rejneesh-hn

रजनीश लांबा

(बागबानी)

एक इंसान, जिसने अपने दादा जी के नक्शे कदम पर चल कर जैविक खेती के क्षेत्र में सफलता हासिल की

बहुत कम बच्चे होते हैं जो अपने पुरखों के कारोबार को अपने जीवन में इस प्रेरणा से अपनाते हैं ताकि उनके पिता और दादा को उन पर गर्व हो। एक ऐसे ही इंसान हैं रजनीश लांबा, जिसने अपने दादा जी से प्रेरित होकर जैविक खेती शुरू की।

रजनीश लांबा राजस्थान के जिला झुनझुनु में स्थित गांव चेलासी के रहने वाले एक सफल बागबानी विशेषज्ञ हैं। उनके पास 4 एकड़ का बाग है, जिसका नाम उन्होंने अपने दादा जी के नाम पर रखा हुआ है -हरदेव बाग और उद्यान नर्सरी और इसमें नींबू, आम, अनार, बेल पत्र, किन्नू, मौसमी आदि के 3000 से ज्यादा वृक्ष फलों के हैं।

खेती को पेशे के रूप में चुनना रजनीश लांबा की अपनी दिलचस्पी थी। रजनीश लांबा के पिता श्री हरी सिंह लांबा एक पटवारी थे और उनके पास अलग पेशा चुनने के लिए पूरे मौके थे और डबल एम.ए. करने के बाद वे अपने ही क्षेत्र में अच्छी जॉब कर सकते थे पर उन्होंने खेती को चुना। जैविक खेती से पहले वे पारंपरिक खेती करते थे और बाजरा, गेहूं, ज्वार, चने, सरसों, मेथी, प्याज और लहसुन फसलें उगाते थे, पर जब उन्होंने अपने दादा जी के जैविक खेती के अनुभव के बारे में जाना तो उन्होंने अपने पैतृक व्यवसाय को आगे ले जाने और उस काम को और अधिक लाभदायक बनाने के बारे में सोचा।

यह सब 1996 में शुरू हुआ, जब 1 बीघा क्षेत्र में बेल के 25 वृक्ष लगाए गए और बिना रसायनों के प्रयोग के जैविक खेती को लागू किया गया। इसके साथ ही उन्होंने नर्सरी की तैयारी शुरू कर दी। 8 वर्षों की कड़ी मेहनत और प्रयासों के बाद 2004-2005 में अंतत: बेल पत्र के वृक्षों ने फल देना शुरू किया और उन्होंने 50,000 का भारी लाभ कमाया।

लाभ में इस वृद्धि ने उनके विश्वास को और मजबूत बनाया कि बाग के व्यवसाय से अच्छी उपज और अच्छा लाभ मिलता है इसलिए उन्होंने अपने पूरे क्षेत्र में बाग के विस्तार का निर्णय लिया। 2004 में उन्होंने बेल पत्र के 600 अन्य वृक्ष लगाए और 2005 में बेल पत्र के साथ, किन्नू और मौसमी के 150-150 वृक्ष लगाए। जैसे कि कहा जाता है कि मेहनत का फल मीठा होता है, ऐसे ही परिणाम समान थे । 2013 में उन्होंने मौसमी और किन्नू के उत्पादन से लाभ कमाया और इनसे प्रेरित होकर सिंदूरी किस्म के 600 वृक्ष और लैमन के 250 वृक्ष लगाए। 2012 में उन्होंने आम और अमरूद के 5-5 वृक्ष भी लगाए थे।

वर्तमान में उनके बाग में कुल 3000 वृक्ष फलों के हैं और अब तक सभी वृक्षों से वे अच्छा लाभ कमा रहे हैं। अब उनके छोटे भाई विक्रात लांबा और उनके पिता हरि सिंह लांबा, भी उनके बाग के कारोबार में मदद कर रहे हैं। बागबानी के अलावा उन्होंने 2006 में 25 गायों के साथ डेयरी फार्मिंग की कोशिश भी की, लेकिन इससे उन्हें ज्यादा लाभ नहीं मिला और 2013 में इसे बंद कर दिया। अब उनके पास घरेलू उद्देश्य के लिए सिर्फ 4 गायें हैं।

स्वस्थ उपज और गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए, वे गाय का गोबर, गऊ मूत्र, नीम का पानी, धतूरा और गंडोया खाद का प्रयोग करके स्वंय खाद तैयार करते हैं और यदि आवश्यकता हो तो कभी-कभी बाजार से भी गाय का गोबर खरीद लेते हैं।

बागबानी को मुख्य व्यवसाय के रूप में अपनाने के पीछे रजनीश लांबा का मुख्य उद्देश्य यह है कि पारंपरिक खेती की तुलना में यह 10 गुना अधिक लाभ प्रदान करती है और इसे आसानी से पर्यावरण के अनुकूल तरीके से किया जा सकता है। इसके अलावा इसमें बहुत कम श्रम की आवश्यकता होती है, वे श्रमिकों को केवल तब नियुक्त करते हैं जब उन्हें फल तोड़ने की आवश्यकता होती है। अन्यथा उनके पास 2 स्थायी श्रमिक हैं जो हर समय उनके लिए काम करते हैं। अब उन्होंने नर्सरी की तैयारी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए शुरू कर दी है और इससे लाभ कमा रहे हैं और जब भी उन्हें बागबानी के बारे में जानकारी की जरूरत होती है तो वे कृषि से संबंधित पत्रिकाओं, प्रिंट मीडिया और इंटरनेट आदि से संपर्क करते हैं।

अपनी जैविक खेती को और अधिक अपडेट और उन्नत बनाने के लिए 2009 में उन्होंने मोरारका फाउंडेशन में प्रवेश किया। कई किसान रजनीश लांबा से कुछ नया सीखने के लिए नियमित तौर पर उनके फार्म का दौरा करते हैं और वे भी बिना किसी लागत के उन्हें जानकारी और ट्रेनिंग उपलब्ध करवाते हैं। यहां तक कि कभी-कभी खेतीबाड़ी अफसर भी सम्मेलन और ट्रेनिंग सैशन के लिए किसानों के ग्रुप के साथ उनके फार्म का दौरा करते हैं।

शुरूआत से ही उनका सपना हमेशा उनके दादा (हरदेव लांबा) को गर्व कराना था, लेकिन वे अपनी शिक्षाओं को आगे ले जाना चाहते हैं और अन्य किसानों को नर्सरी तैयार करने और उनकी तरह बागबानी शुरू करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। बागबानी के क्षेत्र में उनके महान प्रयासों के लिए 2011 में उन्हें कृषि मंत्री हरजी राम बुरड़क द्वारा पुरस्कृत किया गया और राजस्थान के राज्यपाल कल्यान सिंह द्वारा भी उनकी सराहना की गई। इसके अलावा उनके कई लेख (आर्टिकल) अखबारों और मैगज़ीनों में प्रकाशित किए जा चुके हैं।

किसानों को संदेश-
“वे चाहते हैं कि अन्य किसान भी जैविक खेती को अपनायें क्योंकि यह पर्यावरण अनुकूल होने के साथ-साथ इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं। किसानों को रसायनों के प्रयोग को भी कम करना चाहिए। एक चीज़ जो उन्हें हमेशा याद रखनी चाहिए। वो ये है कि वे चाहे जितना भी लाभ कमा रहे हों, लाभ सिर्फ कुछ नया करके ही जैसे बागबानी की खेती करके अर्जित किया जा सकता है।”