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बिनसर फार्म

(डेयरी फार्मिंग और मंडीकरण)

बिनसर फार्म: कैसे दोस्तों की तिकड़ी ने फार्म से टेबल तक दूध पहुंचाने के कारोबार को स्थापित करने में सफलता प्राप्त की

आप में से कितने लोगों ने रोज़गार के साथ साथ कृषि समाज में योगदान देने के बारे में सोचा है ? जवाब बहुत कम हैं…

जो व्यक्ति पेशेवर तौर पर कृषि क्षेत्र के लिए समर्पित है, उसके लिए समाज की तरफ समय निकालना कोई बड़ी बात नहीं, पर सर्विस करने वाले व्यक्ति के लिए यह एक मुश्किल काम है।

खैर, यह उन तीन दोस्तों की कहानी है जिन्होंने अपने सपनों को अपनी नौकरी से जुड़े होने के बावजूद भी पूरा किया और बिनसर फार्म को सही तौर पर स्थापित करने के लिए मिलकर काम किया।

बिनसर फार्म के पीछे 40 वर्षों के पंकज नवानी जी की मेहनत है, जो आदर्शवादी पिछोकड़ से संबंधित थे, जहां उनके दादा पोखरा ब्लॉक, उत्तरांचल में अपने गांव गवानी की बेहतरी के लिए काम करते थे। उनके दादा जी ने गांव के बच्चों के लिए तीन प्राइमरी स्कूल, एक कन्या विद्यालय,एक इंटरमिडिएट और एक डिग्री कॉलेज स्थापित किया। पंकज नवानी जी की परवरिश ऐसे वातावरण में हुई, जहां उनके दादा जी ने समाज के लिए बिना शर्त स्व: इच्छुक भाईचारे की जिम्मेवारी का सकारात्मक दृष्टिकोण बनाया और अब तक पंकज के साथ ही रहे हैं।

उसके सपनों को अपने साथ लेकर, पंकज जी अभी भी एक अवसर की तलाश में थे और जीनामिक्स और इंटीग्रेटिव बायोलोजी के इंस्टीट्यूट में काम करते हुए आखिर में उन्होंने अपने भविष्य के साथी दीपक और सुखविंदर (जो उनके अधीन काम सीख रहे थे) के साथ मुलाकात की। बिनसर फार्म का विचार हकीकत में आया जब उनमें से तीनों ही बिनसर की पहाड़ियों में एक सफर पर गए और वापिस आते समय रास्ता भूल गए। पर सौभाग्य से वे एक गडरिये से मिले और उसने उन्हें अपने शैड की तरफ बुलाया और उन्होंने वह रात उस झोंपड़ी में बड़े आराम से व्यतीत की। अगली सुबह गडरिये ने उन्हें शहर की तरफ सही मार्ग दिखाया और इस तरह ही बिनसर का उनका सफर एक परी कहानी की तरह लगता है। गडरिये की दयालुता और निम्रता के बारे में सोचते हुए उन्होंने उत्तरांचल के लोगों के लिए कुछ करने का फैसला किया। वास्तव में, सबसे पहले उन्होंने सोचा कि वे फल, सब्जियां और दालों को पहाड़ों में उगाएं और मैदानी इलाकों में अन्य गांव के किसानों को इक्ट्ठा करके बेचें। उन तीनों ने नौकरी के साथ साथ इस प्रोजैक्ट पर काम करना शुरू कर दिया और उन्होंने समर्थन लेना शुरू कर दिया।

यह 2011 की बात है, जब तीनों ने अपने सपनों के प्रोजैक्ट से आगे बढ़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी। चुनाव का समय होने के कारण, जहां कहीं भी वे गए, सबने उनकी योजना का समर्थन किया और उसी वर्ष पंकज एक दफ्तरी काम के सिलसिले में न्यूज़ीलैंड गए। पर इससे उनके सपनों के प्रोजैक्ट और प्रयत्नों में ज्यादा अंतर नहीं आया। न्यूज़ीलैंड में पंकज जी फोंटेरा डेयरी ग्रुप के संस्थापक डायरैक्टर अरल रैटरे को मिले। अरल रैटरे के साथ कुछ सामान्य बातें करने के बाद, पंकज जी ने उनके साथ अपने सपनों की योजना का विचार सांझा किया और उत्तरांचल की कहानी सुनने के बाद, अरल ने तिक्कड़ी में शामिल होने और चौथा साथी बनने में दिलचस्पी दिखाई बिनसर फार्म प्रोजैक्ट को हकीकत में बदलने के लिए अरल रैटरे हिस्सेदार कम निवेशक के रूप में आगे आए।

जैसे ही चुनाव खत्म हुए तो पता लगा कि सत्ताधारी पार्टी को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। इससे ही सारे वायदे और विचार एक रात में ही खत्म हो गए और बिनसर फार्म के सपनों का प्रोजैक्ट शुरूआती स्तर पर आ गया। पर पंकज, दीपक और सुखविंदर जी ने उम्मीद नहीं छोड़ी और खेतीबाड़ी समाज की मदद के लिए और संभव विकल्प अपनाने का फैसला किया, और यह वह समय था जब अरल रैटरे ने बिनसर फार्म प्रोजैक्ट की पूर्ति के लिए डेयरी फार्मिंग के विशाल अनुभव के साथ आगे आये।

