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यादविंदर सिंह

(घुड़सवारी)

एक ऐसा मेहनती इंसान जिसने बुजुर्गों के शौंक को संभाला और अपने काम में उसे अपनाकर हुआ कामयाब

दादे-परदादे की तरफ से चलती आ रही परंपरा को बना कर रखना और उस परंपरा को फिर से शौंक और पेशे में बदलना कोई आसान काम नहीं है क्योंकि आजकल बहुत कम लोग हैं जो अपने बुजुर्गों की पुरानी परंपरा का पालन कर रहे हैं नहीं तो सभी परंपरा तो क्या अपने बुजुर्गों को ही बुला चुके हैं उनके काम को कैसे याद रखे।

आइए आज हम आपको एक ऐसे किसान यादविंदर सिंह जी के साथ मिलवाते हैं जो जिला श्री मुक्तसर के गांव बरकंदी के निवासी हैं। जिन्होनें अपने बारे में नहीं अपने दादे परदादे की परंपरा को पुनर्जीवित करने के बारे में सोचा और उसे करके भी दिखाया। आज हर कोई उन पर गर्व करता है। इस काम में उनका साथ उनके पिता सरदार हरपाल सिंह जी देते हैं।

आजादी से पहले भी और बाद में भी बहुत से घराने ऐसे थे जिन्हें घोड़े रखने का शौंक था और घोड़े भी अच्छी नस्ल के रखा करते थे। अमीर लोगों में घोड़सवारी करने का शौंक भी था और जरूरत भी थी। पुराने समय में घोड़सवारी का शौंक होने के कारण लगभग 5 से 6 घोड़े हर एक के पास होते थे। पर उस समय के लोग घोड़ों का व्यापार नहीं करते थे।

उन घोड़सवारी के शौंक में यादविंदर सिंह जी के दादा जी का नाम भी आता है, जिन्होनें घोड़सवारी के शौंक को हमेशा बनाई रखा और घोड़े पालते रहे और घोड़सवारी करते रहे। उसके बाद शौंक उनके पिता सरदार हरपाल सिंह जी को पड़ा। हरपाल जी ने भी अपने पिता की तरह घोड़सवारी के शौंक को अपने साथ रखा और अभी तक घोड़सवारी करते हैं। साल 1990 में जब यादविंदर के पिता घोड़सवारी करने जाते थे तो यादविंदर तब छोटे ही होते थे पर वह हमेशा अपने पिता जी को घोड़सवारी करते देखते रहते थे।

जब वह थोड़े बड़े हुए तो उन्होंने धीरे-धीरे सारा दिन फार्म पर रहना शुरू किया और यादविंदर जी को वहां जाकर ऐसा महसूस होता था कि वह कौन-सी ऐसी जगह पर आ गए हैं जहां पर उन्हें सिर्फ शान्ति ही मिलती है फिर यादविंदर जी ने पक्के तौर पर मन बना लिया कि बड़े होकर उन्होंने यही काम करना है जिसकी तस्वीर दिल और दिमाग के ऊपर अच्छी तरह छप चुकी थी।

जब यादविंदर जी को जिंदगी की अच्छी तरह से समझ आने लगी तब उन्होंने 1995 के लगभग घोड़सवारी को शोंक के रूप में अपनाने का फैसला कर लिया और उस समय उनकी आयु 12 साल की ही थी और दिन रात फार्म पर रहकर काम करने लगे क्योंकि प्यार ही इतना हो गया था, ऐसे लगता था कि यादविंदर जी ने इन्हें ही अपना सब कुछ मान लिया था।

जैसे-जैसे दिन निकलते गए यादविंदर जी को मेले में जाने की इच्छा लगी रहती थी कि कब मेले में जाएं और इनाम जीते। उन्होंने नुकरा और मारवाड़ी घोड़े रखे हुए थे, जोकि सबसे बढ़िया नस्ल के माने जाते हैं। दोनों नस्ल के घोड़े बहुत सूंदर हैं क्योंकि इनका कद भी ओर घोड़ों के मुकाबले ऊचा और लंबा होता है।

