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सुरिंदर सिंह नागरा

(चिकित्सक पौधे)

ऐसा किसान जिसने शौंक से शुरू की जड़ी—बूटियों की खेती और किसान से बना वैद्य

सूरेन्द्र सिंह नागरा पंजाब के जिला जालंधर में स्थित गांव कोहाला के निवासी हैं और आजकल वह करतारपुर साहिब में रेशम आयुर्वेदिक नर्सरी चला रहे हैं । नागरा जी ने कई तरह के चिकित्सक पौधों की खेती करके अपनी विलक्षण पहचान बनाई है।

सुरिंदर सिंह नागरा अपने पिता पहलवान नसीब सिंह और माता रेशम कौर के इकलौते पुत्र हैं। नसीब सिंह जी खेती के साथ — साथ आड़तिये का सामान टांगे पर लादकर जालंधर भी छोड़कर आते थे, जिससे उनके परिवार का गुज़ारा चलता था। घर में आर्थिक तंगी देखते हुए सुरिंदर जी ने पिता के साथ, हाथ बंटाने के लिए 17—18 वर्ष की उम्र में टैक्सी चलाने का काम शुरू कर दिया। हालात ठीक होते देख सुरिंदर जी की शादी कर दी गई। कुछ पारिवारिक समस्याओं के कारण उन्होंने अपनी पत्नी से तलाक ले लिया। कुछ समय बाद नागरा जी की दूसरी शादी हुई। दूसरी पत्नी के तौर पर उन्हें नछत्तर कौर का साथ मिला। पारिवारिक जिम्मेवारियों को और अच्छे ढंग से निभाने के लिए उन्होंने शराब के ठेके पर बतौर सुपरवाइज़र काम करना शुरू कर दिया। पर कुछ समय बाद उन्हें यह एहसास हुआ कि नशों का कारोबार ज़ुर्म जैसा है और नागरा जी ने यह नौकरी छोड़ दी। इस दौरान पिता के अचानक देहांत के बाद घर की पूरी ज़िम्मेवारी सुरिंदर जी के सिर पर आ गई। इसके बाद सुरिंदर जी ने कीड़ेमार दवाइयों और खाद की दुकान खोली। पर इस कारोबार में भी सफलता ना मिली। दुकान में चोरी होने के कारण उन्हें काफी नुकसान हुआ।

दुकान में चोरी होने के कारण, सभी लोग बोल रहे थे कि बहुत बुरा हुआ, पर मैंने सभी को हंसकर कहा कि मेरे पापा की कमाई निकल गई, बहुत अच्छा हुआ। — सुरेंन्द्र सिंह नागरा

इसके बाद उन्होने आड़त के साथ साथ ट्रांसपोर्ट का काम शुरू किया। पर खास बात यह है कि वे आड़तिये के काम में ज़िमींदारों से ब्याज नहीं लेते थे। नागरा जी कभी भी किसी किसान को निराश और खाली हाथ वापिस नहीं भेजते, बल्कि आवश्यकतानुसार नकद भी दे देते थे। इस तरीके से काम करने में किसानों का भला तो था ही पर उन्हें बहुत नुकसान हो रहा था, जिस कारण आखिरकार आड़त का काम भी बंद करना पड़ा। फिर उन्होंने अपना सारा ध्यान ट्रांसपोर्ट के काम पर केंद्रित कर दिया। इस कारोबार में मेहनत करके धीरे धीरे उनके पास स्वंय की 4—5 गाड़ियां हो गई।

पारिवारिक ज़िम्मेवारियों के साथ, उनका अपना एक अलग शौंक भी था, जिसने उन्हें प्रसिद्धि दिलवाई उन्हें बचपन से ही जड़ी—बूटियों के बारे में ज्ञान रखने का शौंक था और अपना खाली समय वे अक्सर इस शौंक को पूरा करने में व्यतीत करते थे।

जड़ी—बूटियों के बारे में जानने का शौंक मुझे मेरे दोस्त शिव कुमार के कारण पड़ा, जो कि जालंधर में कानूंगो लगा था। — सुरेंन्द्र सिंह नागरा

ज़िंदगी अपनी रफ्तार पकड़ ही रही थी, कि फिर सुरेंन्द्र जी को कुछ मुसीबतों का सामना करना पड़ा। एक दुर्घटना में सुरिंदर जी की टांग टूट गई। इस हादसे की खबर सुनकर उनके मित्र शिव कुमार उन्हें मिलने आए। शिव कुमार जी शूगर के मरीज़ थे और उनके छाले पड़े हुए थे, पर फिर भी वे सुरिंदर जी को मिलने आए और 10,000 रूपए और अपनी एक घड़ी दे गए।

