पिछले भाग में हमने आपको बताया था कि प्रसव के समय पशुओं की देखभाल कैसे की जाती है।
आज हम आपसे शेयर करेंगे कि प्रसव के पश्चात कौन सी सावधानियां बरती जायें:
• ब्याने के बाद, पशु को अपने बच्चे को चाटने दें और दूध पिलाने दें।
• पशु को जो भूसा खिलाएं वह अच्छी किस्म का हो तथा जो भी अनाज खिलाएं वह हल्का व शीघ्र पचने वाला हो। इसके लिए पशु को भूसी व जई खिलाएं।
• ब्याने के बाद पहले तीन हफ्तों तक पशु को दिए जाने वाले अनाज की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाएं।
• पशु को मिल्क फीवर की बीमारी के लिए देखते रहें। यह बीमारी खून में चूने या क्षार की मात्रा कम होने के कारण होती है। इस बीमारी में पशु गर्दन मोड़कर ज़मीन पर लेटा रहता है। यह अधिक दूध देने वाले पशु में ज्यादा होती है। इस बीमारी में पशु से कम दूध निकालें तथा निकाला हुआ दूध पशु को पिला दें एवं नजदीकी पशु चिकित्सालय में जाकर पशु का इलाज करवाएं।
• यदि पशु की ल्योटी में ज्यादा सूजन हो तो इसके लिए थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बार-बार दूध निकालें व ल्योटी की हल्की-हल्की मालिश करें।
• ब्याने के बाद कुछ दिनों तक पशु को हल्की व पर्याप्त मात्रा में कसरत हर रोज करवाएं।
• कुछ पशु नाल नहीं डालते। यदि ब्याने के 8-12 घंटों तक पशु नाल ना गिराए तो यह बीमारी की वजह से होता है। इसके लिए पशु का इलाज नजदीकी पशुचिकित्सालय में करवाएं।
• यदि पशु ब्याने के 14-20 दिनों बाद भी मैला (लोकिया) डालता रहे या इसकी मात्रा ज्यादा हो व इसमें बदबू आती हो तो डॉक्टर से ही इसका इलाज करवाएं।
• यदि ब्याने के बाद पशु की ल्योटी से दूध न निकले तो यह ल्योटी में दूध उतरने या दूध न बनने के कारण होता है। दूध का न उतरना, पशु में दर्द या भय के कारण होता है। इसके लिए पशु को ऑक्सीटोसिन हारमोन की 5-10 यूनिट मांसपेशियों में लगाएं। यदि ल्योटी में दूध नहीं बनता तो यह या तो हारमोन की कमी हा या थन की बनावट ठीक ना हो, तब होता है। ऐसे में पशु का कोई इलाज नहीं हो सकता।