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हिंदपाल सिंह

(तेल वाली फसलें-जोजोबा)

राजस्थान के जोजोबा की खेती करने वाले किसान से मिलें, जिसने आई एच एम पूसा दिल्ली से होटल मैनजमेंट की डिगरी हासिल की, पर अपने पिता के नक्शेकदम पर चले

खेतीबाड़ी ना कभी आसान थी और ना ही आसान होगी। लेकिन कई लोगों के लिए जिनके पास कोई विकल्प नहीं होता, उनके लिए खेती ही एकमात्र विकल्प होता है। इसलिए आज के कई किसान अपने बच्चों को स्कूल और कॉलेज में भेजते हैं ताकि वे जो चाहते हैं उसे चुने और जो बनना चाहते हैं वे बनें। लेकिन एक ऐसे इंसान हिंद पाल सिंह औलख जिनके पास अच्छा व्यवसाय चुनने का मौका था, लेकिन उन्होंने खेती को चुना।

हिंद पाल सिंह का जन्म राजस्थान के गंगानगर जिले में एक विशिष्ट कृषि परिवार में हुआ, लेकिन वे एक बहुत ही अलग आधुनिक वातावरण में पले बढ़े। अपने पिता से अलग पेशा चुनने के उद्देश्य से उन्होंने आई एच एम पूसा, दिल्ली से होटल मैनेजमेंट में बैचलर की डिग्री ली।

“लेकिन शायद हिंद पाल सिंह की किस्मत में, इसी क्षेत्र में अपना व्यवसाय जारी रखना नहीं था। उनके पिता किसान थे और कृषि में उनकी अत्याधिक रूचि थी। उनके पिता ने उन्हें खेतीबाड़ी शुरू करने के लिए प्रेरित किया।”

अपने पिता का खेती की तरफ इतना रूझान देखकर उन्होंने उनकी सहायता करने का फैसला किया। उन्होंने खेतीबाड़ी से संबंधित मैगज़ीन जैसे चंगी खेती आदि पढ़ना शुरू किया। उनमें से एक मैगज़ीन में उन्होंने जोजोबा की खेती के बारे में पढ़ा और इसे शुरू करने के बारे में सोचा। उन्होंने जयपुर का दौरा किया और वहां जोजोबा की खेती की ट्रेनिंग ली। श्री सैनी ट्रेनिंग स्टाफ के एक मैंबर थे, जिन्होंने जोजोबा की खेती में उनकी मदद की और निर्देशित किया और विशेष रूप से अपने शहर में स्थित अपने फार्म का दौरा भी करवाया।

शुरू में हिंद पाल सिंह जोजोबा की खेती शुरू करने के लिए थोड़ा घबराये हुए थे लेकिन अब 12 वर्ष से वे जोजोबा की खेती कर रहे हैं और उपज और लाभ से काफी खुश हैं। वे जोजोबा के पौधे राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से खरीदते हैं क्योंकि जोजोबा के पौधे को 10:1 रेशो में उगाया जाता है जहां 10 पौधे मादा जोजोबा के होते हैं और 1 पौधा नर जोजोबा का होता है और एक उचित एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी या माहिर ही सही जोजोबा के पौधे उपलब्ध करवा सकते हैं क्योंकि आम लोग फूल निकलने से पहले (तीन वर्ष के हो जाने पर) नर और मादा पौधों की पहचान नहीं कर सकते।

“नर पौधों के प्रजनन द्वारा मादा पौधे फूलों से बीजों का उत्पादन करते हैं, बीज उत्पादन के लिए मादा पौधे नर पौधों पर निर्भर होते हैं।”

हिंद पाल सिंह के लिए जोजोबा की खेती और बिजाई आसान नहीं थी। उन्होंने दीमक और फंगस जैसी कई समस्याओं का सामना किया, लेकिन उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से इनका सामना किया। वे हमेशा माहिर से सलाह लेते हैं और खेती के लिए माइक्रो फूड और प्राथमिक खादों का प्रयोग करते हैं। बिजाई के बाद 6 से 7 वर्ष तक जोजोबा का पौधा फल देना शुरू करता है।

“एक समय निवेश – राजस्थान जैसे क्षेत्र जहां पानी की हमेशा कमी रहती है, में जोजोबा की खेती करने की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे सिंचाई के लिए बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है (2 वर्षों तक बिना पानी के यह पौधा रह सकता है) इसके अलावा पौधे की उम्र 100 वर्ष तक होती है।”

शुरूआत में, जब जोजोबा के पौधे छोटे होते हैं, अंतरफसली भी किया जा सकता है क्योंकि 6 से 7 वर्ष तक ये बीज पैदा नहीं करते। उन्होंने उपज के मंडीकरण में भी कुछ समस्याओं का सामना किया, लेकिन सरकार से कोई सहायता नहीं ली। कॉस्मेटिक कंपनियों को फेस क्रीम, तेल, फेस वॉश और कई सौंदर्य उत्पाद बनाने के लिए जोजोबा के बीजों की आवश्यकता होती है। इसलिए उन्होंने उपभोक्ताओं को जल्दी ही ढूंढा और लाभ कमाना शुरू किया।

“जोजोबा के तेल में विस्कोसिटी इंडेक्स के कारण इसका ईंधन तेल के रूप में वैकल्पिक उपयोग होता है। इसे हाई स्पीड मशीनरी या उच्च तापमान पर चलने वाली मशीनों के लिए ट्रांसफार्मर तेल या लुबरीकेंट के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।”

इसके अलावा वे जोजोबा की खेती लगभग 5 एकड़ में करते हैं। बाकी की 65 एकड़ भूमि में वे कपास, गेहूं, मौसमी सब्जियां, सरसों, किन्नू और अन्य फसलें उगाते हैं। वे अच्छी खेती के लिए सभी आधुनिक खेती मशीनरी जैसे ट्रैक्टर, ट्रॉली, कल्टीवेटर, लेवलर, डिस्क हैरो और तुपका सिंचाई का प्रयोग करते हैं। वे भविष्य में इस काम को बढ़ाना चाहते हैं, जो वे अभी कर रहे हैं और जोजोबा के बीजों के वफादार और मुनाफे वाले उपभोक्ताओं को आकर्षित करना चाहते हैं। 45 हज़ार के निवेश के साथ आज वे लाखों कमा रहे हैं। इसके अलावा जोजोबा एक बीमारी रहित और आग के प्रतिरोधक पौधा है, जिसे एक बार विकसित हो जाने के बाद बहुत कम देखभाल की जरूरत पड़ती है।

किसानों को संदेश
किसानों को आत्मनिर्भर होना चाहिए और यदि खेतीबाड़ी से लाभ कमाना चाहते हैं तो कुछ अलग सोचना शुरू करना चाहिए। एक और बात किसानों को अपने लाभों को जो भी वे कमाते हैं उसका हिसाब रखना चाहिए और यदि वे कुछ अलग शुरू करते हैं तो उसमें अपना 100 प्रतिशत देना चाहिए।