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गुरदयाल सिंह

(सब्जियों की खेती, हल्दी)

कैसे एक किसान की मेहनत और जुनून से पंजाब के गुरदासपुर जिले में पीली क्रांति आई

पंजाब राज्य एक ऐसा क्षेत्र है, जहां गेहूं, और धान की खेती ज्यादा की जाती है, क्योंकि इससे किसानों को अधिक मुनाफा होता है। किसान गेहूं और धान की तरफ खास ध्यान इसलिए भी देते हैं, क्योंकि इसकी पैदावार से सही परिणाम प्राप्त होते हैं, पर एक किसान ऐसा भी है जो बाकी किसानों से अलग है। उसने खेतीबाड़ी में बदलाव लाने के बारे में सोचा और पीली क्रांति शुरू की।

स. गुरदयाल सिंह गांव सल्लोपुर जिला गुरदासपुर के रहने वाले हल्दी की खेती करने वाले इंसान किसान हैं। वे एक किसान, एक उदयोगपति और एक हल्दी की खेती के ट्रेनर के तौर पर काम कर रहे हैं। वे हल्दी की खेती से लेकर उत्पाद तैयार करने और मंडीकरन तक का काम स्वंय करते हैं। वे अपने उत्पाद बेचने के लिए किसी तीसरे बंदे पर निर्भर नहीं हैं। उन्होंने समाज में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए अन्य किसानों से अलग रास्ता चुना। इस समय उनकी हल्दी की वार्षिक पैदावार 1500-2000 क्विंटल है और वे ग्रीन गोल्ड सपाइस ग्रुप के राजा हैं।

सफलता कभी भी आसानी से नहीं मिलती, इसके लिए इंसान को दृढ़ मेहनत करनी पड़ती है, मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और कई बार नुकसान को भी सहना पड़ता है। मुश्किलों का सामना करने के बाद, हार ना मानने और आगे बढ़ते रहने की सोच ही इंसान को सफल बनाती है। गुरदयाल सिंह जी की कहानी भी कुछ इस तरह ही है। दसवीं की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी हासिल करने के लिए बहुत कोशिश की, पर कामयाबी ना मिलने पर उन्होंने अपने पिता के साथ खेतीबाड़ी में मदद करने का फैसला किया। शुरू से ही वे पारंपरिक खेती से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि इस में किसानों को अपनी मेहनत का मुल्य नहीं मिलता था। इसलिए 2004 में उन्होंने बागबानी विभाग की मदद से थोड़ी सी ज़मीन पर हल्दी की खेती का एक प्रयोग करके देखा। इसके साथ ही उन्होंने हल्दी पाउडर बनाने का काम भी शुरू किया, वो भी बिना किसी मशीनरी का प्रयोग किए बिना।

हल्दी की गांठों से हल्दी पाउडर तैयार करना बहुत ही मुश्किल काम था। इसलिए वे बागबानी विभाग के सुझाव अनुसार हल्दी पाउडर तैयार करने वाली मशीन लेकर आये। फिर थोड़े समय बाद उन्होंने अन्य आधुनिक मशीनें जैसे कि ट्रैक्टर, ट्राली, लैवलर, हल आदि भी ले आये। ये सब करने से इस समय उनकी कच्ची हल्दी की पैदावार 60 क्विंटल से बढ़ कर 110 क्विंटल तक पहुंच गई है। ये सब करते ही उन्होंने 2007 में ग्रीन गोल्ड मसाले के नाम का हल्दी प्रोसैसिंग प्लांट लगाया, जिस के उत्पादों में ग्रीन गोल्ड हल्दी भी एक है। उनके परिवार में पत्नी, दो पुत्र, एक बेटी, सब हल्दी की प्रोसैसिंग जैसे कि धुलाई, उबालना, पॉलीशिंग और पीसना आदि क्रियाओं में मुख्य रोल अदा करते हैं। उनके प्रोसैसिंग प्लांट में 4-5 मज़दूर काम करते हैं और हल्दी की पैकिंग, सीलिंग, और स्टैपिंग क्रियाओं में पूरा परिवार बराबर योगदान देता है। सारा मशीनरी सिस्टम लगाने के बाद उन्हें कुछ छोटी-मोटी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं में एक उबाली हल्दी को सुखाने के लिए कम जगह का होना है।

गुरदयाल सिंह जी ने हल्दी की खेती के बारे में ही क्यों सोचा:

• इसे सिंचाई की कम आवश्यकता होती है, बिजाई से लेकर पुटाई तक (8-10) महीने, कुल 10-12 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।

• हल्दी कुदरती तौर पर एक एंटी बायोटिक है, इसीलिए इस फसल पर किसी भी बीमारी आदि का हमला नहीं होता। इस कारण इस पर ज्यादा रसायनों और स्प्रे की जरूरत नहीं पड़ती।

• वे एक एकड़ में 35000 रूपये निवेश करते हैं और 5 क्विंटल बीज बीजते हैं और पुटाई के लिए आलू उखाड़ने वाली मशीन का भी प्रयोग करते हैं।