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सुखविंदर सराफ, पंकज नवानी, अरल रैटरे, एक मित्र, दीपक राज (बायें से दायीं ओर)

दीपक और सुखविंदर जी दोनों ऐसे परिवारों से थे, जहां सभ्याचार और रीति रिवाज पुराने समय की तरह ही थे और उनका रहन सहन बहुत ही रवायती और बुनियादी है। प्राजैक्ट के बारे में जानने के बाद दीपक जी के पिता ने उन्हें सोनीपत, हरियाणा के नज़दीक 10 एकड़ ज़मीन ठेके पर लेने का प्रस्ताव दिया। 2012 तक उन्होंने डेयरी प्रबंधन और अरल द्वारा बतायी आधुनिक तकनीकों से डेयरी फार्मिंग का कारोबार शुरू किया।

इतना ही नहीं, सामाजिक विकास के लिए जिम्मेवारी से काम करते हुए उन (पंकज, दीपक, सुखविंदर और अरल) ने पांच स्थानीय किसानों को चारा उगाने के लिए 40 एकड़ ज़मीन ठेके पर दी, जिन्हें वे बीज, खादें और अन्य संसाधन सप्लाई करते हैं। पांच किसानों का यह समूह अपनी नियमित आय के लिए निश्चित रहता है और इन्हें फसलों के लिए मंडी रेट के बारे में सोचना नहीं पड़ता, जिससे वे भविष्यवादी सोच द्वारा अपने परिवार के बारे में सोच सकते हैं और अपने बच्चों की पढ़ाई और अन्य चीज़ों की तरफ ध्यान दे सकते हैं।

जब बात आती है पशुओं की सेहत की तो चारा सबसे अधिक ध्यान देने योग्य चीज़ है। किसानों को यह हिदायत दी जाती है कि वे कटाई से 21 दिन पहले तक ही कीटनाशकों का प्रयोग करें। पंकज और उनके साथी बहुत सारा समय और ताकत बेहतर डेयरी प्रबंधन के अभ्यास में लगाते हैं। इस कारण पशुओं के आवास स्थान पर पानी का भराव और चीकड़ जैसी समस्या नहीं आती। इसके अलावा शैड की तरफ ध्यान देते हुए उन्होंने फर्श कंकरीट की बजाय मिट्टी का बनाया है, क्योंकि पक्का फर्श पशुओं की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करता है और बहुत सारे डेयरी किसान इस बात से अनजान हैं।

पंकज जी ने डेयरी संबंधी अन्य दिलचस्प जानकारी सांझा की। उन्होंने बताया कि उनके फार्म पर पशुओं में लंगड़ापन 1 प्रतिशत है जबकि बाकी फार्मो पर यह 12—13 प्रतिशत होता है।

यह बहुत ही अनोखी जानकारी थी क्योंकि यह जानकार दुख होता है कि जब पशु में लंगड़ापन आता है तो वह नियमित फीड नहीं लेता, जिससे दूध उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है।

इस समय बिनसर फार्म पर 1000 से अधिक गायें हैं, जिनके द्वारा वे फार्म से टेबल तक दिल्ली और एन.सी.आर. के 600 परिवारों को दूध सप्लाई करते हैं।

थोड़े समय के बाद उन्होंने स्थानीय किसान परिवारों को गायें दान करने की योजना बनाई, जिनसे वे डेयरी प्रबंधन संबंधी माहिर सलाह और जानकारी सांझा करते हैं और अंत में उनसे स्वंय ही दूध खरीद लेते हैं। इससे किसान को स्थिर आय और जीवन में समय के साथ सार्थक बदलाव लाने में मदद मिलती है।

इस समय बिनसर फार्म हरियाणा और पंजाब के 12 अन्य डेयरी फार्म के मालिकों के साथ काम कर रहा है और सामूहिक तौर पर दहीं, पनीर, घी आदि का उत्पादन करते हैं।

इस तिकड़ी ने अपने प्रयत्नों के सुमेल से एक ऐसा ढांचा बनाने की कोशिश की, जिससे वे ना केवल सामाजिक विकास में मदद कर रहे हैं, बल्कि कृषि समाज से अपने आधुनिक खेती अभ्यास भी सांझा कर सकते हैं। बिनसर फार्म प्रोजैक्ट का विचार पहाड़ी सफर के दौरान पंकज, दीपक और सुखविंदर जी के दिमाग में आया, पर उसके बाद इससे कई किसान परिवारों की ज़िंदगी बदल गई।

पंकज और टीम का यह यकीन है कि आने वाले समय में नई पीढ़ी को चलाने के लिए पैसे ज़रूरत नहीं रहेगी बल्कि उन्हें उत्साहित करने और नैतिकता के अहसास के लिए जुनून की जरूरत होगी, तो ही वे आपने सपने पूरे कर सकेंगे।