गेहूं का करनाल बंट एक उल्ली का रोग है जो पंजाब के लगभग सभी इलाकों में पाया जाता है। जबकि अर्ध-पर्वतीय और नदी क्षेत्रों में इसका हमला अधिक देखने को मिलता है।
यह बीमारी मिट्टी और बीजों से फैलती है।इस किस्म के गेहूं WHD 943 और PDW 291 रोग से लड़ने के लिए उपयुक्त है।इस बीमारी का असर कुछ अनाज पर ही देखने को मिलता है।
रोग के लक्षण- जब रोगग्रस्त दानों को हाथ में लेकर दबा डाला जाये, तो उनमें से काले रंग के कीटाणु निकल आते हैं।जिसमें से बदबू आती है।इस बीमारी वाली उल्ली का संक्रमण तब होता है जब फल अभी उभरनी लगती हैं।उल्ली के कीटाणु खेतों में 2 से 5
सालों तक जीवित रहते है और इन फलियों में उभर रहे दानों पर बीमारी का संक्रमण कर देते है। ऐसी फसल के बचाव के लिए बीज अगले आने वाले साल की बीमारी फ़ैलाने का कारण बनता है। इस के लिए करनाल बंट से बचाव के लिए रोग मुक्त गेहूं का बीज उपयोग करना चाहिए।
गेहूं की बुबाई का समय चल रहा है। इसके लिए किसान भाइयो को अपने बीज के लिए रखे हुए गेहूं की जांच कर लेनी चाहिए जिस से समय पर पता चलता रहेगा कि बीज में करनाल बंट की बीमारी है या नहीं।
बीज की जांच- बीज की जांच करने के लिए 2 मुट्ठी गेहूं के दानों को पानी में भिगोकर कागज़ पर फैला दें। अगर इस बीज में 4 से 5 दाने करनाल बंट से प्रभावित दिखाई दें तो ऐसे बीज गेहूं की बुबाई के लिए उपयोग न करें।