• वे कुल 6-7 एकड़ में हल्दी की खेती करते हैं और फिर कुछ समय के बाद फसल बदल कर बो दी जाती है, क्योंकि हल्दी की खेती के बाद मिट्टी का उपजाऊ-पन बढ़ जाता है।

इसलिए यदि कोई भी किसान हल्दी की खेती शुरू करना चाहता है तो बड़ी आसानी से कर सकता है। हल्दी के प्रोसैसिंग प्लांट में सारी मशीनरी के लिए गुरदयाल सिंह जी ने 4.5 लाख रूपये निवेश किए। उन्होंने पी ए यू से ट्रेनिंग और हल्दी के बीजों के बारे में जानकारी हासिल की और पंजाब बागबानी विभाग से की हदायतों के अनुसार ग्रीन गोल्ड प्रोसैसिंग यूनिट से 25 प्रतिशत सब्सिडी प्राप्त की। इस क्रांतिकारी काम और अलग रास्ता चुनने के लिए उन्हें बहुत सारे पुरस्कार और ईनाम मिले। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

• पंजाब के मुख्यमंत्री की तरफ से उद्यमी पुरस्कार 2014

• किसान पुरस्कार 2015

• पी ए यू लुधियाना और पंजाब बागबानी की तरफ से चपड़चिड़ी में सम्मान

जिस तरीके से वे अपनी खेती की तकनीकों को बढ़ा रहे हैं, उस हिसाब से यह सम्मान बहुत कम है। भविष्य में वे ओर भी बहुत सारे सम्मान हासिल करेंगे।

हल्दी की खेती और पाउडर बनाने के इलावा वे अपने गांव के अन्य किसानों को हल्दी खेती के बारे में सुझाव देते हैं। आज उनके साथ लगभग 60 किसान जुड़े हैं, जिन्हें वे मुफ्त ट्रेनिंग देते हैं। वे अन्य किसानों से सही मुल्य पर कच्ची हल्दी खरीद कर भी उनकी मदद करते हैं। वे अपने खेत में हल्दी की खेती के इलावा अपने मित्र की भी हल्दी की खेती करने में मदद करते हैं। उनके सारे उत्पादों का मंडीकरण और प्रमोशन के लिए NABARD उन्हें विभिन्न विभिन्न प्रदर्शनियों और मेलों में जगह लेकर देता है और किसान उत्पादक संस्थाओं के तरह किसान मेलों में भी भेजते हैं।

इन कामों के इलावा गुरदयाल सिंह जी ने मक्खी पालन के कारोबार में भी निवेश किया है। उन्होंने यह काम सन 2000 में 5 बक्सों से शुरू किया था और इस समय उनके पास 100 बक्से हैं। मक्खी पालन का अच्छी तरह प्रबंध करने के लिए उन्होंने मजदूर रखे हैं। बाकी की ज़मीन पर वे मसूर (हरी मूंग), सफेद बैंगन, भिंडी, गेहूं और धान आदि की खेती घरेलू उपयोग के लिए करते हैं। भविष्य में वे ग्रीन गोल्ड हल्दी प्रोसैसिंग प्लांट को ओर आधुनिक बनाने के लिए पैकिंग के लिए हाई-टैक मशीनें लगाने के लिए योजना बना रहे हैं।

उनकी सोच के अनुसार, यदि किसान खेतीबाड़ी से अच्छा मुनाफा लेना चाहता है और कटाई के बाद फसल में से लाभ उठाना चाहता है, तो उसे दलालों को बाहर निकालना पड़ेगा। किसानों को अपनी फसलों पर खुद प्रोसैसिंग करनी पड़ेगी और खुद ही मंडी तक ले जाना पड़ेगा। यह सब करने के लिए बहुत मेहनत,ताकत और जोश की ज़रूरत है। यदि किसान खुद के तैयार किए उत्पाद मंडी में ले जाने में शर्म महसूस करता है, तो वो कभी भी मुनाफा नहीं ले सकता और ना ही तरक्की कर सकता है। यदि कोई किसान हल्दी की खेती में दिलचस्पी ले रहा है तो वह पी ए यू के माहिरों और अन्य हल्दी वाले किसानों से जानकारी ले सकता है क्योंकि माहिर किस्मों, बीजों, ज़मीन की किस्मों और अन्य जरूरी बातों के बारे में ज्यादा जानकारी दे सकते हैं।

गुरदयाल सिंह जी का संदेश-
वर्तमान समय की जरूरतों के अनुसार पारंपरिक खेती किसानों के लिए सहायक नहीं है। यदि किसान फसल की कटाई के बाद अच्छा मुनाफा लेना चाहता है तो विभिन्नता लेकर आनी जरूरी है। आधुनिक खेती के तरीकों से एक छोटा किसान भी सफलता हासिल कर सकता है। आज कल के समय की ज़रूरत फूड प्रोसैसिंग है, सो किसानों को अलग तरीके से सोचना चाहिए। किसानों को समझना पड़ेगा कि मंडी में स्वंय उत्पाद बेचने के लिए दलालों की कोई जरूरत नहीं है। यह काम स्वंय किया जा सकता है।