया गया। वैसे ठेका खेती को पहले ही कानूनी मान्यता मिली हुई थी, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में यह कामयाब नहीं है। इसके लागू होने के बाद किसानों को आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी। 

Source : Jagran News