अब तक ठंडे प्रदेश यानी हिमांचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र के कुछ इलाके में होने वाली फसल स्ट्राबेरी की खेती अब चंपारण की धरती पर भी की जा सकती है। इसकी खेती से किसानों को एक ओर जहां अच्छी आमदनी होगी वहीं दूसरी ओर उनके भोजन में पर्याप्त पोषक तत्वों की भी उपलब्धता होगी। जिलाधिकारी डा. निलेश रामचन्द्र देवरे स्ट्राबेरी को अपने आवासीय परिसर में लगाकर किसानों के लिए एक नया संदेश दे रहे हैं। डीएम डा. देवरे ने बताया कि स्ट्राबेरी अब चम्पारण की मिट्टी में भी संभव है। उन्होंने कहा कि इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्ट्राबेरी में एंटीआक्सीडेंट की भरपूर मात्रा होती है। इससे हमारे शरीर में रोग रोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इसके अलावा फालिक एसिड, आयरन, विटामिन सी, कैल्सियम की मात्रा भी कम नहीं है और हमारे भोजन में भी उतना ही आवश्यक है। फल मीठा होने के साथ ही कोलेस्ट्रोल की मात्रा शून्य होने के चलते इसे मधुमेह के रोगी भी बड़े चाव से खा सकते हैं।
स्ट्राबेरी की खेती की शुरुआत अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवंबर के बीच शुरू की जा सकती है। फल लगना जनवरी के अंतिम सप्ताह तक शुरू हो जाता है और मार्च यानी गर्मी की धमक आने के साथ -साथ इसमें फूल आना भी बंद हो जाता है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर के उद्यान विभाग की वैज्ञानिक डा. रूबी रानी ने बताया कि इसकी खेती में प्रारंभिक लागत ज्यादा आती है। लेकिन आमदनी भी लागत के दोगुनी होती है। अमूमन एक एकड़ में स्ट्राबेरी की खेती करने में 3 लाख रुपये लागत आती है और आमदनी 6 लाख रुपये होती है। प्रारंभिक लागत ज्यादा देखते हुए कृषि वैज्ञानिक ने किसानों को इसकी खेती 1 से 2 कठ्ठा में करने की सलाह दी है ताकि किसानों को इसकी खेती का अनुभव मिल सके। खेती में अन्य बातों के अलावा म¨ल्चग की व्यवस्था अहम है ताकि मिट्टी में नमी हमेशा बरकरार रह सके। गोबर की खाद देने से अमूमन सभी पोषक तत्व की उपलब्धता हो जाती है। स्ट्राबेरी के मामले में चंपारण में पहली बार शुरू की गई खेती में कीट एवं व्याधि का प्रकोप नहीं पाया गया है।
खेती में रुचि रखने वाले जिलाधिकारी डा. देवरे यहां के किसानों के लिए नकदी फसल की खेती करने की सलाह दे रहे हैं। वैसी फसल जिससे किसानों को नकदी लाभ हो। इसी कड़ी में वे पहली बार अपने आवासीय परिसर में चायपत्ती की खेती करने का मान बना रहे हैं। डीएम ने बताया कि यदि चाय की खेती यहां सफल हो जाती है तो यहां के किसान खुशहाल होंगे। उन्होंने कहा कि किशनगंज की जलवायु हमारे यहां के जलवायु से मिलती है और वहां के समतल भाग में चायपत्ती की खेती हो रही है।