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रवि शर्मा

(मधुमक्खी पालन)

कैसे एक दर्जी बना मधुमक्खी पालक और शहद का व्यापारी

मक्खी पालन एक उभरता हुआ व्यवसाय है जो सिर्फ कृषि समाज के लोगों को ही आकर्षित नहीं करता बल्कि भविष्य के लाभ के कारण अलग अलग क्षेत्र के लोगों को भी आकर्षित करता है। एक ऐसे ही व्यक्ति हैं- रवि शर्मा, जो कि मक्खीपालन का विस्तार करके अपने गांव को एक औषधीय पॉवरहाउस स्त्रोत बना रहे हैं।

1978 से 1992 तक रवि शर्मा, जिला मोहाली के एक छोटे से गांव गुडाना में दर्जी का काम करते थे और अपने अधीन काम कर रहे 10 लोगों को भी गाइड करते थे। गांव की एक छोटी सी दुकान में उनका दर्जी का काम तब तक अच्छा चल रहा था जब तक वे राजपुरा, पटियाला नहीं गए और डॉ. वालिया (एग्री इंस्पैक्टर) से नहीं मिले।

डॉ. वालिया ने रवि शर्मा के लिए मक्खी पालन की तरफ एक मार्गदर्शक के तौर पर काम किया। ये वही व्यक्ति थे जिन्होंने रवि शर्मा को मक्खीपालन की तरफ प्रेरित किया और उन्हें यह व्यवसाय आसानी से अपनाने में मदद की।

शुरूआत में श्री शर्मा ने 5 मधुमक्खी बॉक्स पर 50 प्रतिशत सब्सिडी प्राप्त की और स्वंय 5700 रूपये निवेश किए। जिनसे वे 1 ½ क्विंटल शहद प्राप्त करते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं। पहली कमाई ने रवि शर्मा को अपना काम 100 मधुमक्खी बक्सों के साथ विस्तारित करने के लिए प्रेरित किया और इस तरह उनका काम मक्खीपालन में परिवर्तित हुआ और उन्होंने 1994 में दर्जी का काम पूरी तरह छोड़ दिया।

1997 में रेवाड़ी, हरियाणा में एक खेतीबाड़ी प्रोग्राम के दौरे ने मधुमक्खी पालन की तरफ श्री शर्मा के मोह को और बढ़ाया और फिर उन्होंने मधुमक्खियों के बक्सों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया। अब उनके फार्म पर मधुमक्खियों के विभिन्न 350-400 बक्से हैं।

2000 में, श्री रवि ने 15 गायों के साथ डेयरी फार्मिंग करने की कोशिश भी की, लेकिन यह मक्खीपालन से अधिक सफल नहीं था। मज़दूरों की समस्या होने के कारण उन्होंने इसे बंद कर दिया। अब उनके पास घरेलु उद्देश्य के लिए केवल 4 एच. एफ. नसल की गाय हैं और एक मुर्रा नसल की भैंस हैं और कई बार वे उनका दूध मार्किट में भी बेच देते हैं। इसी बीच मक्खी पालन का काम बहुत अच्छे से चल रहा था।

लेकिन मक्खीपालन की सफलता की यात्रा इतनी आसान नहीं थी। 2007-08 में उनकी मौन कॉलोनी में एक कीट के हमले के कारण सारे बक्से नष्ट हो गए और सिर्फ 35 बक्से ही रह गए। इस घटना से रवि शर्मा का मक्खी पालन का व्यवसाय पूरी तरह से नष्ट हो गया।

लेकिन इस समय ने उन्हें और ज्यादा मजबूत और अधिक शक्तिशाली बना दिया और थोड़े समय में ही उन्होंने मधुमक्खी फार्म को सफलतापूर्वक स्थापित कर लिया। उनकी सफलता देखकर कई अन्य लोग उनसे मक्खीपालन व्यवसाय के लिए सलाह लेने आये। उन्होंने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को 20-30 मधुमक्खी के बक्से बांटे और इस तरह से उन्होंने एक औषधीय स्त्रोत बनाया।

“एक समय ऐसा भी आया जब मधुमक्खी के बक्सों की गिणती 4000 तक पहुंच गई और वे लोग जिनके पास इनकी मलकीयत थी उन्होंने भी मक्खी पालन के उद्यम में मेरी सफलता को देखते हुए मक्खीपालन शुरू कर दिया।”

आज रवि मधुमक्खी फार्म में, फार्म के काम के लिए दो श्रमिक हैं। मार्किटिंग भी ठीक है क्योंकि रवि शर्मा ने एक व्यक्ति के साथ समझौता किया हुआ है जो उनसे सारा शहद खरीदता है और कई बार रवि शर्मा आनंदपुर साहिब के नज़दीक एक सड़क के किनारे दुकान पर 4-5 क्विंटल शहद बेचते हैं जहां से वे अच्छी आमदन कमा लेते हैं।

मक्खीपालन रवि शर्मा के लिए आय का एकमात्र स्त्रोत है जिसके माध्यम से वे अपने परिवार के 6 सदस्यों जिनमें पत्नी, माता, दो बेटियां और एक बेटा है, का खर्चा पानी उठा रहे हैं।

“मक्खी पालन व्यवसाय के शुरूआत से ही मेरी पत्नी श्रीमती ज्ञान देवी, मक्खीपालन उद्यम की शुरूआत से ही मेरा आधार स्तम्भ रही। उनके बिना मैं अपनी ज़िंदगी के इस स्तर तक नहीं पहुंच पाता।”

वर्तमान में, रवि मधुमक्खी फार्म में शहद और बी वैक्स दो मुख्य उत्पाद है।

भविष्य की योजनाएं:
अभी तक मैंने अपने गांव और कुछ रिश्तेदारों में मक्खीपालन के काम का विस्तार किया है लेकिन भविष्य में, मैं इससे बड़े क्षेत्र में मक्खीपालन का विस्तार करना चाहता हूं।

संदेश
“एक व्यक्ति अगर अपने काम को दृड़ इरादे से करे और इन तीन शब्दों “ईमानदारी, ज्ञान, ध्यान” को अपने प्रयासों में शामिल करे तो जो वह चाहता है उसे प्राप्त कर सकता है।”

श्री रवि शर्मा के प्रयासों के कारण आज गुडाना गांव शहद उत्पादन का एक स्त्रोत बन चुका है और मक्खीपालन को और अधिक प्रभावकारी व्यवसाय बनाने के लिए वे अपने काम का विस्तार करते रहेंगे।