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राजविंदर पाल सिंह राणा

(मछली पालन)

कैसे एक किसान आधुनिक तकनीक से मछली पालन उद्योग का सश्क्तिकरण कर रहा है

कृषि पद्धतियां और कृषि की तकनीकें विश्व स्तर पर भिन्न हैं। दूसरी ओर नसल की विविधता और स्थान भी एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाते हैं और भारत जैसे देश में रहना जहां भूमि और जलवायु परिस्थितियां खेतीबाड़ी के पक्ष में है। यह किसानों के फायदे के लिए एक महत्तवपूर्ण मुद्दा है। लेकिन वह क्षेत्र जहां भारतीय किसान पीछे हैं वह है खेती करने की तकनीक। एक ऐसे किसान हैं – राजविंदर पाल सिंह राणा, जो विदेश से अपनी मातृभूमि में खेती की आधुनिक तकनीक लेकर आये। वे मंडियानी, लुधियाना, पंजाब के निवासी हैं।

श्री राणा के लिए 2000 में मछली पालन के क्षेत्र में कदम रखना पूरी तरह से नया था, लेकिन आज उनकी उपलब्धियों को देखकर कोई नहीं कह सकता कि उन्होंने मछली पालन 1.5 एकड़ की भूमि पर शुरू किया था। लेकिन इससे पहले उन्होंने एक मार्किटिंग व्यवसायी के तौर पर एक लंबा सफल रास्ता तय किया था। विज्ञापन और बिक्री प्रमोशन में ग्रेजुएट होने पर उन्होंने कोका कोला और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी काफी अच्छी मान्यता प्राप्त ब्रांड के लिए कुछ वर्षों तक काम किया।

लेकिन संभवत: मार्किटिंग समर्थक के रूप में काम करना वह काम नहीं था जो वे अपनी ज़िंदगी में करना चाहते थे। उन्होनें अपनी ज़िंदगी में कुछ खोया हुआ महसूस किया और वापिस पंजाब लौटने का फैसला किया। पी ए यू के एक वरिष्ठ अधिकारी की सलाह लेने के बाद उन्होंने मछली पालन में अपना कैरियर बनाने का फैसला किया। उन्होंने अपने उद्याम को व्यापारिक मछली पालन उदयोग में बदलने से पहले पी ए यू और मछली पालन विभाग एजंसी लुधियाना में ट्रेनिंग ली।

16 वर्ष की अवधि में उनका कृषि उद्यम 70 एकड़ तक बढ़ा है और इन वर्षों में उन्होंने प्रत्येक वर्ष एक नए देश का दौरा किया ताकि मछली पालन में प्रयोग होने वाली आधुनिक और नई नकनीकों को सीख सकें।

“हॉलैंड और इज़रायल के लोग जानकारी शेयर करते हैं जबकि रूस के लोग थोड़े बहुत गोपनीय होते हैं। वे हंसते हुए कहते हैं।”

उनके आविष्कार :
शुरूआत से ही श्री राणा नई तकनीकों के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक रहते थे। इसलिए अपने विदेशी खोजों के बाद श्री राणा ने नए अपनी तीव्र बुद्धि से मछली उत्पादों और मशीनरी का आविष्कार किया और उसे अपने खेत में लागू किया।

मशीन जो तालाब में मछली की वृद्धि ट्रैक करती है
हॉलैंड की यात्रा के अनुभव के बाद उन्होंने जिस पहली चीज़ का आविष्कार किया वह थी मछलियों के लिए एक टैग ट्रैकिंग मशीन। यह मशीन प्रत्येक मछली के टैगिंग और ट्रेसिंग में सहायता करती है। मूल रूप से यह एक डच मशीन है और एक साधारण किसान के लिए सस्ती नहीं है। इसलिए राजविंदर ने उस मशीन का भारतीय संस्करण का निर्माण किया। इस मशीन का उपयोग करके एक किसान मछली को ट्रैक कर सकता है और अन्य मछलियों को किसी भी जोखिम के मामले से बचा सकता

मछली की खाद
दूसरी चीज़ जिसका उन्होंने आवष्किार किया वह थी मछली की खाद। उन्होंने एक प्रक्रिया की खोज की जिसमें मछली के व्यर्थ पदार्थों को गुड़ और विघटित सामग्री के साथ एक गहरे गडढे में 45 दिनों के लिए रखा जाता है और फिर इसे सीधे इस्तेमाल किया जा सकता है और यह खाद बागबानी प्रयोजन के लिए काफी फायदेमंद है।