शूगर की बीमारी के कारण शिव कुमार की बहूत भयावह मृत्यु हुई, जिसने मेरी आत्मा को झिंझोड़ कर रख दिया। इसलिए मैंने कुछ ऐसा करने के बारे में सोचा कि लोगों को ऐसी स्थितियों का सामना ना करना पड़े। — सुरिंदर सिंह नागरा

फिर उन्होंने जड़ी—बूटियों के बारे में और गंभीरता से जानकारी हासिल करनी शुरू की। इस उद्देश्य के लिए वे केरला के पहाड़ों में भी गए और अपने साथ अपने बेटे को भी ले गए, ताकि उन्हें दूसरी भाषा समझने में कोई दिक्कत ना आए। उस उद्देश्य को पूरा करने के चक्कर में उनकी गाड़ियां बिक गई। बैंक से लोन लेकर उन्होंने जो दुकान खोली थी, उससे संबंधित बैंक वालों ने भी घर आकर ज़लील करना शुरू कर दिया।

फिर मुझे पता लगा कि बैंक में नया मेनेजर आया है। मैं उससे मिला और अपने हालातों के बारे में बताया। उसने भी एक अच्छे इंसान की तरह मेरी मजबूरियों को समझा और पिछले लोन उतारने के लिए मुझे 12—13 लाख रूपए के लोन की मंज़ूरी दिलवाई। — सुरेंन्द्र सिंह नागरा

इन सबसे खाली होकर उन्होंने सबसे पहले स्टीविया का एक पौधा लगाया, जो कि वे पालमपुर से लेकर आए थे। इसके बाद उन्होंने अन्य चिकित्सक पौधे लगाने शुरू कर दिए। इस काम में उनके दोनों बेटों और बेटी ने भी पूरा सहयोग दिया। अब उनके सभी पारिवारिक मेंबर चिकित्सक पौधों से पाउडर तैयार करते हैं और इन पौधे की देख-भाल करते हैं।

धीरे धीरे उन्होंने अपने द्वारा लगाए गए चिकित्सक पौधों से दवाइयां तैयार करके बेचनी शुरू कर दी, जिससे मरीज़ों को बहुत लाभ होने लगा।

इस काम में सफलता हासिल करके वे अब बहुत खुशी महसूस करते हैं। इस काम को उनकी बेटी, वैद्य गुरदीप कौर भी अच्छे से संभाल रही है। सुरिंदर जी का छोटा बेटा डेयरी फार्मिंग का काम करता है। वह दूध से उत्पाद तैयार करके बाज़ार में बेचता है।अब उनके सभी पारिवारिक मेंबर चिकित्सक पौधों से पाउडर तैयार करते हैं और पौधों की देख-भल करते हैं।

सुरेंन्द्र सिंह नागरा जी द्वारा उगाए गए चिकित्सक पौधे
  • इंसुलिन
  • स्टीविया
  • सुहाजना
  • छोटी इलायची
  • बड़ी इलायची
  • ब्राह्मी
  • बनक्शा
  • बांसा
  • कपूर
  • अर्जन
  • तेज पत्ता
  • मघ
  • ज़रेनियम
  • हड्ड जोड़ बूटी
  • सदाबहार
  • अश्वगंधा
  • शतावरी
  • अजवायन
  • ओडोमास
  • सीता अशोका
  • सफेद चंदन
  • रूद्राक्श (तीन मुखी)
  • पुत्रनजीवा
  • लहसुन बेल
  • कपूर तुलसी
  • रोज़मेरी
  • नाग केसर
  • अकरकरा
  • सर्पगंधा
  • हार-सिंगार

    जो मरीज़ दवाइयों के पैसे नहीं दे सकते, हम उन्हें दवाई मुफ्त भी देते हैं। — सुरिंदर सिंह नागरा

    इस कार्य के कारण उन्हें शिरोमणि वैद्य कमेटी की तरफ से काफी सम्मान भी मिला है और के साथ भी उनके संबंध बहुत अच्छे हैं। अब सुरिंदर जी केंद्र सरकार के साथ मिलकर किसानों को चिकित्सक पौधों की खेती की तरफ उत्साहित करने वाले प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।

    भविष्य की योजना
    सुरिंदर जी चाहते हैं कि उनके द्वारा शुरू किए गए इस काम को उनके बच्चे संभालें और इसी तरह ही लोगों का इलाज और मदद करें।

    संदेश
    “नौजवान पीढ़ी को चिकित्सिक पौधों के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए ताकि घर—घर में वैद्य हों और लोगों को डॉक्टरों के पास जाकर महंगी — महंगी फीसों से इलाज ना करवाना पड़े। सुरिंदर नागरा जी का मानना है कि किसान से बढ़िया और कोई डॉक्टर नहीं हो सकता। इसलिए किसान को जैविक तरीके से खेती करनी चाहिए।”