पंजाब के उत्तर-पूर्वी जिलों में आलू की बिजाई सितंबर के अंतिम सप्ताह में शुरू हो जाती है और उसके बाद गेहूं की बिजाई की जाती है।
पंजाब में मुख्य फसल के रूप में आलू को अक्तूबर में बोया जाता है।
आलू की बिजाई करने के लिए ज़मीन को अच्छी तरह से तैयार किया जाना चाहिए। हरी खाद के लिए बोया गया सण या उपकरण की ज़मीन में ही जुताई कर दें। ताकि बिजाई से पहले यह अच्छी तरह से गल-सड़ जाए।
यदि नदीन या पहली फसल की शुरुआत में कोई बड़ी समस्या न है, तो आलू की फसल को मामूली जुताई के साथ भी बोया जा सकता है और ज़मीन तैयार होने के बाद, बिजाई से पहले 20 टन गोबर की रुडी बिजाई से पहले ही दाल दें, ताकि बिजाई के समय पर खेत में अच्छी तरह से गल-सड़ जाए।
बीज को कोल्ड स्टोर से बाहर निकालकर सीधा बिजाई के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता।इसको पहले पंखे की मदद से सूखा लें और उन्हें एक ठंडी जगह पर फैला दें जहाँ पर सीधी धूप न पड़ती हो और उन्हें 8-10 दिनों के लिए छोड़ दें। ऐसा करने से फुटाव शुरू हो जाता है और फोट भी नरम हो जाती है। इस समय के दौरान बीजों को साफ करते समय, उपचार करके सूखा लिया जाना चाहिए।
आलू को खरिंड रोग से रोकथाम के लिए मोनसरण 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी और इमेस्टो प्राइम 83 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी में घोलकर बिजाई से पहले 10 मिंट के लिए डुबोकर उपचार कर लें।बिजाई के लिए 40 से 50 ग्राम भारी आलू, 13 से 18 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से जरूरत होती है।
हाथ से बिजाई करते समय, पहले आलू को लगा दें और फिर मेड वाली मशीन से मेड बना लें। मेड 60 सेंटीमीटर के अंतराल में और आलू के बीच 20 सेंटीमीटर का अंतराल होना चाहिए।
मशीन से बिजाई के लिए, मशीन के अनुसार, मेड से मेड और आलू से आलू की दुरी 65*18.5 सेंटीमीटर या 75*15 सेंटीमीटर रखें। खादों में फास्फोरस, पोटाष और आधी नाइट्रोजन बिजाई के समय डाल दें। बाकी की नाइट्रोजन मिटटी को लगाने के समय डाल दें।