द्वारा प्रकाशित किया गया था Indian Council of Agricultural Research, Delhi
पंजाब
2020-09-16 11:03:20
कपास, भारत की एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है। व्यावसायिक रूप से इसको श्वेत स्वर्ण भी कहा जाता है। कपास देश की औद्योगिक व कृषि अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। इसकी खेती लगभग पूरे विश्व में की जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और भारत कपास उत्पादन में अग्रणी देश हैं। भारत में इसकी खेती लगभग 10.26 मिलियन हैक्टर भूमि पर की जाती है। कपास की खेती वस्त्र उद्योग को बुनियादी कच्चा माल उपलब्ध करवाती है। देश में प्रत्यक्ष रूप से 6.0 मिलियन किसान इसकी खेती से जुड़े हैं और यह उन्हें आजीविका प्रदान करती है। इसके अलावा कपास के बीजों से तेल निकलता है और साथ ही इसका बिनौला, पशु आहार के रूप में आमतौर पर उपयोग में लाया जाता है। भारत में सबसे ज्यादा कपास का उत्पादन गुजरात में होता है। इसके अलावा महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक राज्य में प्रमुखता से इसकी खेती की जाती है।
पिंक बाॅलवर्म का संक्रमण:
कपास की दूसरी चुनाई के समय पौधों पर लगे बाॅल्स; टिंडों के खुलने की अवस्था में होता है। पहले कपास की बुआई के 90 दिनों के बाद इसका संक्रमण दिखाई देता है।
पिंक बाॅलवर्म के संक्रमण की पहचान:
गुलाबी इल्लियों से प्रभावित फूलों का गिर जाना।
खुले हुए बाॅल्स पर दाग। यह गुलाबी इल्लियों के प्रकोप का प्रमुख लक्षण है। इन दागों की शुरुआत में फूलों
और बाद में बाॅल्स पर संक्रमण के बाद दिखाई देना।
हरे बॉल्स सतह पर काले रंग का दाग गुलाबी इल्लियों के संक्रमण का एक लक्षण।
हरे बाॅल्स पर गुलाबी इल्लियों के निकास छिद्र, जो बाॅल्स के अंदर इल्लियों के होने का संकेत।
पिंक बाॅलवर्म पर नियंत्रण:
भारत में पिंक बाॅलवर्म के संक्रमण को रोकने तथा उन से निजात पाने के लिए भाकृअनुप-केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान ने विविध प्रकार की रणनीतियां बनाई हैं। इन को एकीकृत कीट प्रबंधन द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। इन रणनीतियों को अपनाकर किसान पिंक बाॅलवर्म संक्रमण को नियंत्रित कर सकते हैंः
कपास की जल्द परिपक्व होने वाली किस्मों का प्रयोग करें, क्योंकि पिंक बाॅलवर्म का प्रकोप आमतौर से फसल पर देरी से होता है।
कपास की चुनाई के बाद फसल के सभी अवशेषों को नष्ट कर दें। किसी भी अवस्था में फसल को जनवरी से पहले समाप्त कर दें। इसके साथ ही मई के बाद ही कपास की बुआई करें अन्यथा फसल पिंक बाॅलवर्म से
प्रभावित हो सकती है।
बीटी कपास के साथ गैर बीटी कपास को रिफ्यूज़ के तौर पर खेतों में अवश्य लगायें।
कपास के पौधों की नियमित निगरानी करें और ऐसे सभी फूल जिनकी पंखुड़ियां ऊपर से चिपकी हों, उन्हें
हाथ से तोड़कर उनके अंदर मौजूद गुलाबी इल्लियों को नष्ट करें। इसके साथ ही गिरी हुई संक्रमित
कलियों, फूलों और गूलरों को भी नष्ट करें।
पिंक बाॅल वर्म की निगरानी के लिए फेरोमोन ट्रैप (5 प्रति हैक्टर) खेतों में अगस्त में स्थापित करें तथा
ल्यूर को 20-25 दिनों में बदलते रहें। इससे वयस्क पिंक बाॅलवर्म के पतंगों की निगरानी हो सकेगी और सही समय पर प्रबंधन के लिए उचित निर्णय लिया जा सकेगा।
नीम के बीजों का अर्क (5 प्रतिशत) तथा नीम के तेल (5 मिलीलीटर प्रति लीटर) का साथ में छिड़काव 50 से 60 दिनों की कपास की फसल पर करें।
जैविक नियंत्रण:
वयस्क पिंक बाॅलवर्म की आर्थिक क्षति का स्तर यानी 8 वयस्क पतंगे प्रति फेरोमोन ट्रैप
मिलने पर अंड परजीवी ट्राइकोग्रामा टोएडीए बेक्ट्रे 1,00,000 प्रति हैक्टर की दर से खेतों में छोड़ें।
पिंक बाॅलवर्म का प्रकोप फूलों, गूलरों तथा बाॅल्स पर आर्थिक क्षति स्तर 10 प्रतिशत से अधिक होने पर
आवश्यकतानुसार सिफारिश किये गए कीटनाशकों का छिड़काव करें। अत्यंत जहरीले तथा कीटकनाशकों के मिश्रण का प्रयोग न करें।