विशेषज्ञ सलाहकार विवरण

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द्वारा प्रकाशित किया गया था PAU, Ludhiana
पंजाब
2020-09-28 11:15:16

बासमती के भुरड़ रोग की समय पर रोकथाम-

  • बासमती की फसल पर भुरड़ रोग (ब्लास्ट) या घंडी रोग/नैक ब्लास्ट के हमले से बहुत नुकसान होता है। इस रोग के हमले से पहले नीचली पत्तियों में स्लेटी रंग के लंबुतरे जैसे धब्बे पड़ जाते हैं जो बाद में एक दूसरे में मिलकर पत्तों को जलाकर रख देते है।
  • गंभीर मामलों में, इस बीमारी का हमला बालियों के नीचे तने पर भी हो जाता है जिस के कारण बालियां नीचे की तरफ झुककर सूख जाती है और झाड़ का काफी नुक्सान हो जाता है। 
  • आम तौर पर किसान भाई उल्लीनाशक का छिड़काव सिफारिश किये गए समय के बाद ही करते है, इन की मात्रा सिफारिश से अधिक, पानी की मात्रा कम और गैर सिफारिश उल्लीनाशक का प्रयोग करते है जिस से इस बीमारी की रोकथाम अच्छी तरह से नहीं होती और इसके अलावा बेकार उल्लीनाशक भी दानों में रह जाते है। 
  • यदि अनाज में उल्लीनाशक की मात्रा सहनशीलता सीमा (0.01 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम) से अधिक है, तो कई देश बासमती लेने से इंकार करते हैं, जिससे बाजारों में कीमतें कम होती हैं।
  • किसानों भाईओं से अपील की जाती है कि वह इस समय अपनी बासमती की फसल का सर्वेक्षण करते रहें। 
  • जिन किसानों के खेत पिछले साल इस रोग का हमला हुआ था, वह बासमती की फसल पर 500 ग्राम एंडोफिल जेड-78 या 200 मिलीलीटर एमीस्टार टॉप 325 एससी 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव अंकुर फूटने के समय और दूसरा छिड़काव 10 से 12 दिनों के बाद ताकि इस बीमारी को सही समय पर नियंत्रित किया जा सके। 
  • सूखे के मौसम में सूखे से बचाव के लिए फसल को पानी देते रहें। 
  • बासमती की फसल पर कार्बेन्डाजिम, ट्राईसाइक्लोजोल, प्रोपीकोनाजोल, थायोफिनेट मिथाइल का प्रयोग बिलकुल न करें।
  • फसल पकने के कुछ महीने पहले उल्लीनाशक का आखिरी छिड़काव बंद कर देना चाहिए ताकि किसी भी दाने में उल्ली के अंश न लगे।