यूरिया की कमी नहीं- समय की उपलब्धता की आवश्यकता

January 05 2019

मध्य प्रदेश में नई सरकार का गठन होते ही प्रदेश में यूरिया की आपूर्ति न होने के समाचार प्रदेश के विभिन्न भागों से आने लगे, समाधान के प्रयास भी तुरन्त किये गये और 4-6 दिन में ही स्थिति सामान्य होने लगी। पिछले वर्ष 2017-18 में मध्य प्रदेश को 22 लाख टन यूरिया की आवश्यकता थी जबकि प्रदेश में 24.17 लाख टन यूरिया उपलब्ध था। प्रदेश में वर्ष 2017-18 में अन्तत: 22.79 लाख टन यूरिया की खपत हुई। छत्तीसगढ़ में यूरिया की आवश्यकता वर्ष 2017-18 में 6.70 लाख टन थी। 6.35 लाख टन की उपलब्धता के बाद भी इसकी 5.67 लाख टन की ही बिक्री हो पाई। राजस्थान में इसकी आवश्यकता का अनुमान 18.50 लाख टन था तथा उपलब्धता 16.88 लाख टन थी परन्तु बिक्री 16.47 लाख टन की ही हो पाई। देश में यूरिया का उत्पादन तथा खपत वर्ष प्रति वर्ष बढ़ता चला जा रहा है। वर्ष 2013-14 में जहां देश में यूरिया की खपत 311.92 लाख टन थी वह वर्ष 2017-18 में बढ़कर 337.54 लाख टन तक पहुंच गई, इसकी खपत में पिछले चार वर्षों में 8.24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले वर्षों में यूरिया की देश में उपलब्धता पर्याप्त रही और किसानों को यूरिया की आपूर्ति उनकी आवश्यकता अनुसार हुई। इस वर्ष अचानक मध्य प्रदेश में रबी फसलों के लिए यूरिया का उपलब्ध न होना यूरिया की कमी के कारण नहीं हुआ बल्कि इसका कारण उचित प्रबंधन का न होना है। उचित समय पर यूरिया का किसानों को उपलब्ध न होना फसल की उत्पादकता पर एक बड़ा प्रभाव डाल सकता है जिसका प्रभाव किसान के आर्थिक नुकसान के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। किसानों द्वारा फास्फोरस उपलब्ध कराने वाले दो प्रमुख उर्वरकों डीएपी तथा सुपर फास्फेट के उपयोग में भी एक सकारात्मक वृद्धि देखी गई है। डीएपी का जहां वर्ष 2013-14 में 117.84 लाख टन की खपत थी वह वर्ष 2017-18 में बढ़कर 127.64 लाख टन तक पहुंच गई इसमें इन चार वर्षों में 8.31 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सुपर फास्फेट का उपयोग भी जो वर्ष 2013-14 में 46.82 लाख टन था वह वर्ष 2017-18 में बढ़कर 64.76 लाख टन तक पहुंच गया। इसमें चार वर्षों में 38.31 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। म्यूरेट ऑफ पोटाश के उपयोग में भी पिछले चार वर्षों में 13.60 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। जहां म्यूरेट ऑफ पोटाश की खपत वर्ष 2013-14 में 43.43 लाख टन थी वह वर्ष 2017-18 में बढ़कर 49.34 लाख टन हो गई। इस उर्वरक का अधिक उपयोग, उर्वरकों के संतुलन उपयोग की ओर एक कदम है। इसके और अधिक उपयोग के प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।

 

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स्रोत: Krishak Jagat