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द्वारा प्रकाशित किया गया था Regional Research Center, Faridkot
पंजाब
2020-08-29 10:51:08

नरमा/कपास की फसल कई तरह की उल्लियाँ, बैक्टीरिया और विषाणु की बिमारियों का हमला होने से इसकी पैदावार और गुणवत्ता पर बुरा असर डालती हैं। इन बिमारियों के हमले के कारण फसल पर विभिन्न तरह की निशानियां दिखाई देती हैं जैसे कि पत्तों का कटोरी यां कप की शक्ल ले लेना, पत्तों पर धब्बे, पौधों का सूखना आदि। पर बरसात के मौसम में ख़ासतौर पर बी टी नरमें की फसल पर उल्ली के धब्बों के रोग का हमला बढ़ रहा है। पिछले साल सितंबर महीने में भारी बारिश के बाद बठिंडा, मानसा, संगरूर और फरीदकोट ज़िलों के कुछ खेतों में बी टी नरमें की फसल पर इन उल्ली के धब्बों का हमला काफ़ी मात्रा में देखा गया। अगर इन उल्ली का हमला अगेता हो जाये तो उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। टिड्डों का हमला होने की स्तिथि में कपास की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। इसलिए हम लेख में इन उल्ली के धब्बों के बारे विस्तार से जानकारी दे रहे है ताकि जो हमारे हमारे कपास की खेती करने वाले इस लेख को पढ़ कर समय पर इन धब्बों की बीमारी से अपनी फसल को बचा सकें।

नरमे कपास की फसल पर कई उल्लियाँ जैसे कि आलटरनेरिया मायरोथीषियम और सरकोस्पोरा के हमले के कारण पत्तों पर विभिन्न तरह के धब्बे पड़ जाते हैं। आलटरनेरिया के हमले से पत्तों के ऊपर हल्के पीले से भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जो कि बाद में गहरे भूरे हो जाते हैं। अधिक हमले की स्तिथि में पत्ते सिकुड़कर झड़ जाते हैं। आमतौर पर हल्की ज़मीनों में बोई गई नरमें की फसल पर इस बीमारी का हमला अधिक होता है। जिन ज़मीनों में पोटाश की कमी होती है उनमें इस बीमारी का हमला अधिक मात्रा में नज़र आता है। बीमारी की उल्ली फसल के अपशिष्ट-अवशेष पर पलती रहती है।

इसके अलावा मायरोथीषियम उल्ली का हमला भी बी टी नरमे की फसल पर बढ़ रहा है। इस बीमारी की उल्ली का हमला पत्तों और टिंडे पर नज़र आता है। इस बीमारी के हमले से पत्तों पर गोल भूरे रंग के जामनी किनारों वाले धब्बे पड़ जाते हैं। बाद में इन धब्बों पर काले रंग के उभरते टिमकने बन जाते हैं जो इस तरह प्रतीत होते हैं जैसे इन पर कोले का छिड़काव किया हो। बाद में यह धब्बे बीच में से गिर जाते हैं जिससे पत्तों में छेद नज़र आते हैं। अगर बीमारी का हमला अगेता हो जाए तो पत्तें झड़ जाते हैं। इस बीमारी की लाग बीज और फसल की अपशिष्ट-अवशेष पर पलती रहती हैं। इस बीमारी का हमला ज्यादातर बी टी नरमे की भारी फसल पर ज़्यादा होता हैं। इन उल्ली के धब्बों का हमला बारिश के समय में ज़्यादा देखने को नज़र आता हैं। बरसात के मौसम के बाद बी टी नरमें की फसल की वृद्धि तेज़ी से होती है। भारी जमीनों में शाखाएं एक दूसरे में फसने के कारण नरमें की फसल घनी हो जाती है। गर्म और ठंडे मौसम में समय इस घनी फसल पर उल्ली के धब्बों का हमला तेज़ी से फैलता हैं। किसानों को सुझाव दिया जाता है कि वो जुलाई से सितंबर महीने के समय अपने खेतों का निरंतर सर्वेक्षण करते रहें ।  बरसात के मौसम के समय जैसे ही उनके खेतों में इन उल्ली के धब्बों का हमला नज़र आये तो वह फसल पर 200 एमीस्टार टॉप 325 ताकत को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।बरसात होने के अंतराल और बीमारी की तीव्रता को ध्यान में रखते हुए जरूरत अनुसार 15-20 दिनों के अंतराल के बाद फिर छिड़काव किया जा सकता है। बीमारी से प्रभावित पौधों को निकालकर ईंधन के लिए उपयोग करें। इस तरह करने से अगले साल के लिए लगने वाली बीमारी की लाग को कम किया जा सकता है।

 

अशोक कुमार: 85589-10268 

अशोक कुमार और अमरजीत सिंह