धीरे-धीरे वह मेले में जाने लगे और घोड़सवारी करने लगे पर उन्हें मुश्किल तब आती थी जब उन्हें घोड़ों के बारे में पूछा जाता था, बेशक बुजुर्ग यह काम करते आएं थे उन्हें पता था पर यादविंदर जी को अधिक जानकारी न होने के कारण मुश्किल होती थी, वहां ही उन्होंने घोड़ों का व्यापार करने के बारे में सोचा जोकि पहले कभी नहीं सोचा था पर उन्होंने उस समय ध्यान नहीं दिया।

उन्होंनें घर में घोड़े रखे हुए थे और जैसे गांव में सभी को पता था जब बाहर के लोगों को पता चला तो लोग उनसे घोड़े खरीदने लगे इस तरह उनका एक घोडा या घोड़े का बच्चा 5 लाख में बिका जिसे देखकर वह हैरान हो गए। वैसे तो घोड़े-घोड़ी से बच्चे पैदा हो रहे थे जो बाद में उनके व्यापार का भाग बना।

यादविंदर सिंह जी के मन में विचार आया क्यों न शौंक के साथ-साथ व्यापार भी किया जाए, फिर उन्होंनें अपने पिता जी के साथ बात की और पिता जी ने इस काम के लिए मंजूरी दे दी। जैसे वह मेले में जाया करते थे और मेले में जाने के कारण धीरे-धीरे घोड़ियों के बारे में पूरी जानकारी हो गई थी। इस बार जब वह मेले गए तो उनसे घोड़ों के बारे में पूछने लगे उन्होंने हर एक की जानकारी बहुत विस्तार से दी और ग्राहक भी घोडा खरीदने के लिए मान गया, जिससे यादविंदर जी बहुत खुश हुए। इस तरह वह मेले में जाते और घोड़े का मूल्य ले आते। इस तरह से लोग उन्हें ओर जानने लगे और उनके ग्राहक बढ़ने लगे।

ग्राहक बनने पर लोग घोडा खरीदने के लिए उनके घर आने लगे जिसका कोई एक मूल्य नहीं ले सकते क्योंकि घोड़े खरीदने वाले पर निर्भर करता है कि घोड़े का बच्चा कितने महीने का लेना चाहता है। इस तरह करते करते 1995 के बाद वह 2005 में अच्छी तरह से कामयाब हुए।

आज इनका घोड़ों का काम इतना बढ़ गया है कि लोग नुकरा और मारवाड़ी का घोडा खरीदने के लिए दूर-दूर से आते हैं, जिससे उन्हें घर बैठे ही मुनाफा हो रहा है।

उन्होंने लगभग 10 घोड़े-घोड़ियां रखें हैं जिससे आगे बच्चे पैदा कर रहे हैं और बेच रहे हैं। उन्होंने मुख्य तौर पर 2 कनाल में फार्म तैयार किया हुआ है, जोकि बिल्कुल हवादार है। इसके इलावा वह घोड़ों को सैर के लिए भी लेकर जाते हैं और घोड़सवारी भी करते हैं। उनका परिवार इस काम में उनका साथ देता है और घोड़ों का अच्छी तरह से ध्यान रखने के लिए पक्के तौर पर डॉक्टर से बात कर रखी है जो समय-समय पर जांच करते रहते हैं।

भविष्य की योजना

वह घोड़ों को आगे प्रतियोगिता के लिए तैयार कर रहे हैं ताकि रेस में भाग लिया जा सके और इसकी तैयार वह हर रोज करते हैं।

संदेश

काम कोई भी बुरा नहीं है बस उसे पहले सीखना चाहिए और फिर करना चाहिए तभी इंसान कामयाब हो सकता है।