चोपाई पद्धति ने फसल को बचाया शीतलहर से

January 04 2019

क्षेत्र में शीतलहर के प्रकोप से कई किसानों के खेतों में फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई। आलू-चने सहित सब्जियों में बड़ा नुकसान हुआ। लेकिन कुछ किसान ऐसे भी हैं, जिन्होंने रिज्डबेड पद्धति से चने की बोवनी कर अपनी फसल को बर्बाद होने से बचा लिया। इन किसानों के खेतों में शीतलहर के बावजूद फसल लहलहा रही है। दूसरे किसान भी अब उनके खेतों में आकर पद्धति की जानकारी ले रहे हैं।

क्षेत्र के एक दर्जन से अधिक किसानों ने इस पद्धति से चने की बोवनी की थी। इनके यहां ठंड का प्रकोप नहीं के बराबर गिरा। किसान शंकर यादव, केदार पाटीदार, जगदीश पाटीदार ने बताया कि उनके खेतों में डालर व देसी चना रिज्डबेड पद्धति से लगाया गया था। वर्तमान में फसल फूल से फल बनने की ओर अग्रसर है। पिछले दिनों गिरे पाले का असर उनकी फसल पर नहीं पड़ा। जबकि पाले से फसल को बचाने के लिए उन्होंने अतिरिक्त रुप से कोई उपचार नहीं किया था। इस पद्धति में बीज भी बेहद कम लगा और फसल भी सुरक्षति रही। आने वाले समय में उत्पादन भी बेहतर निकलेगा।

क्या है यह पद्धति

इस पद्धति में 12 इंच की दूरी पर चौकड़ी काटकर बीज की चोपाई की जाती है। यह चोपाई पूरी तरह मजदूरों द्वारा की जाती है। किसानों का मानना है कि ट्रैक्टर से बोवनी करने पर बीज वजन से अत्यधिक गहराई में चला जाता है, इसलिए अंकुरण प्रतिशत कम रहता है। इस पद्धति से दूसरा लाभ यह है कि प्रति हेक्टेयर 45 से 50 किलो बीज लगता है, जबकि ट्रैक्टर से डबल मात्रा में बीज लगाना होता है और सघनता के चलते पौधों की ग्रोथ भी नहीं बढ़ पाती। तीसरा सबसे महत्वपूर्ण फायदा इस पद्धति में यह है कि सिंचाई के लिए खेत में टपक योजना पद्धति लगी हो तो पानी बेहद कम लगता है, फसल में लगातार नमी बनी रहती है। क्षेत्र के एक दर्जन से अधिक किसानों ने इस पद्धति से चने की विभिन्न किस्में लगाई हैं। सभी किसानों के यहां कड़ाके की ठंड के बावजूद फसल सुरक्षति है।

किसानों में जानकारी का अभाव

वरिष्ठ किसान नाथूसिंह दांगी ने बताया कि अब समय आ गया है किसानों को तकनीकी खेती करना चाहिए। लेकिन हमारे क्षेत्र में जानकारी का अभाव है। अभी भी परंपरागत तरीके से बीज को बोया जाता है, जिसके चलते बीज अधिक लगता है और उत्पादन कम आता है, खाद भी व्यर्थ की खरपतवार को हटाने में चला जाता है। चोपाई पद्धति में सब तरफ से फायदा है।

प्रशिक्षण में नहीं आते किसान

किसानों के प्रशिक्षण पंचायत से जिला स्तर तक आयोजित किए जाते हैं। समय-समय पर कृषि चौपाल एवं कृषक सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं। इनमें किसानों को फसल विशेषज्ञों द्वारा फसल लगाने के विषय में समझाइश दी जाती है, लेकिन किसानों को इस संबंध में रुचि नहीं रहती। उनका रुझान परंपरागत खेती में रहता है, जिससे कई बार नुकसान हो जाता है।

 

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स्रोत: Nai Dunia