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गुरचरन सिंह मान

(मधुमक्खी पालन)

जानें कैसे गुरचरन सिंह मान ने विविध खेती और अन्य सहायक गतिविधियों के द्वारा अपनी ज़मीन से अधिकतम उत्पादकता ली

भारत में विविध खेती का रूझान इतना आम नहीं है। गेहूं, धान और अन्य पारंपरिक फसलें जैसे जौं आदि मुख्य फसलें हैं जिन्हें किसान उगाने के लिए पहल देते हैं। वे इस तथ्य से अनजान है कि परंपरागत खेती ना केवल मिट्टी के उपजाऊपन को प्रभावित करती है बल्कि किसान को भी प्रभावित करती है और कभी कभी यह उन्हें कमज़ोर भी बना देती है। दूसरी ओर विविध खेती को यदि सही ढंग से किया जाए तो इससे किसान की आय में बढ़ोतरी होती है। एक ऐसे ही किसान – गुरचरन सिंह संधु जिन्होंने विविध खेती की उपयोगिता को पहचाना और इसे उस समय लागू करके लाभ कमाया जब उनकी आर्थिक स्थिति बिल्कुल ही खराब थी।

गुरचरन सिंह संधु बठिंडा जिले के तुंगवाली गांव के एक साधारण से किसान थे। जिस स्थान से वे थे वह बहुत ही शुष्क और अविकसित क्षेत्र था लेकिन उनकी मजबूत इच्छा शक्ति के सामने ये बाधाएं कुछ भी नहीं थी।

1992 में युवा उम्र में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और खेती करनी शुरू की। उनके पास पहले से ही 42 एकड़ ज़मीन थी लेकिन वे इससे कभी संतुष्ट नहीं थे। शुष्क क्षेत्र होने के कारण गेहूं और धान उगाना उनके लिए एक सफल उद्यम नहीं था। कई कोशिश करने के बाद जब गुरचरन पारंपरिक और रवायती खेती में सफल नहीं हुए तो उन्होंने खेती के ढंगों में बदलाव लाने का फैसला किया। उन्होंने विविध खेती को अपनाया और इस पहल के कारण उन्हें Punjab Agriculture University के द्वारा वर्ष का सर्वश्रेष्ठ किसान चुना गया और विविध खेती अपनाने के लिए उन्हें PAU के पूर्व अध्यापक मनिंदरजीत सिंह संधु द्वारा “Parwasi Bharti Puraskar” से सम्मानित किया गया।

आज 42 एकड़ में से उनके पास 10 एकड़ में बाग हैं, 2.5 एकड़ में सब्जियों की खेती, 10 एकड़ में मछली फार्म और आधे एकड़ में बरगद के वृक्ष हैं। हालांकि उनके लिए विविध खेती के अलावा वास्तविक खेल प्रवर्त्तक, जिसने सब कुछ बदल दिया वह था मधु मक्खी पालन। उन्होंने मक्खीपालन की सिर्फ मक्खियों के 7 बक्से से शुरूआत की और आज उनके पास 1800 से भी अधिक मधुमक्खियों के बक्से हैं जिनसे प्रत्येक वर्ष एक हज़ार क्विंटल शहद का उत्पादन होता है।

श्री गुरचरन अपने काम में इतने परिपूर्ण हैं कि उनके द्वारा निर्मित शहद की गुणवत्ता अति उत्तम हैं और कई देशों में मान्यता प्राप्त है। मक्खीपालन में उनकी सफलता ने उनके गांव में शहद प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करने के लिए जिला प्रशासन का नेतृत्व किया और इस प्लांट ने 15 लोगों को रोजगार दिया जो गरीबी रेखा के नीचे आते हैं। उनका मधुमक्खी पालन व्यवसाय ना केवल उन्हें लाभ देता है बल्कि कई अन्य लोगों को रोज़गार प्रदान करता है।

श्री गुरचरन ने विभिन्नता के वास्तविक अर्थ को समझा और इसे ना केवल सब्जियों की खेती पर लागू किया बल्कि अपने व्यवसाय पर भी इसे लागू किया। उनके पास बागान, मछली फार्म, डेयरी फार्म हैं और इसके अलावा वे जैविक खेती में भी निष्क्रिय रूप से शामिल हैं। मधुमक्खी पालन व्यवसाय से उन्होंने मधुमक्खी बक्से बनाने और मोमबत्ती बनाने जैसी अन्य गतिविधियों को शुरू किया है।

“एक चीज़ जो प्रत्येक किसान को करनी चाहिए वह है मिट्टी और पानी की जांच और दूसरी चीज़ किसानों को यह समझना चाहिए कि यदि एक किसान आलू उगा रहा है तो दूसरे को लहसुन उगाना चाहिए उन्हें कभी किसी की नकल नहीं करनी चाहिए।”

मधुमक्खी पालन अब उनका प्राथमिक व्यवसाय बन चुका है इसलिए उनके फार्म का नाम “Mann Makhi Farm” है और शहद के अलावा वे जैम, आचार, मसाले जैसे हल्दी पाउडर और लाल मिर्च पाउडर आदि भी बनाते हैं। वे इन सभी उत्पादों का मंडीकरण “Maan” नाम के तहत करते हैं।

वर्तमान में उनका फार्म आस पास के वातावरण और मनमोहक दृश्य के कारण Punjab Tourism के अंतर्गत आता है उनका फार्म वृक्षों की 5000 से भी ज्यादा प्रजातियों से घिरा हुआ है और वहां का दृश्य प्रकृति के नज़दीक होने का वास्तविक अर्थ देता है।

उनके अनुसार आज उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया वह सिर्फ PAU के कारण। शुरूआत से उन्होंने वही किया जिसकी PAU के माहिरों द्वारा सिफारिश की गई। अपने काम में अधिक व्यावसायिकता लाने के लिए उन्होंने उच्च शिक्षा भी हासिल की और बाद में technical and scientific inventions में ग्रेजुएशेन की।

गुरचरन सिंह की सफलता की कुंजी है उत्पादन लागत कम करना, उत्पादों को स्वंय मंडी में लेकर जाना और सरकार पर कम से कम निर्भर रहना। इन तीनों चीज़ें अपनाकर वे अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

उन्होंने खेती के प्रति सरकार की पहल से संबंधित अपने विचारों पर भी चर्चा की –

“ सरकार को खेतीबाड़ी में परिवर्तन को और उत्साहित करने की तरफ ध्यान देना चाहिए। रिसर्च के लिए और फंड निर्धारित करने चाहिए और नकदी फसलों के लिए सहयोग मुल्य पक्का करना चाहिए तभी किसान खेतीबाड़ी में परिवर्तन को आसानी से अपनाएंगे।”

संदेश
किसानों को इस प्रवृत्ति का पालन नहीं करना चाहिए कि अन्य किसान क्या कर रहे हैं उन्हें वह काम करना चाहिए जिसमें उन्हें लाभ मिले और अगर उन्हें मदद की जरूरत है तो कृषि विशेषज्ञों से मदद ले सकते हैं। फिर चाहे वे पी ए यू के हों या किसी अन्य यूनिवर्सिटी के क्योंकि वे हमेशा अच्छा सुझाव देंगे।