हरियाणा का कैथल, शहद उत्पादन और मधुमक्खीपालन के लिए गोहरां खेड़ी का नाम जिले और प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश और विदेश में भी प्रसिद्ध है, यहां पर करीब 200 किसानों में से आधे से भी ज्यादा किसान मधुमक्खी पालन करने का कार्य करते है. यहां पर शहद की अधिक उत्पादकता के कारण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद इस गांव को मधुग्राम का दर्जा दे चुकी है. यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धता है, गांव के मधुमक्खीपालक किसान केवल कैथल जिले में ही नहीं, बल्कि आसपास के जिले राज्यों में मधुमक्खीपालन करने का कार्य कर रहे है. यहां पर किसान हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित आसपास के कई राज्यों में मक्खियों का पालन करने का कार्य करते है.
यहां पर करीब 342 हेक्टेयर भूमि पर गेहूं और धान की खेती की जाती है, यहां पर किसान खाली जगह पर मधुमक्खियों के बॉक्स को रख देते है. ताकि साथ में उगी फूलदार फसलों से मक्खियों को भरण पोषण के लिए पर्याप्त खाना मिलता रहे. इससे काफी फायदा भी होगा.
गांव में बेरोजगारों की संख्या न के बराबर
बता दें कि गांव की कुल आबादी तीन हजार है, 20 सालों से भी ज्यादा समय से गांव के लोग इस शहद के व्यापार से जुड़े हुए है, शहद उत्पादक किसानों का कहना है कि शुरूआत में जब भी किसान मधुमक्खी पालन की ओर अग्रसर होता है तो उस समय करीब पांच सौ क्विंटल शहद प्रत्येक सीजन में दो बार ही तैयार होता था. उस समय शहद के दाम बेहतर मिल रहे थे. अब कुछ किसानों ने इस व्यापार को इस कारण से छोड़ दिया कि शहद के रेट बेहतर नहीं मिल रहे है. स गांव की खास बात है कि गांव में शहद के व्यापार के चलते बेरोजगार की संख्या भी न के बराबर है.
20 साल पहले मधुमक्खीपालन अपनाया
इस गांव के एक किसान ने तकरीबन 20 साल पहले इस तरह के व्यापार को अपनाया था. आज गांव के सैकड़ों लोग इस व्यापार को अपना चुके है. शहद की बिक्री में ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता है, गांव के किसान सतपाल सिंह ने कृषि वित्रान केंद्र से प्रशिक्षण लेकर कुल 20 बॉक्सों का उत्पादन शुरू किया था. तब उसकी पहली कमाई 10 हजार रूपए थी. बाद में उन्होंने बॉक्सों की संख्या बढ़ा दी है.
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स्रोत: कृषि जागरण