बाज़ार में बिक्री के लिए जीवित मछली रखने का उपकरण
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि जीवित और ताजी मछलियों के अच्छे भाव मिलते हैं। इसलिए उन्होंने एक विशेष पानी की टंकी का निर्माण किया जिसे किसान आसानी से कहीं पर भी लेकर जा सकते हैं। इस टंकी में एक 12 वोल्ट डी सी की मोटर लगी है जो कि बाहर की हवा को पंप करती है जिससे मछलियां जीवित और ताजी रहती हैं।

मछली की त्वचा से बना फैशन सहायक उपकरण
मछली की त्वचा एक अम्ल जैसा पदार्थ छोड़ती है जिसके कारण मछली की त्वचा पानी में 24/7 चमकदार रहती है। इसलिए श्री राणा ने इसका उपयोग करने का फैसला किया और मछली की त्वचा को हटाने की बजाय उन्होंने इसे मोबाइल कवर बनाने का उपयोग किया। पी ए यू ने उनके इस प्रोजैक्ट को सफल बनाने में सहायता की। मछली की त्वचा से बने मोबाइल कवर बहुत फायदेमंद होते हैं क्योंकि वे मोबाइल विकिरण के उत्सर्जन को रोकते हैं और मनुष्यों को बुरे प्रभावों से बचाव करते हैं। उन्होंने यह भी समझा कि मछली की त्वचा का प्रयोग महिलाओं के बैग बनाने के लिए भी किया जा सकता है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में मछली की त्वचा का मूल्य 600 यूरो प्रति इंच है। श्री राणा ने मोबाइल कवर पर पेटेंट के लिए आवेदन किया है और इस पर सरकार की स्वीकृति का इंतज़ार कर रहे हैं।

वे भारत के मछली उदयोग में होने वाली समस्याओं के बारे में भी बात करते हैं।-

“भारत के बैंक मछली प्रयोजन में कोई समर्थन नहीं करते। बिजली और पानी की उपलब्धता से संबंधित अन्य मुद्दे हैं। लेकिन किसानों के बीच साक्षरता का अभाव एक अन्य कारक है जो भारत में मछली पालन के क्षेत्र के विकास में बाधा पहुंचा रहा है।”

उनका मानना है कि इस विषय में भारत सरकार को ऐसे ट्रिप का आयोजन करना चाहिए जिसमें एक वैज्ञानिक और 9 किसानों के ग्रुप को ट्रेनिंग के लिए विदेशों में भेजा जाये।

वर्तमान में, राजविंदर अपने राज एक्वा वर्ल्ड फार्म (Raj Aqua World farm) पर व्यापारिक उद्देश्य के लिए रोहू, कतला और मुरक मछली की नस्लों को बढ़ा रहे हैं। कई अन्य साथी किसानों ने भी उनकी तकनीकों को अपनाकर लाभ प्राप्त किया है। उन्होंने अन्य किसानों के साथ मछली पालन में काफी अच्छी पार्टनरशिप की है और दूसरे राज्यों को बड़ी मात्रा में मछली बेच रहे हैं। सरकार उनसे सब्सिडी दरों पर मछलियां खरीद लेती है। यह सारी सफलता उनकी अपनायी गई नई तकनीकों, आविष्कारों और परीक्षण करने की योग्यता का नतीजा है।

भविष्य की योजना
वे भविष्य में एक्वापोनिक्स पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि बेहतर परिणाम के लिए एक्वापोनिक्स में मछली की नस्ल का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।


पुरस्कार और उपलब्धियां

• 2004-05 में मछली पालन में व्यर्थ पानी के सही उपयोग के लिए पी ए यू किसान क्लब की तरफ से Best Farmer of Punjab

• 2005-06 में श्री जगमोहन कंग की तरफ से पंजाब के सर्वश्रेष्ठ मछली पालक

• 2005-06 में Ministry of Animal Husbandry and Dairy Development and Fishery from Mr. Jagmohan Kang की तरफ से Best Fish Farmer of Punjab

• 2005 Fish Farmers Development Agency, Moga (35 qt.) द्वारा low level water harvesting technology में Best Production Award

• 2006-07 में water quality management के लिए सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार

• 2008-09 में मछलीपालन के पानी का भंडारण और एग्रीकल्चर के संसाधनों का दोबारा प्रयोग करने के लिए पुरस्कार

• 2010-2011 में मछली पालन में सीवेज़ पानी का सही उपयोग करने के लिए पुरस्कार