पारंपरिक खेती की बजाय फूलों की खेती की ओर बढ़ा रुझान                                        
                                        
                                            
                                            January 09 2019                                        
                                    
                                    परंपरागत खेती की बजाय जिले में किसानों का रुझान फूलों की खेती की ओर तेजी से बढ़ा है। इसके साथ वे औषधीय व सुगंधयुक्त पौधों की खेती को भी अपना रहे हैं। देखरेख और लागत कम लगने के बावजूद अधिक मुनाफा देने वाली इस आधुनिक खेती की लोकप्रियता जिले में बड़ी तेजी से बढ़ी है।
बुंदेलखंड के किसान कई पुश्तों से पारंपरिक खरीफ और रबी की फसल में गेहूं, चना, सोयाबीन, मटर, तिल, उड़द मूंग की खेती करते रहे हैं। जिसमें लागत, समय व अधिक देखरेख के बावजूद प्राकृतिक प्रकोपों से किसान अक्सर नुकसान उठाते रहते हैं। इसी कारण कम लागत व कम देखरेख में अधिक मुनाफा देने वाली फूलों व औषधीय व सुगंधीयुक्त पौधों की खेती की ओर किसान धीरे-धीरे जागरूक होने लगे। छतरपुर में फूलों में गेंदा, गुलाब, ग्लाइकोडिस, सूरजमुखी, लेमनग्रास की खेती अधिक की जा रही है। इसी तरह औषधीय पौधों में मशरूम, सफेद मूसली, अश्वगंधा की खेती का चलन तेजी से बढ़ गया है। नौगांव विकासखंड के ग्राम चुरवारी के किसान बाला रैकवार बताते हैं कि वे गेंदा की खेती करके मुनाफा कमा रहे हैं। एक एकड़ खेत में गेंदा की चार कि स्में उगाई हैं जिससे चार पांच माह तक लगातार फूल मिलते हैं। वर्तमान में 50 से 80 कि लो गेंदा के फूल नौगांव और छतरपुर के मार्केट में बेचते हैं। जो 30 रुपए प्रति कि लो के हिसाब से बेचकर 1500 से 2400 रुपए प्रतिदिन कमा लेते हैं। इस तरह से एक एकड़ खेत में गेंदा की पैदावार करके 60 से 80 हजार रुपए मुनाफा आराम से हो जाता है। इस काम में घर के कई लोगों को रोजगार भी मिला है। सहायक संचालक कृषि डॉ. बीपी सूत्रकार ने बताया कि एक एकड़ के खेत में गेंदा लगाकर किसान एक साल में दो बार फसल आराम से ले सकते हैं। गेंदे की प्रति एकड़ अलग अलग प्रजातियों से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
फूलों की खेती में मार्केट की है बड़ी समस्या
फूलों व औषधीय, सुगंधीयुक्त पौधों की खेती में सबसे बड़ी बाधा मार्केट की है। स्थानीय स्तर पर खरीद के लिए कोई मार्केट न होने से किसान उत्पादन को बेचने के लिए दिल्ली, मुंबई, कानपुर, चेन्नई व कोलकाता के बाजारों पर निर्भर हैं। महानगरों में फूलों की मांग अच्छी है और औषधि निर्माण की सुविधा भी है। इस कारण सामान्य किसान फूलों, औषधीय व सुगंधयुक्त पौधों की खेती करके मार्केट की तलाश में ही अपनी जमापूंजी खर्च कर देता है। जिससे कई किसान चाहकर भी मजबूरी में इस आधुनिक खेती को नहीं अपना पाते हैं।
 
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स्रोत: Nai Dunia