प्रकाश अवधि का इसकी वृद्धि व विकास पर कोई अंतर नही पड़ता क्योंकि अप्रदीप्तिकाल पौधा है। इसी लिए इसे तीनों ऋतु में खरीफ, रबी एवं बसंत में आसानी सें उगाया जा सकता है।
भूमि एवं खेत की तैयारी: इसकी खेती दोमट एवं भारी मिट्टी पलट वाले हल से गहरा जुताई करने के बाद दो-तीन बार हैरो या देशी हल सें जुताई करके और पाटा लगा देना चाहिए।
उन्नत किस्में: भरपूर पैदावार के लिए उन्नत किस्मों की स्वस्थ एवं उत्तम गुणवत्ता वाले बीज का चुनाव करें।
बीज मात्रा : सामान्य-10 कि.ग्रा./हे. एवं संकर-5-6 कि.ग्रा./हे.
बुवाई: रबी- अक्टूबर सें नवम्बर एवं जायद- फरवरी सें मार्च
बोने की विधि: कतार सें कतार की दूरी 60 सेमी. एवं पौध से पौध की दूरी 20 सेमी. एवं 3-4 सेमी. से गहरा नहीं बोना चाहिए ।
बीजोपचार: बीमारियों से बचाव हेतु उपचार फफूंदनाशक थायरम 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज दर से या 2 ग्राम केप्टान से करना चाहिए।
बीज शोधन: बीज को 12 घंटे पानी मे भिगोगर छाया में 3-4 घंटे सुखाकर बोने से जमाव शीघ्र होता है। बीज को कैप्टान को 2 ग्राम या थीरम की 3 ग्राम मात्रा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से शोधित कर लेना चाहिए, इससे पौधे स्वस्थ होते है।
सूरजमुखी हमारे देश के लिए तिलहन की एक नई फसल है। इसके बीज में 46-52 प्रतिशत तक तेल एवं प्रोटीन 20-25 प्रतिशत प्राप्त होता है। सूरजमुखी 90-100 दिन में तैयार हो जाता है। सूरजमुखी की फसल खरीफ, रबी तथा जायद तीनों मौसम में समान रुप से ली जा सकती है। लेकिन खरीफ में रोगों एवं कीटों का प्रकोप अधिक होने के करण रबी एवं जायद में इसकी फसल अधिक लाभप्रद पायी गयी है इन दोनों मौसमों में बोई गई फसल से 15 से 25 प्रतिशत तक अधिक पैदावार मिलती है। जायद में आलू, गन्ना या तोरिया या अन्य फसलों के बाद खेत खाली पड़े हों, वहां इसकी खेती सफलता से की जा सकती है।
खाद मात्रा: अन्य फसलों के समान चार वर्षों में एक बार गोबर की खाद लगभग 25-30 गाड़ी के अतिरिक्त बारानी क्षेत्रों में एवं नत्रजन- 50 कि.ग्रा. सामान्य एवं 60 कि.ग्रा. संकर जाति, स्फुर- 60 कि.ग्रा. सामान्य एवं 90 कि.ग्रा. संकर जाति, एवं पोटाश- 40 कि.ग्रा. सामान्य एवं 60 कि.ग्रा. संकर जाति से प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बोनी के पहले दे देना चाहिए।
सूरजमुखी की खेती के रबी के मौसम में दो सिंचाई की जायद की फसल में चार सिंचाई की आवश्यकता होती है। सूरजमुखी के पौधें में फूल आते समय और मुण्डकों के बीज भरते समय सिंचाई देना अच्छा होता है। सूरजमूखी का परागण मूख्यत: मधुमक्खियों द्धारा होता है। इसके अलावा अन्य मधुमक्खियों ंएवं अन्य कीट परागण में सहायता करती है।
निराई-गुडाई एवं खरपतवार नियंत्रण: बोआई के 10-12 दिन बाद घने उगे हुए पौधों को उखाड़ देना चाहिए ताकि कतार में पौधे की दूरी 20 सेमी. रह जाये। खरपतवारों की रोकथाम करना भी जरूरी है। खरीफ फसल में दो बार, रबी में तथा बसंत ऋतु फसल में 1 बार निराई-गुड़ाई कर देना चाहिए।
सिंचाई: रबी में दो बार और बसंत ऋतु में 5-6 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती हैै। फसल उगने के 25-30 दिन बाद पहली और 50 दिन बाद दूसरी सिंचाई कर देना चाहिए। तीसरी सिंचाई फूल निकलने और दाने भरने की अवस्था में कर देना चाहिए।
सूरजमुखी के अच्छा पैदावार बढ़ाने के गुण: घने पौधे को बोनी के एक माह अन्दर निकाल कर विरलन कर देना चाहिए। फसल कां फूल बनने से बीज भरने की अवस्था में तोते चिडिय़ों से बचाना चाहिए। यदि मधुमक्खियों की संख्या कम दिखाई दे तो हस्त परागण करना चाहिए, ताकि बीज पोचा न रहें।
प्रमुख कीट एवं नियंत्रण: जैसिड- मिथाइल डेमेटान 25 ई.सी. 1 ली./हे., माहो- डाइमिथोएट 30 ई.सी. 1000 मि.ली. दर से छिड़के एवं रोमिल इल्ली- पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण भुरकाव 25 कि.ग्रा./हे. की दर से।
प्रमुख रोग एवं नियंत्रण: बीज सडऩ, बीज कुड, झुलसन, चारकोल सडऩ, भभूतिया रोग, डाऊनी मिल्डयु आलटरनेरिया झुलसन, गेरुआ एवं हेडराट रो्र प्रमुख से पाये जाते है। एक लीटर पानी में 3 ग्राम घुलनशील गंधक का घोल प्रति हेक्टेयर 500 लीटर छिड़काव करें।
कटाई एवं मंडाई: जब सूरजमुखी के बीज पककर कडे हो जाए तो उसके फूलों की कटाई कर लेना चाहिए। पके हुए फूलों का पिछला भाग पीले भूरे रंग का हो जाता है। फूलों को काटकर धूप में सुखा लेना चाहिए। इसके बाद फूलों को हाथ से या डण्डों सें पीटकर मंड़ाई की जा सकती है।
उपज एवं भण्डारण: सूरजमुखी की संकर किस्में उगाने पर 20 क्विं. प्रति हेक्टेयर एवं सामान्य सें किस्म सें 8-15 क्विं. प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है।