The loss of 30 billion dollars every year due to the burning of paddy straw

March 05 2019

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उत्तर भारत में पराली जलाने से देश को हर साल 30 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हो रहा है। इतना ही नहीं, इससे उत्पन्न वायु प्रदूषण से सांस संबंधी संक्रमण का खतरा भी लोगों खासकर बच्चों में बहुत ज्यादा बढ़ गया है। अमेरिका स्थित इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) और इसके सहयोग संस्थानों की सोमवार को जारी रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है। 

शोधकर्ताओं ने पाया कि पराली जलाने से उत्पन्न वायु प्रदूषण के कारण उत्तर भारत के विभिन्न जिलों में रहने वालों में एक्यूट रेसपिरेटरी इंफेक्शन (एआरआई) का खतरा बहुत अधिक होता है। इसमें कहा गया है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों में इस संक्रमण का खतरा सर्वाधिक होता है। इस शोध के जरिए पहली बार उत्तर भारत में पराली जलाने से स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले नुकसान का अध्ययन किया गया है।

आईएफपीआरआई के रिसर्च फेलो और इस शोध के सह लेखक सैमुअल स्कॉट ने बताया कि वायु की खराब गुणवत्ता दुनियाभर में स्वास्थ्य से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या बन गई। दिल्ली में तो हवा में पार्टिकुलेट मैटर का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से 20 गुणा तक अधिक हो गया है। उन्होंने बताया कि अन्य कारकों में हरियाणा और पंजाब में किसानों द्वारा पराली जलाने से निकलने वाले धुएं के कारण दिल्ली में वायु गुणवत्ता पर असर पड़ता है। साथ ही ऐसे जिलों के लोगों में एआरआई का खतरा तीन गुणा तक बढ़ जाता है जहां बहुत बड़े पैमाने पर पराली जलाई जाती है।

पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में भारी हानि

शोधकर्ताओं का कहना है कि उत्तर भारत के तीन राज्यों पंजाब, दिल्ली और हरियाणा के लिए ही फसलों को जलाने से करीब 30 अरब डॉलर या 2 लाख करोड़ सालाना की आर्थिक लागत आती है। 

2.50 लाख से लोगों पर अध्ययन

इपीडेमिलॉजी (महामारी विज्ञान) के इंटरनेशनल जर्नल के आगामी संस्करण में प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट में 2.50 लाख से अधिक लोगों पर अध्ययन किया गया। इसमें देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के सभी उम्र के लोगों को शामिल किया गया। 

नासा के सेटेलाइट डाटा का इस्तेमाल

पराली को जलाने से विभिन्न इलाकों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को जानने के लिए नासा के सेटेलाइट डाटा का भी इस्तेमाल किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि हरियाणा में पराली जलाने में बढ़ोतरी हुई है। साथ ही यहां सांस संबंधी बीमारियां भी बढ़ी हैं। 

इन कारकों को भी शामिल किया गया

शोध में श्वसन संबंधी बीमारियों में बढ़ोतरी के लिए अन्य कारकों जैसे दीपावली में पटाखे फोड़ने और मोटर वाहनों से निकलने वाले धुएं को भी शामिल किया गया। 

पटाखों से सालाना 7 अरब डॉलर का नुकसान

पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण से करीब 7 अरब डॉलर या करीब 50 हजार करोड़ सालाना का आर्थिक नुकसान होता है। शोध में कहा गया है कि पिछले पांच साल में पटाखों से करीब 190 बिलियन डॉलर या देश की जीडीपी का करीब 1.7 फीसदी आर्थिक नुकसान हुआ है।

 

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स्रोत: अमर उजाला